60 हजार का कर्ज लेकर हो पाई बलबीर की अंतिम क्रिया; 40 दिन पहले दूल्हा बने जतिंदर के घर में मातम

Posted By: Himmat Jaithwar
12/20/2020

अमृतसर। दिल्ली आंदोलन से लौटते समय 12 दिसंबर को अजनाला (अमृतसर) के बग्गा गांव के बलबीर सिंह की मौत हो गई थी। घर के मुखिया वही थे। किसान अनाज उपजाकर दूसरे लोगों का पेट भरता है, लेकिन बलबीर की अंतिम क्रिया तब हो पाया, जब परिवार ने आढ़तिए 60 हजार रुपए कर्ज लिया। बलबीर की अंतिम क्रिया शनिवार को उनके घर पर रखी गई थी।

बलबीर के परिवार पर पहले से 5 लाख रुपए का कर्ज है। यह कर्ज बेटी की शादी के लिए लिया था। अब बलबीर की पत्नी और दाेनाें बेटों के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि घर का खर्च चलाना पहले से ही मुश्किल हो रहा था। उनके जाने के बाद अब वह इस कर्ज काे कैसे भरेंगे?

केस 1

पहले से ही परिवार पर है 5 लाख कर्ज
बलबीर की पत्नी सर्बजीत कौर कहती हैं, मेरे 2 बेटे हैं। बड़ा बेटा शमशेर बढ़ई है, छाेटा बेटा लवप्रीत मेडिकल स्टोर पर काम करता है। 5 साल पहले घर की छत गिर गई थी। उसी समय बेटी मनप्रीत की शादी भी तय हो गई। मजबूरी में बैंक से 5 लाख कर्ज लेना पड़ा। खेती में कमाई न हाेने की वजह से इस लोन की एक भी किस्त नहीं भर पाए। महज दो एकड़ जमीन है। परिवार का खर्च इसी जमीन से चलता है।

दूध के लिए बलबीर के परिवार ने दो पशु रखे हैं। तकरीबन 15 हजार रुपए का बिजली बिल बकाया है, कमाई नहीं हो पाने की वजह से परिवार बिल नहीं चुका पा रहा। बिजली कर्मचारी अक्सर कनेक्शन काटने आ जाते हैं। सर्बजीत बताती हैं कि पति को डर था कि नए खेती कानून लागू हो गए तो उनकी जमीन भी चली जाएगी। इसी वजह से धरने में दिल्ली गए थे।

15 जनवरी को बेटे की शादी है, इसलिए लौट रहे थे
बलबीर के छोटे बेटे लवप्रीत की शादी 15 जनवरी को होनी है। इसकी तैयारियों के लिए ही 12 दिसंबर काे बलबीर धरने से वापस आ रहे थे कि रास्ते में टांगरा के पास तेज रफ्तार कार ने उन्हें टक्कर मार दी, जिसमें उनकी मौत हो गई। बलबीर सिंह की पत्नी कहती हैं कि हमारा तो पूरा संसार ही उजड़ गया। अब कर्ज कैसे चुकाएंगे और घर कैसे चलाएंगे? घर का खर्च उन्हीं के ऊपर था। उनके रहते जैसे तैसे चलता था, अब क्या होगा, समझ नहीं आ रहा। बेटी की शादी के लिए लिया कर्ज अभी तक चुका नहीं पाए। क्रिया के लिए 60 हजार कब दे पाएंगे।

केस 2

बहू बार-बार दरवाजे को देखती है

‘साड्‌डी खेती लई बणे आह कानून रद्द ना कित्ते गए ता जट्टां दे पल्ले कुझ नहीं रहणा, सारे देश का ढिड्ड भरण वाला किसान प्राइवेट कंपनियां दा गुलाम होके रहजु?’ अपने दोस्तों के साथ अकसर ऐसी बातें करने वाला मानसा के गांव फत्ता मालोका का जतिंदर सिंह (26) आज गांव वालों के बीच नहीं है।

आंदोलनकारियों के लिए राशन ले जाते समय हिसार में जतिंदर की ट्रॉली को किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी, जिसमें उसकी मौत हो गई। 40 दिन पहले उसकी शादी हुई थी, आज घर में मातम है। शनिवार को जतिंदर का अंतिम संस्कार किया गया। जतिंदर की मां का रो-रोकर बुरा हाल है। पत्नी गुरविंदर कौर पति की मौत के बाद से बेसुध है।

‘मेरे जिगर के टुकड़े को छीन लिया’
जतिंदर की मौत के बाद परिवार का बुरा हाल है। बड़े भाई कनाडा में रहते हैं। लोगों ने बताया कि जतिंदर की शादी धूमधाम से हुई थी। खुशहाली के कुछ कार्यक्रम बीच-बीच में जारी थे। इसी बीच दिल्ली कूच का आंदोलन शुरू हो गया। जतिंदर भी दिल्ली पहुंचा। 12 दिन पहले ही अपने साथियों के साथ अपने हिस्से की सेवा कर लौटा था। बुधवार को दोबारा दो ट्रॉलियों में किसानों के लिए राशन लेकर साथियों के साथ रवाना हुआ था।

मालोका के सरपंच एडवोकेट गुरसेवक सिंह कहते है कि दिल से समाजसेवा करने वाले जतिंदर का ऐसे चले जाने का पूरे गांव को बेहद मलाल है। जतिंदर की मां कुछ ज्यादा नहीं बोल पा रहीं, लेकिन बेटे को याद कर बरबस ही रो पड़ती हैं। वे एक ही बात कहती हैं कि सेवाभाव रखने वाले हमारे परिवार से परमात्मा ने ये कैसा बदला लिया।

‘मुझे साथ क्यों नहीं ले गए, अकेले चले गए’
करीब 40 दिन पहले जतिंदर की पत्नी के रूप में ब्याह कर नई जिंदगी शुरू करने वाली गुरविंदर कौर को अब भी यकीन नहीं है कि उसका पति इस दुनिया में नहीं है। गुरविंदर समझ ही नहीं पा रहीं कि जिंदगी ने इतना क्रूर मजाक क्यों किया। गुमसुम सी, घर के दरवाजे को निहारती गुरविंदर किसी से ज्यादा बोलतीं, बस पति की बाट जोह रही हैं। आंखों में आंसू टूटे हुए अरमानों को बयां करने के लिए काफी हैं। गुरविंदर रोते हुए एक ही शब्द बोलती है- मुझे भी साथ ले जाते।



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