इंदौर। एक दिन पहले तक इंदौर का एक बड़ा तबका बंगाल में जीत के जश्न की तैयारी कर रहा था। सभी को विश्वास था कि पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के काम से बंगाल की जीत निश्चित है, लेकिन अब वे ही लोग उनकी अगली भूमिका को लेकर पसोपेश में हैं। राजनीतिक हल्कों में दो-तीन समीकरण चर्चा में हैं। पहला यह कि वे बंगाल के प्रभारी बने रहेंगे, लेकिन इसमें सबसे बड़ा पेंच समय का है। लोकसभा चुनाव में अभी तीन वर्ष है और अगले विधानसभा चुनाव पांच साल बाद ही होंगे। ऐसे में इतना समय वो शायद ही वहां लगाना चाहेंगे।
दूसरा विकल्प है कि विजयवर्गीय केंद्र में कोई नई भूमिका निभाएं।जीत के कयासों के बीच यह बात दमदारी से उठाई जा रही थी कि बंगाल चुनाव के बाद विजयवर्गीय को केंद्र में कोई बड़ी भूमिका मिलेगी। समर्थक उन्हें केंद्र में मंत्री बनाए जाने के दावे तक कर रहे थे। अब इस पर भी कोई बात करने की स्थिति में नहीं है। पार्टी या सत्ता में उनकी क्या भूमिका होगी, यह शीर्ष नेतृत्व ही तय करेगा। तीसरा विकल्प उनकी मप्र में वापसी है, लेकिन इस पर भी उतने ही सवाल हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही कि यदि विजयवर्गीय मप्र की सक्रिय राजनीति में लौटते हैं तो उनकी भूमिका क्या होगी। हालांकि समर्थक उनके प्रयासों से निराश नहीं हैं। वे कहते हैं कि नंदीग्राम से ममता की हार और प्रदेश में भाजपा का 3 से 76 सीटों तक का सफर छोटी बात नहीं है।
कोरोना से आखिरी दौर में आई दिक्कत: कैलाश विजयवर्गीय
दीदी का किला ढहा नहीं पाए, कहां चूक हुई?
इसके पहले चुनाव में भी मैं वहां था, हमें तीन सीटें मिली थीं। अब 70 से अधिक सीटें जीती हैं। वहां की जनता ने हमें अधिकृत विपक्ष के तौर पर चुना है। राज्य में दो ही पार्टियां रह गई हैं। यह उपलब्धि भी कम नहीं है। फिर सीपीएम और कांग्रेस ने भी तृणमूल के पक्ष में सरेंडर कर दिया था। उनके जो 7-8 फीसदी वोट थे, वे भी तृणमूल को मिले। अंतत: तृणमूल को इतनी ही बढ़त मिली है।
उम्मीदवार चयन, बंगाल का मूड भांपने में कोई गलती रही क्या?
60 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं, जहां हम 10 हजार से भी कम अंतर से पीछे रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराया है, इसलिए यह नहीं कह सकते कि हमारे प्रयासों में कोई कमी रही या आंकलन-अनुमान में किसी तरह की त्रुटियां रहीं।
चुनाव कार्यक्रम का लंबा होना नुकसानदायक तो नहीं रहा?
हम कोरोना के कारण आखिरी चरण में उतनी ताकत नहीं लगा पाए। खासकर कोलकाता रीजन में हारे, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, जेपी नड्डा के कार्यक्रम होने थे, जो नहीं हो पाए। यदि पहले थोड़ा भी अंदाजा होता तो यहां योगी, राजनाथ सिंह आदि की सभाएं जल्दी करा सकते थे।
अब फिर मप्र की राजनीति में सक्रिय होंगे?
मप्र से तो मैं अब में काफी आगे निकल गया हूं। पार्टी महासचिव के रूप में मेरे पास दिल्ली में बहुत काम है। और यह अपने आप में बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। आगे पार्टी जैसा भी आदेश करेगी, उस भूमिका का निर्वहन करूंगा। इंदौर से मेरा स्वाभाविक लगाव है। दो-तीन दिन में इंदौर लौटूंगा और वहां कोरोना से लड़ने में आ रही परेशानियों को दूर करने का प्रयास करूंगा