जिले के ज्यादातर आदिवासी बाहुल्य इलाकों में कच्ची शराब (लाहन) बनाने और बेचने का गाेरखधंधा चल रहा है। शराब काे ज्यादा नशीला बनाने के लिए उसमें यूरिया, धूतरा, बेसरमबेल की पत्ती और ऑक्सीटॉसिन जैसे घातक पदार्थ तक मिलाए जा रहे हैं। इनकी मात्रा ज्यादा हाेने से शराब जहरीली बनकर लाेगाें की जान ले सकती है।
हालांकि अभी तक जहरीली शराब से माैत का काेई केस सामने नहीं आया है, लेकिन अंचल में चल रही कच्ची शराब की भट्टियाें से उज्जैन सरीका हादसा हाेने से इंकार भी नहीं किया जा सकता। आबकारी व पुलिस छुटपुट कच्ची शराब पकड़ती रही है, लेकिन उज्जैन में जहरीली शराब के सेवन से हुई 14 लोगों की मौताें के बाद भी यहां बड़े स्तर पर काेई कार्रवाई नहीं हुई।
कुचबंदिया, कंजर लोगों के तार कच्ची शराब से जुड़े
देवरी के सलैया, श्रीनगर, बर्रा तलैया, सिंगपुर गंजन, समनापुर शाहजू,खकरिया में आदिवासी, बीना के बसारी टाड़ा, बेरखेड़ी टाड़ा में बंजारे, छिरारी में मुंडा समाज के लाेग कच्ची शराब तैयार कर बेचने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा जिले के और भी स्थानाें पर कुचबंदिया, कंजर लाेग कच्ची शराब के धंधे से जुड़े हुए हैं। रात में अमूमन हर गांव में कच्ची शराब की भट्टियां धधकती देखी जा सकती हैं। लाॅक डाउन के समय मकराेनिया से लगे गांवाें में कुचबंदिया समाज के लाेगाें ने शराब की भट्टियां लगा ली थीं। पुलिस की दबिश के दाैरान सुअरमार बम फटने से एक आरक्षक घायल हाे गया था।
महुआ काे भट्टी पर पकाकर भाप के रूप में उतारते हैं
कच्ची शराब में मुख्य रूप से महुआ का उपयाेग हाेता है। यह एक तरह का जंगली फल है जाे नाैरादेही अभयारण्य से लगे गावाें में बहुत ज्यादा पाया जाता है। महुआ काे गुड़ में मिलाकर पहले उसे सड़ने के लिए रखा जाता है। इसके बाद खाली बर्तन या पीका में इसे भट्टी पर पकने के लिए रखा जाता है। एक नली के जरिए भाप काे बॉटल उतारा जाता है। भाप ठंडी हाेने पर लिक्विड फाॅर्म में आ जाती है। यही कच्ची शराब है। जिसे लाहन भी कहते हैं। यहां तक शराब जहरीली नहीं हाेती। जब लगता है कि शराब में नशा कम है ताे फिर शुरू हाेता है खतरे का खेल। इसमें यूरिया, ऑक्सीटॉसिन, बेसरमबेल का उपयाेग किया जाता है। इन पदार्थाें काे मिलाने का काेई मापदंड नहीं रहता। जिससे शराब जहरीली हाेने का खतरा बना रहता है।
लाॅकडाउन में दाेगुना ज्यादा कीमत पर बिकी कच्ची शराब
एक कुप्पा लाहन तैयार करने में 250 रुपए की लागत आती है। इससे एक से डेढ़ हजार रुपए की शराब तैयार होती है। राेज दो से पांच हजार रुपए दिन की कमाई रहती है। कच्ची शराब की बाेतल 80 से ₹120 रुपए की बिक रही है।
लॉकडाउन में जबलपुर तेंदूखेड़ा, मोह,सागर,देवरी,रहली,गढ़ाकोटा,रोन कुमरई,गुड़ा, बलेह आदि गांव तक कच्ची शराब बेची गई। शराब दुकानें बंद हाेने से उस समय 300 रुपए की तक की बाेतल बिकी।
