पानीपत. 31 मार्च को जब मेरी रिपोर्ट आई तो डॉक्टरी पेशे के प्रोटोकॉल की तरह मुझे पहले नहीं बताया गया। मेरे पॉजिटिव होने की बात बड़ी बहन ने बताई। उसका फोन आया, बात-बातों में कहा कि तेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। मैंने लंबी सी सांस ली और कहा कि मेरी रिपोर्ट भले ही पॉजिटिव हो पर हौंसले भी कम पॉजिटिव नहीं है। मैं ठीक होकर घर आउंगी। फोन तो मेरी बहन ने मुझे समझाने के लिए किया था लेकिन जब मैंने उसे ऐसा बोला तो उसने भी राहत की सांस ली।
पंचकूला के सिविल अस्पताल में 20 मार्च को मेरी नाइट ड्यूटी थी। मैं ड्यूटी पर पहुंची तो मेरी दूसरी साथी एक लेडीज के बारे में बात कर रही थी, क्योंकि उसके सैंपल कोरोना टेस्टिंग के लिए भेजे गए थे। उनकी बाते सुनते-सुनते ही मैंने पीपीई किट पहनी और ड्यूटी पर चली गई। ड्यूटी आइसोलेशन वार्ड में थी। मैंने जाते ही उस महिला का बीपी चैक किया। बीपी चैक करते-करते उससे बाते करने लगी। उसके बारे में पूछा। वो अपने घर की बात बताने लगी। वह दुखी थी, पति को लेकर। इस बीच उसने अपने पति के पास फोन मिला दिया। दोनों के बीच नोकझोंक होने लगी, ये देख मैंने उससे फोन ले लिया और स्पीकर पर करके उसके पति को समझाया। फिर वहां से बाहर आकर अपने ग्लव्स बदले और पेपर वर्क करने लगी। करीब 11 बजे मेरे पास नोडल अॉफिर का फोन आया और बोले कि जो महिला भर्ती है उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। सावधानी बरतना। ये बात हमने महिला को नहीं बताई। उसके साथ आइसोलेट किए गए उसके बेटे को बताई क्योंकि उसे दूसरे वार्ड में शिफ्ट करना था। उसके बेटे की रिपोर्ट नेगेटिव थी। उसके बेटे को समझाकर दूसरे वार्ड में शिफ्ट कर दिया। जब ऐसा करने लगे तो उस महिला को शक हो गया, वो खुद से पूछने लगी कि बेटे को क्यों शिफ्ट किया गया है। ये पता चलते ही वह रोने लगी, उसे जैसे-तैसे समझाया। कुछ देर के बाद महिला को लूजमोशन हो गए। वो बार-बार वॉशरूम जाने लगी, उसे बार-बार कहना पड़ रहा था कि मास्क लगा ले। रात भर मैं आइसोलेशन के कॉरिडोर में बैठी रही। मरीज का वॉशरूम और हमारा वॉशरूम साथ-साथ है। रात में मेरी कुर्सी पर बैठे-बैठे आंख भी लग गई थी। मुझे नहीं पता कि उसने हमारा वॉशरूम भी उसने इस्तेमाल कर लिया हो या नहीं। अब एक बात प्रचारित की जा रही है कि मुझे मोबाइल पर बात करने से कोरोना हुआ जो कि गलत है। क्योंकि, मोबाइल पर तो मैंने स्पीकर पर बात की थी इससे पहले तो मैंने उसका बीपी लिया, उसे दवाई दी। मुझे खुद नहीं पता कि मैं कैसे कोरोना पॉजिटिव हुई।
'‘रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो हमें क्वारैंटाइन किया गया'
सुबह ड्यूटी खत्म होने लगी तो सब नर्स ये कहने लगी कि हमने कभी न कभी उस महिला के साथ ड्यूटी की है। हमारा भी टेस्ट होना चाहिए। इस पर डॉक्टर ने हमें होम क्वारैंटाइन के लिए कह दिया। मेरी कुछ साथी वहीं अस्पताल में भर्ती हो गई लेकिन मैं घर चली गई। मैंने घर जाते ही अपने बर्तन, कपड़े अलग कर दिए। दोनों बच्चों और सास-ससुर को क्वारैंटाइन के लिए समझा दिया, वो मान गए। इस बीच न वो मेरे कमरे में आए, न मैं उनके कमरे में गई। 