सफलता उन्हीं लोगों को मिलती है जो अंतिम समय तक सतर्क रहते हैं। जो लोग अंतिम पड़ाव पर पहुंचकर लापरवाह हो जाते हैं, उनकी पूरी मेहनत बर्बाद हो सकती है। इस संबंध में संत कबीर ने एक दोहा बताया है।
संत कबीर कहते हैं कि - पकी खेती देखिके, गरब किया किसान। अजहूं झोला बहुत है, घर आवै तब जान।।
इस दोहे में कबीर कह रहे हैं कि पकी हुई फसल देखकर कुछ किसान को गर्व हो जाता है। किसान सोचने लगता है कि अब फसल तैयार हो गई है। अब कोई परेशानी नहीं आएगी। मेरी मेहनत सफल हो गई है। ये सोचकर वह लापरवाह हो जाता है। दोहे की दूसरी लाइन में ‘अजहूं झोला’ शब्द आया है। दोहे में झोला शब्द का अर्थ है झमेला। फसल पक चुकी है, किसान बहुत प्रसन्न है और उसे अभिमान हो जाता है। लेकिन, फसल काटकर घर तक ले जाने में बहुत सारे झमेले हैं। कई कठिनाइयां आ सकती हैं।
जब तक फसल बिना बाधा के घर न आ जाए, तब तक किसान को ये नहीं सोचना चाहिए कि वह सफल हो गया है। इसीलिए कहा गया है दोहे में लिखा है कि घर आवै तब जान, यानी जब फसल घर आ जाए, तब इसे सफलता मानना चाहिए।
यही बात हम पर भी लागू होती है। कोई भी काम करें, जब तक लक्ष्य पूरा न हो जाए, जब तक सफलता न मिल जाए, तब तक लापरवाही न करें। अंतिम पड़ाव पर ज्यादा सावधानी रखनी चाहिए, वरना पूरी मेहनत बर्बाद हो सकती है।