भोपाल। देशभर में कोरोना-19 वायरस महामारी के चलते "ऑनलाइन पढ़ाई" का सिलसिला जारी है। मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने कहा है कि क्या ऑनलाइन पढ़ाई से "पिछड़े वंचित वर्ग के अंतिम छात्र" तक शासन ने अपनी पहुँच बना ली है? निश्चित ही उत्तर नहीं ही आयेगा।
शासन के शिक्षा विभाग को सर्वप्रथम यह सुनिश्चित करना होगा कि "पर्याप्त तकनीकी" शासकीय विद्यालयों में दर्ज शत प्रतिशत छात्रों तक निशुल्क रूप से उपलब्ध करवाने की क्या व्यवस्था है? यह कब तक पहुँच जाएगी? क्या विभाग ने इसके लिए पर्याप्त बजट आवंटन कर दिया है, नहीं तो कब तक आपूर्ति सुनिश्चित होगी? यह तो एक पहलू है जो अपनी विफलता की कहानी स्वयं कह रहा है। निशुल्क अनिवार्य शिक्षा के दायरे में शामिल 100% छात्र इससे लाभान्वित नहीं हो रहे है तो यह संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध समानता के अधिकारों का हनन भी है। इसे अनदेखा करना पिछड़े वंचित वर्ग के ऐसे छात्रों के प्रति शासन द्वारा प्रायोजित अन्याय होगा।
ऑनलाइन पढ़ाई में दूसरी सबसे बड़ी बाधा नेट न मिलना, सर्वर की धीमी गति का चलता चक्र "चक्कर घीन्नी" बना देता है। इससे शिक्षकों का धैर्य व संयम जवाब दे जाता है तो आन लाइन पढ़ाई करने वाले कतिपय छात्रों व पालक की मनःस्थिति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। पालक रोज़ी रोटी की चिंता छोड़कर विभाग के साथ कदमताल कैसे कर सकता है? चालू विद्यालय समय में ही कृषि कार्य व चरवाहों का कार्य भार वहन करने से अनुपस्थित रहने वाले छात्रों से उम्मीद लगाना बेमानी होगी।
ऑनलाइन पढ़ाई की आड़ में राज्य शिक्षा केंद्र केवल अपनी विफलता छिपाकर उपयोगिता सिद्ध करने में लगा हुआ है। ये यदा-कदा अपनी मंशा में खलल मानकर कतिपय शिक्षकों को अनुशासनात्मक कार्रवाई का शिकार बनाकर अफसरी धोंस कायम रखने का कुत्सित प्रयास करते रहते है। ऑनलाइन पढ़ाई "डाटा-एप" की कमीशनखोरी का गोरख धंधा भी हो सकता है! "आखिर बगैर पूर्ण तैयारी के ऑनलाइन पढ़ाई कैसे संभव है" यह एक शोध का नया विषय हो सकता है।