मोतीलाल वोरा का 93 साल की उम्र में निधन हो गया है। 1968 में राजनीति सफर शुरू करने वाले वोरा 17 साल में (1985) मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए थे। कांग्रेस पार्टी में उन्होंने दो दशक तक कोषाध्यक्ष रहने के अलावा अहम जिम्मेदारी निभाई। वे कभी किसी विवाद में नहीं पड़े। कांग्रेस मुख्यालय में कोई रहे या ना रहे, मोतीलाल वाेरा दस्तूर के तौर पर हर दिन जरूर आते थे।
उन्हें लोग प्यार से दद्दू भी बुलाते थे। उनके बारे में मशहूर था कि वे पार्टी की पाई-पाई का हिसाब रखते थे और एक पैसा फिजूल खर्च नहीं होने देते थे। उनकी सादगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मोतीलाल वाेरा जब मध्य प्रदेश के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, तब उनके दुर्ग स्थित घर पर नल की टोटी तक ठीक नहीं थी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मानक अग्रवाल बताते है कि 13 फरवरी 1988 को मोतीलाल वोरा ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया और अगले ही दिन केंद्र के स्वास्थ्य परिवार कल्याण और नागरिक उड्डयन मंत्री बन गए थे। इसी कारण उन्हें दुर्ग विधानसभा क्षेत्र से इस्तीफा भी देना पड़ा। लेकिन, 25 जनवरी 1989 में उन्हें फिर से मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया था। ऐसे में उन्हें दुर्ग से उपचुनाव लड़ना पड़ा।
केंद्रीय नेतृत्व ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य एवं कद्दावर किसान नेता रामचंद्र विक्कल को उपचुनाव के लिए आब्जर्वर बनाकर भेजा था। मोतीलाल वोरा ने विक्कल को भोजन लिए आमंत्रित किया था। उन्होंने घर पर संदेश भेजा कि 20-25 लोगों का खाना तैयार कर लें। उन्होंने रास्ते में जो मिला उसे भी न्यौता दे दिया। ऐसे में घर पर 100 से ज्यादा लोग पहुंच गए।
अग्रवाल के मुताबिक मोतीलाल वोरा ने कहा कि मेरे यहां इतनी बरकत होती है कि सबने खाना खा लिया। न तो कम पड़ा और न ही ज्यादा। खासबात यह है कि भोजन उनके परिवार ने ही तैयार किया था। एक भी नौकर नहीं था। सभी मेहमानों को भोजन परिवार के ही सदस्यों ने परोसा था। उस दौरान सबसे पहले भोजन कर बालकवि बैरागी वॉश बेसिन पर हाथ धोने गए। तब बैरागीजी ने मुझसे कहा कि देखा मानक नल की टोटी तक टूटी हुई है। इस बीच वोराजी का भांजा दौड़कर आया और उसने बाल्टी से पानी लोटे में भरकर उनका हाथ धुलवाया। वे चाहते तो पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर को बुलाकर ठीक करा सकते थे।
वर्ष 1986 में पूर्व केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री वीएन गाडगिल के भोपाल आगमन के मौके पर दैनिक भास्कर के चेयरमैन रमेशचंद्र अग्रवाल के साथ मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा तथा मानक अग्रवाल
आपकी सरकार-आपके द्वार’ योजना को मिली देश में पहचान
मोतीलाल वोरा के दूसरे कार्यकाल (1989) की एक योजना ‘आपकी सरकार-आपके द्वार’ को देश भर में पहचान मिली। देश में पहले मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा थे,जिन्होंने ऐसे लोगों के लिए के शुरु की, जिनकी पहुंच सरकार तक नहीं थी। उन्होंने सरकार को ही आम आदमी के घर तक पहुंचा दिया था। वे खुद भी लोगों के घर जाते थे और समस्याएं सुनते थे। आम आदमी के लिए सीएम हाउस के दरवाजे 24 घंटे खुले रहते थे। उनसे मिलने कोई बिना अप्वाइमेंट के भी पहुंचता था तो उनसे भी वे मिलते थे। उनके कार्यकाल में शायद ही कोई व्यक्ति था, जो उनके मिले बिना सीएम हाउस से लौटा हो।
