इंदौर। मध्य प्रदेश में कोरोना संक्रमण के चलते स्नातक और स्नातकोत्तर परीक्षाओं में जनरल प्रमोशन देने को मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले दिनों हरी-झंडी दे दी है। अब प्रथम और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी परीक्षा शुल्क लौटाने पर अड़े हैं। मामले में कई विद्यार्थियों ने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के सामने मुद्दा रख दिया है। जवाब में अधिकारियों का कहना है कि फीस का अधिकांश हिस्सा परीक्षा से जुड़ी व्यवस्थाओं पर खर्च हो चुका है। हालांकि अभी गाइडलाइन नहीं आई है। वहीं अधिकारी मुद्दे पर उच्च शिक्षा विभाग से राय लेने की बात करने में लगे हैं।
जनरल प्रमोशन की घोषणा होते ही अब स्नातक प्रथम और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों ने फीस लौटाने के लिए विश्वविद्यालय के चक्कर लगाने लगे हैं। बीकॉम के छात्र सौरभ वर्मा, बीएससी के छात्र लोकेंद्र बैस का कहना है कि फीस फरवरी में भरवाई गई थी। अब जब परीक्षा रद हो चुकी है तो विद्यार्थियों को फीस लौटाई जानी चाहिए। अधिकांश विद्यार्थियों की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है। इसको देखते हुए विवि को फैसला लेने की जरूरत है।
फिलहाल बीए, बीकॉम, बीएससी, बीएड, बीपीएड, बैचलर ऑफ सोशल वर्क, बीबीए, बीसीए समेत कई स्नातक पाठ्यक्रमों में लगभग दो लाख से अधिक विद्यार्थी हैं। प्रत्येक छात्र से 1500 से 2000 रुपए फीस वसूली गई है। इस लिहाज से विश्वविद्यालय को परीक्षा से करीब 40 करोड़ रुपए की आय हुई है। मामले में युवक कांग्रेस के प्रवक्ता अभिजीत पांडे ने भी विवि के अधिकारियों के सामने फीस लौटाने की मांग रखी है।
विवि प्रशासन का तर्क
फीस लौटाने को लेकर विवि प्रशासन का अपना तर्क है। अधिकारियों का कहना है कि अंतिम वर्ष की तरह ही प्रथम और द्वितीय वर्ष की परीक्षा करवाने के लिए विश्वविद्यालय तैयार था। बस ये परीक्षाएं शुरू नहीं हुई, मगर परीक्षा से जुड़ी काफी सारी व्यवस्था तो की गई हैं। जैसे कॉपी-पेपर भिजवाना, (ट्रांसपोर्ट भत्ता), पेपर सेट करना, परीक्षा केंद्र बनाना, पर्यवेक्षक तय करना, केंद्राध्यक्ष नियुक्त करना, उड़नदस्ता दल, मूल्यांकन, अनुसूची बनाने जैसे समेत कई कार्य रहते हैं। इन पर राशि खर्च होती है। प्रथम और द्वितीय वर्ष की परीक्षा के लिए अधिकांश तैयारियां लगभग हो चुकी थीं। उधर अब सवाल खड़े होने लगा है कि जब परीक्षाएं संचालित नहीं हुई तो कौन-सी व्यवस्था पर राशि खर्च हुई?