मीडिया और एडवरटाइजिंग इंडस्ट्री में कई सालों तक काम करने के बाद रितु ओबेरॉय ने अपने घूमने-फिरने के शौक को पूरा किया। सफर के दौरान उसने ऐसे कई गांव भी देखें जहां साड़ी बुनने वाले कारीगरों और बुनकरो में योग्यता की कोई कमी नहीं है। लेकिन फिर भी यहां के कारीगर अपनी मेहनत की बहुत कम कीमत पाते हैं। रितु ने बताया कि उन्हें साड़ी पहनना बहुत अच्छा लगता है। लेकिन मेट्रो सिटीज में प्योर हैंडलूम साड़ी आसानी से नहीं मिलती हैं।
अपने अनुभव और ट्रेनिंग के आधार पर रितु ने 2018 में मुंबई में 'फॉर सारीज' की शुरुआत की। अपने ब्रांड के माध्यम से वे गांव के कारीगरों की बुनी हुई साड़ी शहरों में बेचकर उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती हैं। रितु के अनुसार इन साड़ियों को तैयार करने वाले कारीगर ही हमारी कोर टीम हैं। महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से वे अपने प्रोजेक्ट कच्छ, चंदेरी, शांतिनिकेतन, अजरखपुर, संबलपुर, राजस्थान और बुर्दवान आदि गांवों में संचालित कर रही हैं।
शांतिनिकेतन के पास पिछले दो साल से रितु कांथा प्रोजेक्ट चला रही हैं। इसका उद्देश्य महिला कारीगरों को सशक्त बनाना और उन्हें आय के साधन उपलब्ध कराना है। इन कारीगरों द्वारा तैयार किए गए हर रेंज के प्रोडक्ट वे अपने कस्टमर तक पहुंचाती हैं ताकि आम लोगों के बीच फैली यह धारणा दूर हो सके कि हैंडलूम प्रोडक्ट्स हमेशा महंगे होते हैं। फिलहाल वे 10 राज्यों के 250 कारीगरों के साथ काम कर रही हैं। उनका प्रोजेक्ट कई अन्य लोगों के लिए भी फायदेमंद साबित हुआ है।
रितु अलग-अलग सोशल मीडिया कैंपेन के माध्यम से शहरों में हैंडलूम साड़ी को बढ़ावा देना चाहती हैं। हैंडलूम साड़ी के अलावा वे होम डेकोर और बालकनी ऐसेसरीज भी अपने कारीगरों से बनवाती हैं। इस तरह कारीगरों के लिए आय के साधन बढ़ाने में भी उनका प्रयास सराहनीय है।