MP के मेहुल केले के तने से हैंडीक्राफ्ट तैयार करते हैं, सालाना 12 लाख रु. है टर्नओवर; 50 महिलाओं को रोजगार से भी जोड़ा

Posted By: Himmat Jaithwar
5/24/2021

मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में केले की खेती खूब होती है। हर दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर आपको केले के बाग देखने को मिल जाएंगे। ज्यादातर किसान फल निकालने के बाद केले के स्टेम और पत्तियों को या तो खेत में जला देते हैं या फिर लैंडफिल में ले जाकर फेंक देते हैं। खेतों के साथ-साथ पर्यावरण को भी इससे नुकसान पहुंचता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए जिले के मेहुल श्रॉफ ने 2018 में एक स्टार्टअप की शुरुआत की। वे बनाना वेस्ट से एक दर्जन से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। और हर साल 12 लाख रुपए का टर्नओवर जेनरेट कर रहे हैं।

मेहुल कहते हैं कि मैंने बहुत पहले ही तय कर लिया था कि बिजनेस ही करना है। इसीलिए ग्रेजुएशन के बाद MBA में दाखिला लिया। छोटे-बड़े स्टार्टअप्स और उनके फाउंडर्स की स्टोरीज पढ़ते रहता था। मौका मिलता तो उनसे मुलाकात भी करता था और उनके काम को समझने की कोशिश करता। तब मुझे रियलाइज हुआ कि एग्रीकल्चर सेक्टर सबसे उभरता हुआ बिजनेस सेक्टर है। इसमें ग्रोथ के साथ-साथ स्कोप भी बहुत है। अगर बेहतर तरीके से इसको लेकर काम किया जाए तो मार्केट की कोई कमी नहीं है।

पढ़ाई के दौरान ही शुरू कर दिया था रिसर्च

मेहुल ने बनाना वेस्ट से इको फ्रेंडली प्रोडक्ट बनाने की शुरुआत 2018 में की थी। अब तक वे 12 टन केले का रेशा तैयार कर चुके हैं।
मेहुल ने बनाना वेस्ट से इको फ्रेंडली प्रोडक्ट बनाने की शुरुआत 2018 में की थी। अब तक वे 12 टन केले का रेशा तैयार कर चुके हैं।

मेहुल कहते हैं कि MBA के दौरान ही मुझे एग्रो वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में पता चला। मुझे लगा कि ये मेरे काम की चीज है, क्योंकि हमारे इलाके में बनाना वेस्ट की कोई कमी नहीं है। इसलिए मैंने तय किया कि इसके वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर कोई काम करूंगा।

2016 में एमबीए करने के बाद मेहुल ने बनाना वेस्ट के बारे में रिसर्च और जानकारी जुटानी शुरू की। साउथ इंडिया में इस तरह के वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहे लोगों से मुलाकात की। इंटरनेट से जानकारी जुटाई। फिर बुरहानपुर में नवसारी कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से आयोजित एक वर्कशॉप में भाग लिया। जहां बनाना फाइबर वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट बनाने की ट्रेनिंग ली।

इसके बाद मेहुल ने खुद के स्टार्टअप की शुरुआत की। उन्होंने बुरहानपुर में ही इसकी प्रोसेसिंग यूनिट लगाई। इसके लिए जरूरी मशीनें वे चीन से लेकर आए थे। फिर कुछ स्थानीय लोगों की मदद से उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया।

कैसे तैयार करते हैं प्रोडक्ट?

मेहुल ने 50 महिलाओं को रोजगार से जोड़ा है, जो केले के तने को काटने से लेकर प्रोडक्ट तैयार करने का काम करती हैं।
मेहुल ने 50 महिलाओं को रोजगार से जोड़ा है, जो केले के तने को काटने से लेकर प्रोडक्ट तैयार करने का काम करती हैं।

मेहुल ने बुरहानपुर में बनाना फाइबर वेस्ट की प्रोसेसिंग यूनिट लगाई है। जहां 60 लोग काम करते हैं। इसमें से 50 महिलाएं हैं, जो बनाना फाइबर से तरह-तरह के प्रोडक्ट तैयार करती हैं। इससे उनकी भी कमाई हो जाती है। वे बताते हैं कि सबसे पहले खेत से केले की स्टेम को काटकर हम ट्रैक्टर में लोड करते हैं। इसके बाद उसे अपनी फैक्ट्री में लाते हैं। यहां मशीन की मदद से उसे दो भागों में काट लेते हैं। फिर यहां काम करने वाली महिलाएं उसे अलग-अलग शीट्स के रूप में काटती हैं।

