11 साल पहले भी खुदाई से चट्टानें टूटी थीं, मंत्रालय ने बांध और प्रोजेक्ट को खतरनाक बताया पर निर्माण जारी रहा

Posted By: Himmat Jaithwar
2/9/2021

उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को आई आपदा को रोका जा सकता था। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि, तपोवन बिजली प्रोजेक्ट को लेकर 2016 में गंगा शुद्धिकरण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में ऐतराज जताया था। मंत्रालय ने उत्तराखंड में नए बांध और पावर प्रोजेक्ट को खतरनाक बताया था, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने इसका विरोध किया और हलफनामा (एफिडेविट) देने की बात कही।

लेकिन, दस्तावेज में खतरा दर्ज होने के बावजूद हलफनामा दायर नहीं हुआ। इस वजह से बांधों का निर्माण जारी रहा। 2009 में सुरंग के लिए बोरिंग के दौरान अलकनंदा के किनारे जमीन के भीतर पानी सहेजने वाली चट्‌टानें टूट गई थीं। इसे पर्यावरणविदों ने चेतावनी माना, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने इसे दरकिनार कर दिया। आखिरकार रविवार को दो बिजली प्रोजेक्ट बह गए।

गंगा शुद्धिकरण मंत्रालय ने चिंता जताई थी

  • 69 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से भागीरथी नदी को 81% और अलकनंदा नदी को 65% नुकसान हुआ है।
  • 1980 के बाद सड़कों और बिजली प्रोजेक्टों के लिए 8.08 लाख हेक्टेयर वनभूमि काे नुकसान हुआ। उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली और पिथौरागढ़ जिलों में ज्यादा नुकसान हुआ। ये 2013 की आपदा में भी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे।
  • गंगा के ऊपरी क्षेत्र का हिस्सा भूस्खलन वाला है। सुरंगों के लिए किए जाने वाले विस्फोटों ने इलाके को और ज्यादा नाजुक बना दिया है।
  • प्रोजेक्ट्स के लिए पेड़ों की कटाई कभी भी विनाश ला सकती है।

गांव वाले पत्ते नहीं तोड़ सकते, लेकिन पावर प्रोजेक्ट लग रहे हैं
पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी का कहना है कि​ नंदादेवी बायोस्फियर है। गांववालों को वहां पत्ते तोड़ने का भी हक नहीं, लेकिन पावर प्रोजेक्ट लग रहे हैं।

आपदा की 2 वजह हो सकती हैं
पहली
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डॉ. संतोष कुमार राय ने बताया, '5-6 फरवरी को बर्फबारी हुई, पर 7 फरवरी की सैटेलाइट इमेज में बर्फ गायब है। यानी, यह हिमस्खलन ही था।'
दूसरी
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट ने बताया, 'ग्लेशियर की तलहटी में भूस्खलन से नदी का पानी कुछ समय के लिए रुका और झील बनी, लेकिन प्रेशर पड़ने से झील ढह गई। इससे बाढ़ आई।'



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