खंडवा। साइकिल आती है पर पैर जमीन पर नहीं टिकते, मन में एक्सीडेंट का डर, लॉकडाउन के बाद से स्कूल बस भी बंद, लेकिन स्कूल जाने की जिद थी। इसलिए 5वीं के इस छात्र ने घोड़े पर बैठकर स्कूल जाने की ठानी। यह बालक घोड़े पर बैठकर रोज डेढ़ किलोमीटर दूर स्कूल जाता है तो रास्ते में हर किसी की नजर उस पर ठहर जाती है।
स्कूल के अलावा बाजार भी घोड़े पर बैठकर ही जाता है। बालक की उम्र 12 साल है और घोड़े की दो साल। घोड़े पर बैठने और उतरते वक्त बालक को सहारे की जरूरत पड़ती है। बैठते वक्त घर के लोग तो उतरते वक्त स्कूल वाले सहारा दे देते हैं।
जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर बोराड़ीमाल निवासी देवराम यादव का बेटा शिवराज यादव कक्षा 5वीं में किड्स पब्लिक स्कूल में पढ़ता है। घर से स्कूल डेढ़ किलोमीटर दूर राजपुरा-कालमुखी के बीच है। किसान देवराम ने बताया लॉकडाउन के बाद से स्कूल बसें बंद हैं। ओटला क्लासें चालू हुईं तो बेटे को जाने के लिए साधन नहीं था। क्योंकि उसे गाड़ी पर बैठने में डर लगता है कि कहीं एक्सीडेंट न हो जाए। चिंता थी कि उसके भविष्य का क्या होगा।
आखिरी विकल्प घोड़ा ही था, जिसे मैंने डेढ़ साल पहले (तब घोड़ा तीन महीने का था) एक हजार रुपए में खरीदा था। इस दौरान घोड़ा और बेटा दोनों अच्छे दोस्त बन गए। फिर क्या था बेटा घोड़े पर बैठकर स्कूल जाने लगा। अब वह 40 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से घोड़ा दौड़ाता है।
घोड़ा चलाने से पेट्राेल और डीजल का खर्च भी घटा
12 वर्षीय शिवराज ने बताया घर के लोग घोड़े पर बैठा देते हैं। स्कूल पहुंचते ही ओटले या टीचर का सहारा लेकर घोड़े से उतर जाता हूं। गाड़ी पर इसलिए नहीं बैठता हूं क्योंकि एक्सीडेंट का डर बना रहता है। जबकि घोड़े पर सफर के दौरान ऐसा नहीं होता, क्योंकि रास्ते पर दौड़ते वक्त घोड़ा संभावित एक्सीडेंट को भांपते हुए खुद की जान बचाए, तो मैं भी बच ही जाऊंगा। पर्यावरण संरक्षण भी होता है। लॉकडाउन के बाद ओटला क्लास चालू हुई तो वहां तक जाने के लिए साधन नहीं था। घबराकर दूसरे की गाड़ी पर स्कूल पहुंचा तो लेट हो गया। टीचर ने कहा खुद के साधन से क्यों नहीं आते। तब से घोड़े पर स्कूल आने लगा।