इंदौर के वायरोलॉजिस्ट ने अमेरिका में आरथ्राइटिस की दवा से कोरोना का असर कम करने में सफलता पाई

Posted By: Himmat Jaithwar
4/26/2020

इंदौर.  अमेरिका की जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी के असोसिएट प्रोफेसर डॉ. मुकेश कुमार ने कोरोना के प्रभाव को कम करने वाले ड्रग की खोज की है। डॉ. मुकेश ने पिछले दो महीनों में यूएस एफडीए द्वारा स्वीकृत दो लाख से ड्रग्स पर अलग-अलग परीक्षण किए और उनमें कोरोना से लड़ने की क्षमता को जांचा। रियूमेटाइड आरथ्राईटिस के इलाज में पहले से ही उपयोग किए जा रहे ऑरानोफिन में उन्हें वे कारक मिले जो कोरोना से लड़ने में भी सक्षम है। उनकी लैब में कोरोना प्रभावित सेल पर किए गए इस ड्रग के परीक्षण में इसकी क्षमता 95% तक आई है। इस दवा से संबंधित उनका एक रिसर्च पेपर भी प्रकाशित हो चुका है। 


डॉ. मुकेश ने इंदौर में रहकर महू के वेटरनरी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है। इसके बाद से ही वे जॉर्जिया यूनिवर्सिटी में काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया- अमेरिका में कोरोना का पहला मरीज मिलने के पहले ही मैं अपनी टीम के साथ इस पर काम कर चुका था। हम ऐसे ड्रग की खोज कर रहे थे, जो वायरस के साथ इससे होने वाले साइटोकाइन स्टॉर्म पर भी असर करे। ऑरानोफिन की अलग-अलग मात्रा, सांद्रता वाले डोज का परीक्षण वायरस प्रभावित सेल पर किया गया। ये ड्रग 95% कारगर साबित हुआ। अमेरिका सहित भारत व अन्य देशों में इस ड्रग का उपयोग आरथ्राइटिस के लिए किया जा रहा है। इसमें सोने के कण भी हैं इसलिए ये हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन से महंगी है। चूंकि इसे अमेरिका का फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन पहले ही स्वीकृति दे चुका है इसलिए इससे कोरोना की दवा बनाने की लिए जरूरी प्रक्रियाओं में लगने वाला समय बचेगा। ड्रग के लैब टेस्ट के बाद अब कंपनियां जानवरों, मनुष्यों पर कोरोना के इलाज के लिए परीक्षण कर रही हैं। 

टीम में दो भारतीय हैं शामिल, 14 घंटे कर रहे काम 
जॉर्जिया यूनिवर्सिटी में डॉ. कुमार की टीम में कुल 6 छात्र शामिल हैं। इनमें से एक छात्र पुणे और एक बिहार से है। बाकि अमेरिकी छात्र हैं। डॉ. कुमार के मुताबिक पूरी टीम पीपीई किट पहन कर हर दिन 14-14 घंटे काम कर रही है।



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