वयस्क ही नहीं बल्कि मुश्किल परिस्थितियों में बच्चों के मन में भी सुसाइड करने का ख्याल आता है। बच्चों का मन बहुत चंचल और कमजोर होता है इसलिए वो आसानी से भटक जाते हैं। बच्चों में सुसाइड की प्रवृत्ति को रोकने के लिए पैरेंट्स को ही सबसे पहले पहल करनी चाहिए। अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा ऐसा कुछ कर सकता है या आपको इसके संकेत मिल रहे हैं तो आपको क्या करना चाहिए? बच्चों के मन में क्यों आता है सुसाइड का ख्याल कई टीएनज उम्र के बच्चे जो सुसाइड कर लेते हैं या इसकी कोशिश करते हैं, उनमें मानसिक विकार देखा जाता है। मानसिक स्थिति ठीक न होने की वजह से टीएनज बच्चे स्ट्रेस को संभाल नहीं पाते हैं। इनमें फेल होने, ब्रेकअप, पारिवारिक परेशानियों और रिजेक्ट होने की वजह से सुसाइड करने का ख्याल आ सकता है। इन्हें लगने लगता है कि आत्महत्या करने से इनकी परेशानियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी। टीएनज सुसाइड के जोखिम कारक जीवन की कुछ परिस्थितियों में बच्चों के मन में सुसाइड करने का ख्याल आ सकता है, जैसे कि : मानसिक विकार जिसमें डिप्रेशन भी शामिल है। किसी खास दोस्त या परिवार के सदस्य के साथ मतभेद या मृत्यु हो जाना। शारीरिक या यौन उत्पीड़न या हिंसा का शिकार होना। शराब या दवा की लत लग जाना। कोई बीमारी होना जैसे यौन संक्रमित रोग आदि। दूसरों द्वारा परेशान किया जाना परिवार के किसी सदस्य या दोस्त का आत्महत्या कर लेना। परिवार में आत्महत्या की प्रवृत्ति होना।अवसाद-रोधी दवाएं कितनी कारगर हैं अधिकतर अवसाद-रोधी दवाएं सुरक्षित होती है लेकिन इन्हें डॉक्टर की सलाह पर ही लेना चाहिए। ऐसा माना जाता है 25 साल से कम उम्र के बच्चों, टीएनजर और वयस्कों में अवसाद-रोधी दवाएं लेने पर आत्महत्या करने की भावनाएं या व्यवहार बढ़ सकता है। ऐसा खासतौर पर इन दवाओं को लेना शुरू करने या खुराक में बदलाव करने पर होता है। इस बात का ध्यान रखें कि अवसाद-रोधी दवाएं आगे चल कर मूड में सुधार कर आत्महत्या के खतरे को कम करती हैं।