अयोध्या. रामजन्म भूमि पर गर्भगृह वाली जगह का समतलीकरण पूरा हो गया है। वहीं जन्मभूमि से तीन किलोमीटर दूर श्रीरामजन्मभूमि न्यास कार्यशाला में दशकों से रखे तराशे हुए पत्थरों की सफाई का काम तेजी से हो रहा है। इस काम को दिल्ली की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी कर रही है। कंपनी के निदेशक संदीप गर्ग ने कहा कि अभी 15 लोग इस काम में लगे हैं।
इन पत्थरों से 80 फीसदी गंदगी पानी से धोने पर ही निकल जाती है। बाकी जनवरों से फैली गंदगी और काई को छुड़ाने के लिए केमिकल का उपयोग किया जा रहा है। हम तीन से चार महीने में पूरे पत्थरों की सफाई कर सकते हैं। अभी जो पत्थर साफ हो गए हैं, उन्हें सुरक्षित पैक करके रख रहे हैं। कार्यशाला में रखे साफ पत्थरों को बारिश के पानी से बचाने के लिए शेड का भी बनाया जा रहा है।
जब हम कार्यशाला पहुंचे तो दिल्ली की कंपनी के अलावा लखनऊ की एक दूसरी कंपनी भी पत्थरों की सफाई का ट्रायल कर रही थी। कार्यशाला के सुपरवाइजर अन्नू भाई सोमपुरा ने बताया कि तीन से चार महीने में पत्थरों की सफाई पूरी हो जाएगी। अगर ट्रस्ट कहता है तो हम कामगार बढ़ाकर इसे जल्द पूरा कर लेंगे। अभी पहली मंजिल निर्माण के लिए पूरे पत्थर रखे हैं, आगे ट्रस्ट जैसे कहेगा उसके मुताबिक काम होगा। उन्होंने कहा कि पूरे मंदिर निर्माण में 5 साल का समय लग सकता है। एक से डेढ़ साल तो कार्यशाला से जन्मभूमि तक पत्थर पहुंचाने और नींव भरने में लगेंगे। 2022 तक एक मंजिल बन सकती है।
रामलला के पुजारी प्रेम त्रिपाठी ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान तो दर्शन के लिए दो-चार लोग ही आ रहे थे। लेकिन, आठ जून के बाद संख्या बढ़ी है। सुरक्षा जांच से जुड़े अधिकारी के मुताबिक मंदिर में सुबह-शाम मिलाकर दिनभर में अभी एक हजार से ज्यादा लोग रामलला के दर्शन के लिए आ रहे हैं।
रौनाही में मस्जिद से ज्यादा स्कूल बनाने की मांग
अयोध्या में मंदिर निर्माण की गहमागहमी से 25 किलोमीटर दूर रौनाही-धन्नीपुर में शांति हैं। यहां हाईवे से लगे 25 एकड़ जमीन में सरकारी कृषि फार्म है। इसी फार्म की पांच एकड़ जमीन मस्जिद निर्माण के लिए प्रशासन ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी है। लेकिन आम लोगों में जमीन को लेकर कोई कौतूहल नहीं है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ही तय करेगा कि जमीन का क्या करना है। इकबाल अंसारी ने कहा कि मस्जिद के लिए जहां पांच एकड़ जमीन मिली है, वहां पहले से ही 15 से ज्यादा मस्जिदें हैं। ऐसे में उस जमीन पर स्कूल या अस्पताल बनना चाहिए। 26 जून को ही प्रशासन की ओर से सुन्नी वक्फ बोर्ड को जमीन के कागज दिए गए हैं। धन्नीपुर गांव के 42 साल के शमशुलहक टेलरिंग का काम करते हैं। वे कहते हैं कि गांव में पहले से ही मस्जिद है, जो मस्जिद है उसी में लोग नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसे में एक और मस्जिद का क्या होगा।
हर किसी को इंतजार है कि भूमि पूजन करने पीएम मोदी कब आएंगे
अयोध्या में हर किसी को भूमि पूजन का इंतजार है। 6 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है और उसके बाद चातुर्मास में चार महीने तक भूमि पूजन नहीं हो सकेगा। यही वजह है कि सभी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अयोध्या आने का इंतजार है। जैसे सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद गए थे। वैसे ही 500 सालों के बाद बन रहे राम मंदिर के भूमि पूजन में प्रधानमंत्री आएं।
28 जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या आए थे। उन्होंने श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से जुड़े लोगों के साथ बैठक की। इसके अगले दिन ही ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर भूमि पूजन में आने का आग्रह किया है।
2022 तक हो सकता है मंदिर का निर्माण
नृत्यगोपाल दास के उत्तराधिकारी कमल नयन दास ने 10 जून को रामजन्मभूमि पर रुद्राभिषेक करवाया। वे कहते हैं कि भूमि पूजन सावन के महीने में भी किया जा सकता है। सावन के महीने में जो कार्य शुरू होता है, वह पूरा होता है। मंदिर पुराने मॉडल के अनुसार ही बनेगा। हमारी इच्छा है कि 2022 की रामनवमी जब आए तो भगवान अपने स्थाई गर्भगृह में प्रवेश करें।
अयोध्या राजपरिवार के प्रमुख और ट्रस्ट के सदस्य बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र कहते हैं कि कोरोना के कारण थोड़ी देरी हुई है। कुछ खंभों का वजन तो 17-18 टन है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबसे बड़ा काम यह हुआ है कि भगवान टेंट से अस्थाई मंदिर में आ गए हैं।
मंदिर निर्माण से जुड़े लोगों के मुताबिक अगर भूमि पूजन चर्तुमास से पहले नहीं होता है तब तक बची हुई जमीन को समतल करने और आसपास की मिट्टी को ठोस बनाने का काम होगा। मंदिर का निर्माण इस बात को ध्यान में रखकर किया जाएगा कि उसकी आयु कम से कम एक हजार साल रहे। इसके लिए मिट्टी का परीक्षण भी किया जा रहा है। 67.7 एकड जमीन का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा भी है, जिसमें सालों से कोई गया भी नहीं है। उसे भी सही करना होगा। ट्रस्ट की बैठक जुलाई में होने की उम्मीद है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से लेकर अबतक
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। इसके बाद 5 फरवरी 2020 को संसद में ट्रस्ट बनाने की घोषणा हुई। उसी दिन सुबह ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन हो गया और शाम को 67 एकड़ जमीन सरकार से लेकर ट्रस्ट को सौंप दी गई। इसके बाद मार्च में 12.6 करोड़ रुपए की एफडी भी ट्रस्ट के नाम आ गई। गर्भ गृह की जमीन पर लोहे के बड़े गाडर को हटा दिया गया है। मंदिर का निर्माण विश्वहिंदू परिषद के मॉडल के अनुसार होगा। मंदिर 140 फीट चौड़ा, 268.5 फीट लंबा और 128 फीट ऊंचा होगा।