सस्पेंड आईएएस पर एफआईआर होगी, डीएफओ रहे 8 अफसरों को चार्जशीट देंगे

Posted By: Himmat Jaithwar
12/24/2020

भारतीय वन सेवा के 1999 बैच के अधिकारी व निलंबित वन संरक्षक आरएस सिकरवार के खिलाफ वन विभाग अब एफआईआर दर्ज कराएगा। शासन ने लघु वनोपज संघ के एमडी एसएसएस राजपूत के साथ उमरिया सीसीएफ को इस बारे में कह दिया है। सिकरवार के साथ उमरिया में पिछले छह साल में पदस्थ रहे 8 और डीएफओ (रिटायर व तत्कालीन) को चार्जशीट भी जारी की जाएगी।

इन सभी के कार्यकाल में तकरीबन 450 से अधिक बैंकर्स चैक जारी हुए, जिसमें अंकों व शब्दों का फर्जीवाड़ा करके साढ़े सात करोड़ रुपए सरकार के खाते से निकाल लिए गए।रिटायर और वर्तमान अफसरों पर कार्रवाई के साथ ही शासन स्तर से अब यह पड़ताल भी की जाएगी कि बैंकों के अधिकारियों और ऑडिटर की मिलीभगत तो नहीं रही।

लघुवनोपज संघ और पीसीसीएफ (हॉफ) की और से जांच के लिए भेजे गए दो एकाउंटेंट ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। अब बैंक वालों और ऑडिटर से भी पूछताछ होगी। वन विभाग के अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि यह अपनी तरह का नया घोटाला है। यदि उमरिया के कैशियर कमलेश द्विवेदी का निधन नहीं होता तो यह केस भी नहीं खुलता।

सिकरवार के समय ही डेढ़ करोड़ रुपए अधिक निकाले गए। सिकरवार 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले हैं, इसलिए एफआईआर की कार्रवाई तेजी से होगी। पूर्व में पदस्थ रहे जो अधिकारी सेवा में उन्हें चार्जशीट जारी होगी। जो रिटायर हो चुके हैं, उन्हें चार्जशीट जारी करने का फैसला कैबिनेट लेगी।

कैसे करते थे फर्जीवाड़ा

किसी भी काम का चैक बनाया जाता। राशि के आगे थोड़ी जगह छोड़ी और शब्दों में राशि लिखते समय भी आगे थोड़ी जगह छोड़ी। चैक पर हस्ताक्षर की अथॉरिटी वन संरक्षक होता है। चैक उसके पास जाते ही साइन हो जाते थे। इसके बाद इसमें नंबर व शब्द बढ़ाए जाते थे। हजार का लाख हो जाता था। भास्कर के पास मौजूद दो चैक में 47 हजार 300 रुपए के आगे पांच लगाकर भुगतान पांच लाख 47 हजार 300 रुपए उठा लिया गया। इसी तरह 56 हजार 506 के आगे तीन लिखकर भुगतान तीन लाख 56 हजार 506 रुपए उठा लिया गया।

2016 से अब तक रहे अफसर: टीएस चतुर्वेदी, एमएल लाडिया, देवांशू शेखर, रिपुदमन सिंह, डीएस कनेश, बासू कन्नौजिया, प्रदीप मिश्रा, एमएस भगदिया और आरएस सिकरवार।

सरकारी पैसे निकालने का प्रोटोकॉल जो फाॅलो नहीं हुआ

साइनिंग अथॉरिटी के द्वारा चैक जारी करने के बाद हर माह के अंत में बैंक से भुगतान को री-चैकिंग करना होता है। उमरिया में पिछले छह साल में ऐसी कोई चैकिंग नहीं की गई। हर साल ऑडिट होता है, लेकिन गड़बड़ी नहीं पकड़ी जा सकी। इसीलिए संदेह बैंक अधिकारियों और ऑडिटर पर किया जा रहा है।



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