जिस IPS अफसर वी मधुकुमार का नाम लोकसभा चुनाव में लेनदेन की रिपोर्ट में आया, उसे ही शिवराज सरकार ने सौंपी थी ई-टेंडर घोटाले की जांच

Posted By: Himmat Jaithwar
12/20/2020

भोपाल। बीजेपी शासन में लोकसभा चुनाव में कालेधन का इस्तेमाल होने की आयकर रिपोर्ट सामने आने के बाद कांग्रेस ने पटलवार किया है। उसने जवाब में ई-टेंडरिंग घोटाले का मुद्दा उछाल दिया है। दो साल पहले हुए इस घोटाले की फाइल ईओडब्ल्यू में ठंडे बस्ते में पड़ी है। न तो कमलनाथ सरकार ने जांच में गंभीरता से लिया और न ही मौजूदा शिवराज सरकार में कोई एक्शन दिखाई दे रहा है।

इस रिपोर्ट का संबंध आयकर छापों से जुड़ा है, क्योंकि जिस आईपीएस अफसर वी मधुकुमार का नाम सीबीडीटी की रिपोर्ट में आया है, शिवराज सरकार में उन्हें ही ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच सौंपी गई थी। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शनिवार को शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल में हुए इस ई-टेंडर मामले को लेकर आरोप लगाया कि जो अफसर ई टेंडरिंग घोटाले की जांच में शामिल थे, उन्हें फंसाया जा रहा है।

उन्होंने तत्कालीन आईटी डिपार्टमेंट के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी को लेकर भी कहा कि इस घोटाले को उजागर करने वाले अफसर को सीएम ऑफिस की कमान सौंपी गई है। बता दें कि रस्तोगी ने जब ई-टेंडरिंग घोटाला पकड़ा था, उस दौरान वे एक माह के अवकाश पर चले गए थे। इस दौरान पीएचई के प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल को विभाग की कमान दी गई थी, जबकि घोटाले पीएचई विभाग में ही हुए थे।

खास बात यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ई-टेंडर घोटाले को बड़ा मुद्दा बनाया था और आरोप लगाए थे कि कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए ऑनलाइन टेंडर में टेंपरिंग की गई, लेकिन 15 माह की कमलनाथ सरकार के दौरान इस घोटाले की जांच में तेजी नहीं आई थी। इस घोटाले की जांच शिवराज सरकार में तत्कालीन मुख्य सचिव बीपी सिंह ने सितंबर 2018 में ईओडब्ल्यू को सौंप दी थी। उस समय ईओडब्ल्यू के महानिदेशक वी. मधुकुमार थे, जिनका नाम लोकसभा चुनाव के दौरान कालेधन के लेन-देन की सीबीडीटी की जांच रिपोर्ट में सामने आया है।

PM मोदी ने किया था शिलान्यास

23 जून 2018 को राजगढ़ के बांध से करीब एक हजार गांवों में पेयजल सप्लाई करने की योजना का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया, लेकिन उससे पहले यह बात पकड़ में आई कि ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ करके पीएचई विभाग के 3 हजार करोड़ रुपए के 3 टेंडरों के रेट बदले गए हैं। मामला सामने आते ही, मध्यप्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के उस वक्त के एमडी मनीष रस्तोगी ने पीएचई के प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल को पत्र लिखा और तीनों टेंडर कौंसिल कर दिए गए थे।

ई-टेंडरिंग घोटाला क्या है..?

पीएचई ने वॉटर सप्लाई स्कीम के 3 टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किए थे। इनमें सतना के 138 करोड़ और राजगढ़ जिले के 656 और 282 करोड़ के टेंडर थे। 2 मार्च 2018 को टेंडर टेस्ट के दौरान जल निगम के टेंडर खोलने के लिए अधिकृत अधिकारी पीके गुरु के इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से डेमो टेंडर भरा गया। 25 मार्च को जब टेंडर लाइव हुआ तब इस इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट के जरिए कथित तौर पर फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया। इन दो टेंडरों में बोली लगाने वाली एक निजी कंपनी दूसरे नंबर पर रही। उसने इस मामले में शिकायत की।

रेड क्रॉस से पकड़ा गया था घोटाला

सूत्रों के मुताबिक शिकायत पर प्रमुख सचिव ने विभाग की लॉगिन से ई-टेंडर साइट को ओपन किया तो उसमें एक जगह रेड क्रॉस का निशान दिखाई दिया था। विभाग के अधिकारियों ने पहले जवाब दिया कि यह रेड क्रॉस टेंडर साइट पर हमेशा आता है। विभाग के अधिकारियों का इस जवाब के बाद जांच बिठाई गई, जिसमें सामने आया कि ई-प्रोक्योरमेंट में कोई छेड़छाड़ करता है तो रेड क्रॉस का निशान आ जाता है। जांच में ई-टेंडर में टेंपरिंग कर रेट बदलने का तथ्य भी उजागर हुआ।

3 बड़े प्रोजेक्ट के ठेके, रकम 1,076 करोड़

1 - सतना के बाण सागर नदी से 166 एमएलडी पानी 1019 गांवों में पहुंचाने के लिए 26 दिसंबर 2017 को ई.टेंडर जारी किया गया था। इस प्रोजेक्ट के लिए 5 बड़ी नामी कंपनियों ने टेंडर भरे थे।

2- राजगढ़ जिले की काली सिंध नदी से 68 एमएलडी पानी 535 गांवों को सप्लाई करने का टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किया गया था। इस प्रोजेक्ट के लिए 4 नामी कंपनियों ने टेंडर भरे थे।

3 - राजगढ़ जिले के नेवज नदी पर बने बांध से 26 एमएलडी पानी 400 गांवों को सप्लाई करने के लिए 26 दिसंबर 2017 को ई-टेंडर जारी किया गया था। इस प्रोजेक्ट के लिए 7 कंपनियों ने टेंडर भरे थे।

दो साल से रिपोर्ट का इंतजार

सूत्रों ने बताया कि ईओडब्ल्यू को दो साल से फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार है। इसके लिए ईओडब्ल्यू ने केंद्र सरकार को इंडियन कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम को तीन पत्र भेजे हैं। सीईआरटी और फॉरेंसिक रिपोर्ट के ईओडब्लू की जांच आगे नहीं बढ़ पाई। चूंकि मामला रसूखदार लोगों से जुड़ा है, इसलिए प्रारंभिक जांच को एफआईआर में बदलने में पुख्ता सबूतों की जरूरत है।



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