महाराष्ट्र के अहमदनगर से 60 किलोमीटर दूर एक गांव है निघोज। यहां की 21 साल की श्रद्धा धवन पिछले 10 साल से डेयरी फार्म चला रही हैं। वह खुद दूध निकालती हैं और खुद ही बाइक पर सवार होकर बांटने भी जाती हैं। यहां तक कि अपनी भैंसों के लिए चारा काटने और उनकी देखरेख का काम भी वे बखूबी कर रही हैं। महज 4-5 भैंस से शुरू हुआ उनका कारोबार अब इतना आगे बढ़ गया है कि उनके पास 80 से ज्यादा भैंसें हैं। और हर महीने इससे 6 लाख रुपए उनकी कमाई हो रही है।
श्रद्धा एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता पहले भैंस खरीदने-बेचने का काम करते थे। बाद में उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। इसका असर उनके कारोबार पर पड़ा। धीरे धीरे भैंसों की संख्या घटने लगी। एक वक्त ऐसा भी आया जब उनके पास सिर्फ एक ही भैंस बची थी। जैसे तैसे उनके पिता परिवार की जिम्मेदारियां संभाल रहे थे।
कम उम्र में ही संभाल ली जिम्मेदारी
श्रद्धा कहती हैं कि जब 11-12 साल की थी तब मुझे लगा कि पापा की मदद करनी चाहिए। मैं पापा के साथ काम सीखने लगी। उनके साथ मेले भी जाने लगी जहां से वे भैंसे खरीदते थे। धीरे-धीरे मुझे चीजें समझ में आने लगीं। मैं भैंसों की नस्ल समझने लगी। इसके बाद मैंने दूध निकालना भी सीख लिया।
अपने माता-पिता के साथ श्रद्धा धवन। श्रद्धा पिछले 10 साल से डेयरी का काम संभाल रही हैं।
श्रद्धा बताती हैं कि एक लड़की होकर ये सब काम करना थोड़ा अजीब लगता था। मेरे साथ की लड़कियां कमेंट भी करती थीं, लेकिन मुझे परिवार की चिंता थी। पिता समर्थ नहीं थे और भाई बहुत छोटा था। इसलिए मैंने तय किया कि ये काम मैं आगे बढ़ाऊंगी।
साल 2012-13 में श्रद्धा के पिता ने उन्हें जिम्मेदारी सौंप दी। इसके बाद श्रद्धा ने पिता के बिजनेस से हटकर 4-5 भैंसों के साथ डेयरी का काम शुरू किया। वह रोज सुबह जल्दी उठकर भैंसों को चारा डालतीं, फिर उनका दूध निकालतीं। इसके बाद कंटेनर में दूध भरकर लोगों के घर बांटने निकल जाती थीं। इसके बाद वे स्कूल जाती थीं। फिर शाम को स्कूल से लौटने के बाद यही काम शुरू हो जाता था।
ग्राहक बढ़े तो बाइक से दूध डिलीवरी करना शुरू किया
श्रद्धा कहती हैं कि 2013 तक हमारे पास करीब एक दर्जन भैंसें हो गई थीं। हमारे ग्राहक भी बढ़ गए थे और दूध का प्रोडक्शन भी ज्यादा होने लगा था। इसलिए अब मुझे डिलीवरी के लिए बाइक की जरूरत थी। फिर मैंने बाइक खरीदी, उसे चलाना सीखा। इसके बाद घर घर दूध पहुंचाने का काम शुरू कर दिया।
श्रद्धा अपनी भैंसों को चारा खिलाती हुईं। डेयरी के काम के साथ वे अपनी पढ़ाई भी करती हैं।
काम के साथ-साथ पढ़ाई भी
श्रद्धा बताती हैं कि शुरुआत में इस काम को करते हुए पढ़ाई करना मुश्किल हो रहा था, लेकिन बाद में मैंने टाइम मैनेजमेंट सीख लिया। सुबह भैंसों को खिलाने पिलाने और दूध डिलीवरी करने के बाद स्कूल जाती थी। लौटने के बाद थोड़ा आराम करती और फिर अपने काम में लग जाती थी। शाम का काम खत्म करने के बाद अपनी पढ़ाई करती थी।
साल 2015 में श्रद्धा ने 10वीं पास की। अभी श्रद्धा फिजिक्स से मास्टर्स कर रही हैं। जबकि उनका छोटा भाई डेयरी का कोर्स कर रहा है।
हर दिन 450 लीटर से ज्यादा होता है दूध का प्रोडक्शन
श्रद्धा कहती हैं कि जैसे-जैसे काम आगे बढ़ता जा रहा था। मैं भैंसों की संख्या बढ़ाते जा रही थी। 2016 में हमारे पास करीब 45 भैंसें हो गई थीं। और हर महीने हम ढाई से तीन लाख का बिजनेस कर रहे थे। हमने कुछ डेयरी वालों से टाइअप कर लिया था। हम घरों में दूध बांटने की बजाय डेयरी वालों को दूध देने लगे। इससे मुनाफा भी हुआ और वक्त की भी बचत होने लगी।
श्रद्धा दूध भी निकाल लेती हैं और उसे डेयरी तक डिलीवर करने भी खुद ही गाड़ी चलाकर जाती हैं।
अभी श्रद्धा के पास 80 से ज्यादा भैंसें हैं। हर दिन 450 लीटर दूध का प्रोडक्शन होता है। उन्होंने तीन से चार लोगों को काम पर रखा हैं। 20 भैंसों से रोजाना दूध वे अकेले निकलतीं हैं। अब उन्होंने खुद का दो मंजिला तबेला बना लिया है। अब वे बाइक की जगह बोलेरो से दूध डिलीवरी करने जाती हैं।
चारे की दिक्कत हुई तो खुद ही उगाना शुरू कर दिया
श्रद्धा बताती हैं कि शुरुआत में भैंसों की संख्या कम थी तो चारे की दिक्कत नहीं होती थी। हमें मुफ्त में चारा मिल जाता था, लेकिन जब इनकी संख्या में इजाफा होने लगा तो हमें चारा खरीदना पड़ गया। इसका असर हमारे कारोबार पर भी होने लगा। हमें लगा कि अब ऐसे ही रहा तो हम बहुत दिनों तक सर्वाइव नहीं कर पाएंगे। इसके बाद मैंने तय किया कि खुद ही अपनी भैंसों के लिए चारा उगाएंगे। और अपने खेत में हमने फसल लगा दी।
डेयरी फार्मिंग के साथ श्रद्धा थोड़ी बहुत खेती भी करती हैं ताकि भैंसों के लिए चारे की व्यवस्था हो जाए।
डेयरी फार्मिंग के साथ ही श्रद्धा अब बायोफर्टिलाइजर तैयार करने का काम कर रही हैं। पिछले तीन महीने से वो इस काम में लगी हैं। इसके लिए उन्होंने एक्सपर्ट्स से ट्रेनिंग भी ली है। इसके साथ ही श्रद्धा खुद भी कई किसानों और महिलाओं को ट्रेनिंग देने का काम करती हैं। अब गांव वाले श्रद्धा के काम की तारीफ करते हैं।