इसके बाद इसकी कई लेवल पर प्रोसेसिंग की जाती है। जिससे शॉर्ट फाइबर और लॉन्ग फाइबर तैयार होता है। इसके बाद इसे धूप में सुखाया जाता है। फिर इससे प्रोडक्ट तैयार किए जाते हैं। अभी मेहुल बनाना वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट, रेशा, सैनिटरी नैपकिन, ग्रो बैग सहित दर्जनभर प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। वे अपने प्रोडक्ट सीधे बड़ी-बड़ी टेक्स्टाइल कंपनियों को भेजते हैं। उन्होंने चीन और वियतनाम में भी अपने प्रोडक्ट भेजे हैं। जल्द ही वे खुद का ऐप लॉन्च करने वाले हैं ताकि अपने प्रोडक्ट सीधे ग्राहकों तक पहुंचा सकें।

बनाना ​​​​​फाइबर वेस्ट की इकोनॉमी
भारत में बड़े लेवल पर केले का उत्पादन होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 14 मिलियन टन केले का उत्पादन देश में होता है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, एमपी और बिहार में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। अगर फाइबर वेस्ट की बात करें तो हर साल 1.5 मिलियन टन ड्राई बनाना फाइबर भारत में होता है। भारत में अब इस वेस्ट का कॉमर्शियल यूज हो रहा है। कई जगह बनाना फाइबर टेक्सटाइल भी बनाए गए हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 14 मिलियन टन केले का उत्पादन देश में होता है। हर साल 1.5 मिलियन टन ड्राई बनाना फाइबर भारत में होता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 14 मिलियन टन केले का उत्पादन देश में होता है। हर साल 1.5 मिलियन टन ड्राई बनाना फाइबर भारत में होता है।

मेहुल के मुताबिक कोई छोटे लेवल पर शुरुआत करना चाहे तो दो से तीन लाख रुपए खर्च करके इसका सेटअप लगाया जा सकता है। अभी ये डेवलपिंग सेक्टर है और लोग कम हैं। इसलिए करियर के लिहाज से स्कोप की कमी नहीं है। सबसे अच्छी बात है कि बनाना वेस्ट जुटाने में ज्यादा पैसे नहीं लगते। किसानों के लिए ये बेकार की चीज होती है, वे फ्री में ही दे देते हैं। साथ ही इसको लेकर सरकार भी सपोर्ट कर रही है। खुद मेहुल को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (रफ्तार) के तहत, श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जयपुर से इन्क्यूबेशन और 20 लाख रुपए का ग्रांट मिला है।

वे कहते हैं कि इस सेक्टर में सबसे चैलेंजिंग काम है इसके लिए मार्केट तैयार करना। क्योंकि अभी इस तरह के प्रोडक्ट की कीमत अधिक होती है। इसलिए आमलोग के साथ ही कंपनियां भी कम दिलचस्पी दिखाती हैं। अगर बड़े लेवल पर इसकी प्रोसेसिंग का काम होगा तो इससे बने प्रोडक्ट की कीमत घटेगी।

कहां से ले सकते हैं ट्रेनिंग?
बनाना वेस्ट से फाइबर निकालने और उससे प्रोडक्ट तैयार करने की ट्रेनिंग देश में कई जगहों पर दी जा रही है। तिरुचिरापल्ली में 'नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना' में इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें कोर्स के हिसाब से फीस जमा करनी होती है। इसके अलावा नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, कोयंबटूर से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है। कई राज्यों में कृषि विज्ञान केंद्र में भी इसके बारे में जानकारी दी जाती है। कई किसान व्यक्तिगत रूप से भी लोगों को ट्रेंड करने का काम कर रहे हैं।

खेत से केले के तने को काटकर लाने के बाद मशीन के जरिए उसकी प्रोसेसिंग की जाती है। फिर इससे प्रोडक्ट तैयार किए जाते हैं।
खेत से केले के तने को काटकर लाने के बाद मशीन के जरिए उसकी प्रोसेसिंग की जाती है। फिर इससे प्रोडक्ट तैयार किए जाते हैं।

बनाना फाइबर से बनने वाले प्रोडक्ट

  • मछली पकड़ने वाले जाल
  • रस्सियां
  • चटाई
  • सैनिटरी पैड्स
  • करेंसी पेपर
  • हैंडीक्राफ्ट्स
  • कपड़े, चादर, साड़ियां



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