जबलपुर। बिजली कंपनियों की कार्यप्रणाली का भी जवाब नहीं। डिफाल्टरों से करोड़ों रुपए की वसूली नहीं करने वाली प्रदेश की तीनों कंपनियां अब इसकी भरपाई ईमानदार उपभोक्ताओं से करने की तैयारी में है। इसके लिए उनके पास एक ही हथकंडा बिजली की दर बढ़ाने का है। कंपनी ने डिफाल्टरों की 3212 करोड़ रुपए की राशि माफ कर उसे बट्टे खाते में डाल दिया। अब नियामक आयोग से इसकी भरपाई के लिए याचिका लगाई है। 31 दिसंबर तक प्रदेश के आम उपभोक्ता इस पर अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। पांच जनवरी को नियामक आयोग मामले की सुनवाई करेगा।
बिजली कंपनियों ने लगाई सत्यापन याचिका
बिजली की दरों में दो प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर चुकी कंपनियां आम उपभोक्ताओं को एक बार फिर झटका देने की तैयारी में हैं। पावर मैनेजमेंट कंपनियों की ओर से मप्र विद्युत नियामक आयोग में सत्यापन याचिका दायर की गई है। वर्ष 2018-19 की इस राशि की भरपाई अब करने के लिए गुहार लगाई है कि बिजली की दरों में बढ़ोत्तरी कर इसकी भरपाई कराई जाए। पावर मैनेजमेंट की ओर से पेश की जाने वाली टैरिफ याचिका में डूबत खातों का विवरण दिया जाता है।
प्रतीकात्मक
यह ऐसे उपभोक्ता होते हैं, जिससे बिजली बिल का बकाया वसूल कर पाने में कंपनियां हाथ खड़े कर देती हैं। वसूली नहीं कर पाने की स्थित में इसे डूबत खाते में डाल दिया जाता है। सूत्रों की मानें तो यह प्रदेश का एक बड़ा स्कैंडल है। इसमें बड़े उद्योगपतियों के बिल माफ करने का खेल किया जाता है। इसकी मलाई में सभी बंदरबांट करते हैं। सूची सार्वजनिक न होने से ऐसे चेहरे अभी तक बेनकाब नहीं हो पाए।
इस तरह डिफाल्टरों की राशि माफ की गई
बिजली वितरण कंपनी |
राशि रुपए करोड़ में |
पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी जबलपुर |
771.35 |
पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी इंदौर |
762.68 |
मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी भोपाल |
1678.07 |
छह करोड़ आयोग पहले ही माफ कर चुका है
विद्युत नियामक आयोग ने 2018-19 की टैरिफ याचिका के समय छह करोड़ रुपए पहले ही डिफाल्टरों की माफ कर चुकी है। तब याचिका में डिफाल्टरों की कुल 326 करोड़ रुपए माफ करने की मांग की गई थी। आयोग ने तीनों कंपनियों से इसका डिटेल मांगा, जो वे पेश नहीं कर पाई। इसके बाद आयोग ने तीनों कंपनियों को दो-दो करोड़ रुपए का टोकन देते हुए सत्यापन याचिका पेश करने का निर्देश दिया था। अब जाकर सत्यापन याचिका पेश की गई है और आयोग से 3206 करोड़ रुपए माफ करते हुए इसकी भरपाई कराने का आग्रह किया गया है।
ये है नियम, आयोग की भी तय है सीमा
टैरिफ रेग्युलेशन 2015 के मुताबिक कुल प्राप्त राजस्व का अधिकतम एक प्रतिशत ही माफ किया जा सकता है। वह भी पूरा डिटेल देने के बाद ही आयोग ऐसा कर सकता है। इसमें कंपनी को बताना पड़ता है कि वसूली के लिए क्या प्रयास किए। इलेक्ट्रिसिटी डेफ्थ रिकवरी एक्ट का पालन किया गया की नहीं। इस एक्ट में कुर्की का प्रावधान है। किसानों से बकाया वसूलने के लिए इसी एक्ट के तहत उनके वाहन और कृषि संबंधी उपकरण उठा लाती हैं। वर्ष 2018-19 में कुल राजस्व 30 हजार करोड़ की थी। ऐसे में 3212 करोड़ की राशि 10 प्रतिशत से अधिक बन रहा है। नियामक आयोग भी इस राशि को माफ नहीं कर सकता है।
डिफाल्टरों की सूची सार्वजनिक कराए आयोग
विद्युत मामलों के जानकार अधिवक्ता राजेंद्र अग्रवाल और राजेश चौधरी ने बताया कि कंपनियां हर बार मनमानी करती हैं। पहले नियमों काे ताक पर रखकर डिफाल्टर उपभोक्ताओं को कनेक्शन दिया जाता है। इसके बाद इसकी भरपाई नियमित और ईमानदारी से बिजली बिल का भुगतान करने वाले उपभोक्ताओं से की जाती है। उन्होंने आयोग से आग्रह किया है कि ऐसे डिफाल्टरों की सूची सार्वजनिक की जाए। इससे पता चलेगा कि ऐसे कौन लोग हैं। साथ ही इसकी जवाबदारी तय करते हुए अधिकारी-कर्मचारियों से भरपाई करनी चाहिए।