नई दिल्लीः खिचड़ी एक ऐसा व्यंजन है जो परंपरा और सेहत दोनों से जुड़ा हुआ है. फिर चाहे अमीर हो या गरीब, खिचड़ी सबका पसंदीदा खाना है. इस लिए खिचड़ी को व्यंजनों का राजा कहा जाता है.खिचड़ी बहुत कम खर्च और कम वक्त में बन जाती है.
मकर संक्रांति के अवसर पर प्रसाद के रूप में बनती है खिचड़ी
मकर संक्रांति के अवसर पर उड़द की दाल और चावल की खिचड़ी प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है. यह परंपरा काफी सालों से चली आ रही है. लेकिन आपको पता है कि मकर संक्रांति के मौके पर खिचड़ी बनाने की शुरुआत कब और कहां से हुई थी? इसकी कहानी मध्य प्रदेश के जबलपुर से जुड़ी हुई है.
इतिहासकारों के मुताबिक त्रिपुरी युद्ध के बाद जब शैव मत की स्थापना हुई तो सभी अन्नों को मिलाकर खिचड़ी बनाई गई, जिसे महादेव को समर्मित किया गया था. त्रिपुरी जबलपुर के निकट कलचुरी साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी.
मकर संक्रांति पर कैसे हुई खिचड़ी की शुरुआत?
महादेव शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया. इसके बाद तारकासुर के 3 पुत्रों तारकाक्ष, कमलाक्ष, विद्युन्माली ने बदला लेने की ठानी. उन्होंने शक्ति हासिल करने के लिए भगवान ब्रह्मा की तपस्या की. उनकी तपस्ता से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा प्रकट हुए तो तीनों ने वरदान मांगा.
उन्होंने तीन अभेद्य नगरी स्वर्णपुरी, रजतपुरी और लौहपुरी की मांग की, जो आकाश में उड़ती रहें और हजार वर्ष बाद ही एक सीध में आएं. तभी तारकासुर के तीनों पुत्रों और अभेद्य नगरियों का विनाश हो सके. ब्रह्मा जी ने वरदान दे दिया. तारका पुत्रों ने तीनों लोकों में तांडव करना शुरू कर दिया.
तारका के पुत्रों को ब्रह्मा द्वारा वरदान में मिलीं तीनों पुरियां मूल रूप से त्रिपुरी जबलपुर में ही रहतीं और काल गणना के अनुसार हजार वर्ष बाद इनके जबलपुर में ही एक सीध में आना तय था. तारकाक्ष, कमलाक्ष, विद्युन्माली को पराजित करने के लिए युद्ध शुरू हुआ.
इस युद्ध के लिए महादेव शिव के लिए एक रथ तैयार हुआ, जिसमें सूर्य और चंद्रमा रथ के पहिये बने. इंद्र, यम, कुबेर, वरुण, लोकपाल महादेव के रथ के अश्व बने. धनुष पिनाक के रूप में हिमालय और सुमेर पर्वत, उसके डोर के रूप में वासुकी और शेषनाग, बाण में भगवान विष्णु और नोक में अग्नि देव समाए.
त्रिपुरी युद्ध में विजय के बाद महादेव ने भोजन में खाई थी खिचड़ी
महादेव ने श्रीगणेश का आव्हान किया. तीनों तारका पुत्रों की पुरियां जब त्रिपुरी में एक सीध में आईं तो भगवान शिव ने पशुपत अस्त्र से एक ही बाण में इनका विध्वंस कर दिया. इस युद्ध के खत्म होने के बाद त्रिपुरी में शैव मत की स्थापना हुई.
यह युद्ध नवंबर, दिसंबर के दौरान हुआ था, जिसके बाद जनवरी में मकर संक्रांति पड़ी. इस मौके पर महादेव को सभी अन्नों को मिलाकर बनाई खिचड़ी भोजन में समर्पित की गई. तभी से मकर संक्रांति पर्व पर खिचड़ी की परंपरा शुरू हुई.