बिना परीक्षा प्रमोट नहीं होंगे फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से कहा- हालात को देखते हुए यूजीसी से बात करके फैसला लें

Posted By: Himmat Jaithwar
8/28/2020

कोरोना के बीच कॉलेज की फाइनल ईयर की परीक्षाएं करवाने के खिलाफ दायर अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुना दिया। कोर्ट ने यूजीसी की 6 जुलाई गाइडलाइन को सही माना और छात्रों को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि, 'राज्य को परीक्षा रद्द करने का अधिकार है, लेकिन स्टूडेंट्स बिना परीक्षा पास नहीं होंगे।'

जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कह ये छात्रों के भविष्य का मामला है और इसके साथ ही देश में हायर एजूकेशन के स्टैंडर्ड को भी बनाए रखना जिम्मेदारी है।

हालांकि कोर्ट ने राज्यों को थोड़ी राहत देते हुए कहा है कि अगर उन्हें लगता है कि महामारी को देखते हुए वे परीक्षाएं कराने में समर्थ नहीं है तो उन्हें यूजीसी से सलाह लेनी होगी। कोर्ट ने कहा कि राज्य आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत परीक्षाओं पर फैसला ले सकते हैं, लेकिन छात्रों के भविष्य को देखते हुए यूजीसी से सलाह लेनी होगी।

18 अगस्त को आखिरी सुनवाई हुई थी
यूनिवर्सिटी और दूसरे हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की फाइनल ईयर या सेमेस्टर की परीक्षाओं को 30 सितंबर तक कराने की यूजीसी की गाइडलाइन को चुनौती देनी वाली अर्जियों पर 18 अगस्त को आखिरी सुनवाई हुई थी। लेकिन, उस दिन कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इस दौरान महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और ओडिशा की दलीलें भी सुनी गईं।इन राज्यों ने पहले परीक्षाएं रद्द करने का फैसला खुद ही ले लिया था। सुनवाई के दौरान यूजीसी ने इन राज्यों के फैसले को कानून के खिलाफ बताया था।

सरकार ने कहा- यूजीसी को नियम बनाने का अधिकार
सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट में कहा कि फाइनल ईयर की परीक्षा कराना ही छात्रों के हित में है। सरकार की ओर से यूजीसी का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा था। उन्होंने कहा कि परीक्षा के मामले में नियम बनाने का अधिकार यूजीसी के पास ही है।

इससे पहले यूजीसी ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि फाइनल ईयर की परीक्षा रद्द करने का राज्य सरकारों के फैसले से देश में हायर एजुकेशन के स्टैंडर्ड पर असर पड़ेगा।

स्टूडेंट्स की मांग
कुछ छात्र भी फाइनल ईयर की परीक्षाएं रद्द करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने इंटरनल इवैल्यूशन या पिछले सालों की परफॉर्मेंस के आधार पर प्रमोट करने की मांग की है। इससे पहले 31 छात्रों की तरफ से केस लड़ रहे वकील अलख आलोक श्रीवास्तव का कहना है कि हमारा मुद्दा यह है कि यूजीसी की गाइडलाइंस कितनी लीगल हैं?



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