6 दिन बाद मेरे मन में ख्याल आया कि मेरा तो सैंपल ही नहीं लिया गया, तो मैंने डॉक्टर के पास फोन कर दिया। हालांकि मुझे कोई लक्षण नहीं थे लेकिन 7वें दिन यानि 27 मार्च को मैं सैंपल देने के लिए खुद घर से अस्पताल के लिए निकल ली। बारिश थी लेकिन स्कूटी पर रेनकोट पहनकर अस्पताल पहुंची। मुझे जाते ही डॉक्टर ने भर्ती कर लिया। जब सैंपल की बारी आई तो डॉक्टर ने सिर्फ गले से सैंपल लिया नाक से सैंपल नहीं लिया। तीन दिन तक इंतजार किया लेकिन पता चला कि सैंपल फेल हो गया। 30 मार्च को मेरा फिर से सैंपल लिया गया।
‘'पल-पल बच्चों और सास-ससुर को समझाया'
सैंपल फेल हुआ तो मेरे सास-ससुर और बच्चे परेशान होने लगे। जैसे-तैसे उन्हें समझाया। जब तक रिपोर्ट नहीं आई मानसिक दबाव बहुत ज्यादा था। अकेले कमरे में खुद को पल-पल समझा रही थी। मैंने खुद को कमजोर नहीं होने दिया। सबसे ज्यादा मदद मेरे अध्यात्म के प्रति झुकाव ने की। मैंने भजन सुने। मन में एक ही भाव था कि भगवान जो करेगा अच्छा करेगा। आर्मी में मेरठ पोस्टेड मेरे सूबेदार पति ने बहुत स्पोर्ट कर रहे थे। वो दूर रहकर भी मुझे ऐसे समझा रहे थे, मानों मेरे पास हो। इतने स्पोर्ट ने मुझे मैंटली बहुत स्ट्रॉग कर दिया। इस बीच 31 को मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। मुझे नहीं पता था क्या आया है। डॉक्टर ने सबसे पहले मेरी बड़ी बहन को बताया। बहन ने मुझे फोन किया और बात-बातों में पॉजिटिव होने की बात कही। मैं बिल्कुल भी नहीं डरी। क्वारैंटाइन रहते हुए मेरा मनोबल बड़ा मजबूत हो गया था।
'‘बच्चों के सैंपल लिए तो दो दिन खाना नहीं खाया'
मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो डॉक्टरों ने मेरे परिवार को क्वारैंटाइन कर दिया। उनके भी सैंपल ले लिए। मुझे अपने पॉजिटिव होने की कोई टैंशन नहीं थी लेकिन जब बच्चों के सैंपल लिए गए तो मुझे बहुत टेंशन हो गई। मन बहुत दुखी था। मैंने दो दिन तक खाना नहीं खाया। हर वक्त एक ही बात मन में थी कि मुझसे कहीं मेरे बच्चों या सास-ससुर को नहीं हो गया हो। शरीर में कमजोरी फील हो रही थी लेकिन खाना अच्छा नहीं लग रहा था। बार-बार सूबेदार साहब के फोन आ रहे थे। लॉकडाउन की वजह से वे भी चाहकर नहीं आ सकते थे। दो दिन कैसे बीते, ये मेरा ही दिल जानता है। बाद जब रिपोर्ट निगेटिव आई तो मेरी सांस में सांस आई।
'‘रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही स्टाफ का बर्ताव बदल गया'
मुझे सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि जैसे ही मेरी रिपोर्ट आई तो स्टाफ का बर्ताव एकदम से बदल गया। जो डॉक्टर और सीएमओ कुछ दिन पहले तक मेरे साथ अच्छे से बात कर रहे थे, वे ठीक से बात भी नहीं कर रहे थे। किसी डॉक्टर या प्रशासन से जुड़े अधिकारी तक फोन तक नहीं आया कि उन्होंने मुझे सांत्वना दी हो। हां, जब मीडिया में खबरें आने लगी तो सीएमओ मैडम का मेरे पास फोन आया। इस बर्ताव ने मुझे बहुत दुखी किया। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस बर्ताव को बदलने की जरुरत है। इस दौरान हमारी नर्सिंग यूनियन और नर्स बहनों ने बहुत साथ दिया। इसी की बदौलत मैं अब ठीक हूं, जल्द ही दोबारा काम पर लौटूंगी।