मंदिर विस्तार के लिए खुदाई में 20 फीट पर मिला परमार काल के मंदिर का आधार, काम रोका

Posted By: Himmat Jaithwar
12/19/2020

उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परिसर में 1000 साल पुराने परमार कालीन पुरातन अवशेष मिले हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक ये परमार काल के किसी मंदिर का आधार (अधिष्ठान) है। यहां विस्तारीकरण के लिए चल रही खुदाई के दौरान शुक्रवार को जमीन से करीब 20 फीट नीचे पत्थरों की प्राचीन दीवार मिली। इन पत्थरों पर नक्काशी मिली है। इसके बाद खुदाई कार्य रोक दिया गया है। इसकी सूचना मंदिर प्रशासन को भी दे दी गई है। यहां पुरातत्व विभाग के अधिकारी भी मौके पर पहुंचे हैं।

मंदिर परिसर में खुदाई के दौरान एक हजार साल पुराने अवशेष मिले हैँ।
मंदिर परिसर में खुदाई के दौरान एक हजार साल पुराने अवशेष मिले हैँ।

सुबह मंदिर के विस्तार के लिए सती माता मंदिर के पीछे सवारी मार्ग पर जेसीबी से खुदाई की जा रही थी। इसी दौरान आधार मिला है। इसके बाद काम रोक दिया गया। विक्रम विश्वविद्धालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ. राम कुमार अहिरवार का कहना है कि अवशेष पर दर्ज नक्काशी परमार कालीन लग रही है। ये करीब 1000 वर्ष पुरानी हो सकती है।

वहीं, मंदिर के ज्योतिषाचार्य पंडित आनंद शंकर व्यास ने बताया कि मुगलकाल में मंदिर को नष्ट किया गया था। मराठा शासकों के काल में मंदिर का फिर से निर्माण कराया गया था। जब मंदिर को तोड़ा गया, तो मंदिर का प्राचीनतम हिस्सा दबा रहा होगा। पुरातत्व विभाग को मंदिर के आसपास खुदाई करानी चाहिए।

अब पुरातत्वविदों की निगरानी में होगी खुदाई

मंदिर समिति के सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल ने बताया कि खुदाई में पाषाण के स्ट्रक्चर मिलने के बाद काम रोक दिया गया है। अब आगे की खुदाई पुरातत्वविदों की निगरानी में कराई जाएगी। विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद डॉ. रमण सोलंकी ने बताया कि खुदाई में मिले अवशेष राजा भोज के समय के हो सकते हैं। जो एक हजार साल पुराने हैं। राजा भोज ने नागर शैली और भूमि शैली में मंदिरों के निर्माण कराए थे। महाकाल मंदिर भी नागर शैली का है। खुदाई में मिले पत्थरों के अवशेषों पर लताओं के निशान हैं। खुदाई में मिट्टी की अनेक परतें भी मिली हैं। बाहरी आक्रांताओं द्वारा महाकाल मंदिर को कई बार नष्ट किए जाने का इतिहास में उल्लेख मिलता है। इतिहास में अल्तमश के हमले का भी उल्लेख है। महाकालेश्वर मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1732 में सिंधिया राजवंश के रामचंद्र शेंडवी द्वारा बनवाया गया था। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आगे की खुदाई में विक्रमादित्य कालीन अवशेष भी प्राप्त हों।



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