भोपालः मध्य प्रदेश को बासमती चावल उत्पादक राज्य का दर्जा देने का मामला सुलझता नजर आ रहा है. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ने जीआइ टैग (भौगोलिक संकेतक) देने को लेकर उठाई गई आपत्ति वापस लेने का निर्णय लिया है. अब केंद्रीय कृषि मंत्रालय इस पर कार्रवाई करेगा. वहीं, मध्य प्रदेश भी सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी विशेष अनुमति याचिका वापस ले सकता है. इसके अलावा राज्य के शरबती गेहूं को भी जीआइ टैग देने का प्रस्ताव मंजूरी के साथ एपीडा ने कृषि मंत्रालय को भेज दिया है. एपीडा (Agricultural & Processed Food Products Export Development Authority) देश में कृषि उत्पादों को जीआई टैग देने का फैसला लेने वाली एजेंसी है.
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जताई थी आपत्ति
अगस्त 2020 में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बासमती चावल को जीआई टैग (Geographical Indication Tag) दिलाने के मध्य प्रदेश के प्रयासों पर आपत्ति दर्ज कराई थी. कैप्टन अमरिंदर सिंह का तर्क था कि मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग देने से पंजाब और अन्य राज्यों के हित प्रभावित होंगे, जिनके बासमती चावल को पहले से ही जीआई टैग हासिल है. पत्र में यह भी कहा गया है कि ऐसा होने पर पाकिस्तान को भी लाभ मिल सकता है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री को लिखा था पत्र
इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पंजाब की कांग्रेस सरकार को मध्य प्रदेश के किसानों का विरोधी बताया था. साथ उन्होंने मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग देने के पक्ष में तर्क देते हुए प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था. शिवराज सिंह चौहान ने पीएम को लिखे पत्र में ऐतिहासिक दस्तावेजों के हवाले से बताया था कि सिंधिया स्टेट के रिकॉर्ड में दर्ज है कि 1944 में मध्य प्रदेश के किसानों को बासमती धान के बीज की आपूर्ति की गई थी.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च, हैदराबाद ने उत्पादन उन्मुख सर्वेक्षण रिपोर्ट में दर्ज किया है कि मध्य प्रदेश में 25 साल से बासमती धान का उत्पादन किया जा रहा है. प्रदेश के 14 जिलों में बड़ी संख्या में बासमती धान की खेती होती है पर जीआई टैग नहीं होने से इसे बाजार में 'मध्य प्रदेश के बासमती चावल' नाम से नहीं बेचा जा सकता है. चौहान ने तर्क दिया था कि इसका फायदा उठाकर व्यापारी किसानों से कम दरों पर बासमती धान खरीदकर उसका चावल दूसरे राज्यों के नाम पर निर्यात करते हैं.
वर्ष 2008 में यह मुद्दा पहली बार उठा
वर्ष 2008 में यह मुद्दा पहली बार उठा और तत्कालीन शिवराज सरकार ने बासमती धान को मान्यता दिलाने के प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली. सितंबर 2010 में एपीडा के आवेदन के खिलाफ रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडीकेशनए चेन्नई में प्रदेश सरकार ने जवाब दाखिल किया था. मध्य प्रदेश के पक्ष में निर्णय आया तो एपीडा अपीलीय बोर्ड में चला गया. साल 2016 में रजिस्ट्रार से मध्य प्रदेश के आवेदन पर दोबारा विचार करने के लिए बोर्ड ने कहा.
मध्य प्रदेश को 2018 में बासमती उत्पादक राज्य नहीं माना गया. मई 2020 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जो अभी लंबित है. एपीडा के डायरेक्टर चेतन सिंह ने बताया कि 5 जनवरी को हुई बोर्ड की बैठक में तय किया है कि बासमती चावल पर जीआई टैग के मध्य प्रदेश के दावे के खिलाफ आपत्ति वापस ली जाएगी. वहीं, राज्य के शरबती गेहूं को भी जीआइ टैग देने का प्रस्ताव मंजूरी के साथ केंद्रीय कृषि मंत्रालय को भेज दिया है.
क्या होता है जीआई टैग, इसका फायदा क्या है?
भौगेलिक संकेतक (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) में क्षेत्र विशेष में वस्तु अथवा उत्पाद के उत्पादन को कानूनी मान्यता गुणवत्ता व लक्षणों के आधार पर विशिष्ट पहचान मिलती है. मध्य प्रदेश को बासमती धान उत्पादक राज्य का जीआई टैग मिलने के बाद यहां के किसान बाजार में 'मध्य प्रदेश का बासमती चावल' नाम से अपने उत्पाद को बेच सकेंगे. इसके साथ ही बासमती चावल के नाम पर व्यापारी उपभोक्ताओं के साथ फर्जीवाड़ा नहीं कर सकेगे. राज्य के मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, हरदा, जबलपुर और नरसिंहपुर.
1.लजीज खुशबू और लंबे आकार के कारण बासमती मशहूर है.
2.हर साल करीब 15 लाख टन बासमती का निर्यात होता है.
3.पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर को बासमति का टैग मिल चुका है.
4.प्रदेश को करीब 32 हजार करोड़ रुपये कमाई इसके.
5.भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश बासमती उत्पादक देश है.
6.चीन और ब्राजील भी बासमती की कमी को पूरा करने वाले देशों में हैं.
7.खाड़ी देशों में सबसे ज्यादा बासमती चावल की डिमांड है.
8.भारत से ईरान में 21.7%, साउदी अरब में 20%, यूएई में 10.5%, इराक में 10.4%, यूरोप में 9% निर्यात होता है.
9.मध्य प्रदेश को बासमती का पेटेंट यानी जीआई टैग मिला तो डिमांड की पूर्ति के साथ किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी.
10.मध्य प्रदेश के बासमती उत्पादकों को फिलहाल अधिकतम 34 रुपए प्रति किलो का भाव मिलता है. जीआई टैग के बाद इसके दाम 124 रुपए प्रति किलो हो सकते हैं.
11.मध्यप्रदेश के किसान विदेशों में चावल निर्यात करके लगभग तीन हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा प्रतिवर्ष का लाभ पहुंचाते हैं. जीआई टैग से आमदनी दोगुना हो सकती है.
12.मध्य प्रदेश के 14 जिलों मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, हरदा, जबलपुर और नरसिंहपुर में बासमती का उत्पादन होता है.