5 हजार के पैकेट से 50 हजार की कच्ची शराब बनती है
- रिपाेर्टर- एक परिचित से पता चला है कि आपके गांव में कच्ची शराब बनती है? ग्रामीण- हां, कई लाेग बनाते हैं।
- रिपाेर्टर- क्या आप बता सकते हैं कैसे बनती है? ग्रामीण-इसमें महुआ व गुड़ का मिश्रण सड़ाकर इसे भट्टी पर उबाला जाता है। फिर भाप काे ठंडा करके शराब उतारी जाती है।
- रिपाेर्टर- इसमें नशा कितना हाेता है? ग्रामीण-महुआ व गुड़ के मिश्रण से बनी कच्ची शराब में नशा कुछ कम हाेता है।
- रिपाेर्टर- ज्यादा नशे के लिए क्या करते हैं? ग्रामीण- कुछ भी मिला देते हैं, बस नशा आना चाहिए।
- रिपाेर्टर- कुछ भी क्या? ग्रामीण- नशे की गाेली, जर्दा, धतूरा, बेसरम, यूरिया तक मिला देते हैं।
- रिपाेर्टर- कुछ और तरीका भी है क्या ? ग्रामीण- आजकल आसान है। एक पैकेट में पाउडर मिलता है। उसका घाेल बनाते हैं। महुआ केवल सुंगध के लिए डालते हैं।
- रिपाेर्टर- इस पाउडर का नाम क्या है? ग्रामीण- नाम पता नहीं। कच्ची शराब बनाने वाले बेगमगंज तरफ से लाते हैं। इसकी कीमत करीब 5 हजार है। इससे 50 हजार रुपए तक की शराब बन जाती है।
- रिपाेर्टर-आपके गांव में कितने लाेग बनाते हैं? ग्रामीण- पहले एक जगह बनती थी, अब 10-12 लाेग बनाते हैं।
एक्सपर्ट: मिथाइल एल्काेहल बनती है माैत की वजह
यूरिया नाइट्रोजन होता है जो शरीर में पहुंचकर नुकसान करता है। महुआ की कच्ची शराब में यूरिया और ऑक्सीटॉसिन जैसे केमिकल मिलाने से मिथाइल एल्कोल्हल बनता है। यहीं जहर का काम करता है और लाेगाें की माैत तक हाे जाती है। मिथाइल शरीर में जाते ही अपने दुष्प्रभाव छाेड़ता है। इससे शरीर के अंदरूनी अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसकी वजह से कई बार तुरंत मौत हो जाती है। कुछ बार लोगों में यह प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है। - राकेश अहिरवार, बायाेटेक्नाॅलाेजिस्ट
दबिश दी है, लेकिन कोई नहीं मिला- सीधी बात -अतुल सिंह, एसपी
- जिले में बिक रही कच्ची शराब माैताें की वजह बन सकती है? जवाब - कच्ची शराब पहले पकड़ी जाती रही है। यहां दाे तरह से शराब बनती है। कुछ लाेग खुद पीने के लिए बनाते हैं और कुछ बनाकर बेचते हैं।
- उज्जैन की घटना के बाद भी काेई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई? जवाब- देवरी, केसली तरफ पुलिस ने दबिश दी थी। नवरात्र के कारण भट्टियां बंद चल रही हैं।
- आगे कार्रवाई करेंगे ? जवाब- हां, पुलिस इस पर नजर रखे हुए है।
उज्जैन का मामला अलग है : कलेक्टर
उज्जैन का मामला अलग है। जिले में जहरीली शराब बनाए जाने संबंधी बात सामने नहीं आई। इससे माैत भी नहीं हुई। अहितयात के ताैर पर आबकारी दल काे कच्ची शराब बनाने वालाें पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
- दीपक सिंह, कलेक्टर