रात में जब वे सोने जाते थे, उससे पहले स्टाफ से पूछते थे- कोई मिलने वाला तो नहीं है। आपकी सरकार-आपके द्वार योजना को आगे चल कर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने निरंतर रखा। शिवराज सरकार ने इसके स्वरूप बदल लिया, लेकिन उद्देश्य वही था,जो मोतीलाल वोरा का था।
हर रोज 4 घंटे गैस पीड़ितों के बीच रहते थे
उनके एक सहयोगी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशन पंत बताते हैं कि मोतीलाल वोरा जनहित में लिए जाने वाले निर्णयों के लिए जाने जाते थे। भोपाल में गैस पीडितों के लिए मुख्यमंत्री रहते मोतीलाल वोरा ने बहुत काम किया। उन्होंने गैस पीड़ितों के लिए अस्पताल बनवाए। वे हर रोज कम से कम 4 घंटे गैस पीड़ितों के बीच में रहते थे।
वे गलियों में पैदल घूमते थे और स्वास्थ्य और पानी की व्यवस्थाओं को देखते थे। जब वे वर्ष 1971 में राज्य परिवहन निगम के उपाध्यक्ष थे। उस दौरान निगम में बड़ी हड़ताल हुई थी। सीताराम जाजू निगम के अध्यक्ष थे। जितने कर्मचारियों को नौकरी से निकाला गया था, उन्हें मोतीलाल वोरा ने वापस रखवाया। नई भर्तियां भी की। निगम को खड़ा करने में उनका का अहम रोल था।
पूरे प्रदेश में खोले सरकारी कॉलेज
मोतीलाल वोरा 1980 में पहली बार अर्जुन सिंह सरकार में मंत्री बने। उन्हें उच्च शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की जिम्मेदारी दी गई। साथ में नगरीय प्रशासन विभाग भी था। अर्जुन सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे महेश जोशी के मुताबिक मोतीलाल वोरा जब उच्च शिक्षा मंत्री बने, तब सरकारी कॉलेज कम प्राइवेट कॉलेज ज्यादा थे। उनके ही कार्यकाल में प्रदेश के अधिकांश प्राइवेट कॉलेजों का अधिग्रहण सरकार ने किया। इतना ही नहीं, उन्होंने नए कॉलेज शुरु भी कराए और उच्च शिक्षा को एक नई दिशा दी।
मुफ्त में प्याज लेने से कर दिया था इंकार
मोतीलाल वोरा की कार्य पद्वति और प्रशासनिक कुशलता के कई किस्से हैं। उनके ओएसडी रहे केडी कुकरैती एक किस्सा याद कर बताते हैं - वर्ष 1987 में पुणे में मुख्यमंत्रियों की इंटर स्टेट कमेटी की बैठक थी। जिसमें मोतीलाल वोरा भी शामिल हुए थे। उस दौरान महाराष्ट्र में प्याज की बंपर पैदावार हो गई थी। बैठक में महाराष्ट्र के सीएम ने वोराजी को ऑफर दिया कि मप्र को जितनी भी प्याज चाहिए, हम मुफ्त में दे देंगे। उन्होंने बैठक में इसका कोई जवाब नहीं दिया।
जबकि उन्हें बार-बार कहा जा रहा था कि मुफ्त में दे रहे हैं। आप इतना क्यों सोच रहे हैं? बैठक खत्म होते ही उन्होंने मंत्रालय में अफसरों को फोन पर कहा कि मेरे लौटने तक यह जानकारी एकत्र कर ली जाए कि मप्र में प्याज का भाव क्या है। यदि नासिक से प्याज बुलाया जाए तो भाड़ा कितना लगेगा। भोपाल पहुंचते ही अफसरों ने उन्हें प्याज का गणित समझाया कि एमपी में प्याज को जो भाव है। उस हिसाब से देखें तो मुफ्त की प्याज महंगी पड़ेगी। क्योंकि जितना भाड़ा लगेगा, उससे सस्ती प्याज मप्र में बिक रही है। उन्होंने एयरपोर्ट से ही महाराष्ट्र के सीएम को फोन पर कह दिया- मुफ्त में प्याज लेकर जनता और सराकर पर बोझ नहीं डाल सकते।
गवर्नर रहते सीएम जैसा काम किया
मोतीलाल वोरा 26 मई 1993 से 3 मई 1996 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे। इस इस दौरान बावरी मस्जिद कांड के चलते उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन था। वे राज्यपाल की कम, सीएम की भूमिका में ज्यादा रहते थे। वे हर दिन एनेक्सी बिल्डिंग में जाकर अफसरों की बैठकें करते थे। वरिष्ठ पत्रकार अरुण पटेल बताते हैं कि वे भले ही यूपी के गवर्नर रहे, लेकिन कार्यशैली के कारण लोगों से उनका सीधा जुड़ाव था।