भोपाल। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ चार दिन के छिंदवाड़ा दौरे पर हैं। वे क्षेत्र की जनता के बीच दो दिन में दो बार कह चुके हैं कि यदि छिंदवाड़ा की जनता कहेगी तो संन्यास ले लूंगा। उनके बयान के बाद राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई हैं। पार्टी नेता इस बयान के अपनी तरह से मायने निकाल रहे हैं। कमलनाथ समर्थक कह रहे हैं कि क्षेत्र की जनता के बीच ऐसे बयान देना आम बात है, लेकिन अन्य गुटों के नेता कह रहे हैं कि सत्ता जाने के बाद कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष हैं। स्वभाविक है वे एक पद जल्द छोड़ सकते हैं। संन्यास की बात कहने से संकेत साफ है कि वे प्रदेश संगठन की बागडोर किसी अन्य नेता को सौंप सकते हैं।
कमलनाथ के राजनीतिक कद को देखें तो मध्य प्रदेश में उनके मुकाबले के नेता दिग्विजय सिंह ही हैं, लेकिन दिग्विजय सिंह के प्रदेश अध्यक्ष बनने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में दूसरी लाइन के नेताओं में से किसी को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिल सकती है।
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का दावा है कि यदि कमलनाथ पद छोड़ते हैं तो किसी युवा नेता को ही कमान सौंपी जाएगी। दरअसल, कांग्रेस ओबीसी या आदिवासी कार्ड खेल सकती है। नेता प्रतिपक्ष आदिवासी बनता है तो प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी वर्ग से बन सकता है। ऐसा निर्णय होने की उम्मीद इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि कमलनाथ के कट्टर समर्थक पूर्व मंत्री बाला बच्चन को नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए दिग्विजय सिंह सहमत हैं। ऐसे में जीतू पटवारी या अरुण यादव में से किसी एक को मौका मिल सकता है। हालांकि जमुनादेवी के भतीजे और पूर्व मंत्री उमंग सिंघार भी इस दौड़ में हैं, क्योंकि जीतू और अरुण के अलावा उमंग भी राहुल गांधी की कोर टीम के मेंबर हैं।
संन्यास के संकेत क्यों...अजय चौरे के कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने से दुखी
कमलनाथ ने सौंसर में संन्यास लेने के संकेत क्यों दिए? इसके पीछे वजह चौरे परिवार को बताया जा रहा है, जिसे कमलनाथ राजनीति में लाए थे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि दो दिन पहले पूर्व विधायक अजय चौरे भाजपा में शामिल हो गए। इससे कमलनाथ दुखी हैं। कमलनाथ ने रेवानाथ चौरे (अब दिवंगत) को विधायक का टिकट देकर राजनीति में उतारा था। वे अर्जुन सिंह की सरकार में दो बार मंत्री बने। इसके बाद सौंसर से उनकी पत्नी कमला चौरे विधायक बनीं। उनके बेटे अजय चौरे विधायक रह चुके हैं। वर्तमान में विजय चौरे विधायक हैं। सूत्रों का कहना है कि अजय चौरे के भाजपा में जाने से कमलनाथ नाराज हैं, इसिलए उन्होंने संन्यास लेने वाला बयान सौंसर जाकर दिया।
अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश कर चुके हैं कमलनाथ
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद कांग्रेस संगठन में फेरबदल की सुगबुगाहट तेज हो गई थी। उन्होंने चुनाव हार की जिम्मेदारी लेते हुए हाईकमान के समक्ष प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश कर दी थी, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया था। उपचुनाव के परिणाम के बाद यह साफ हो गया था कि कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ देंगे। संन्यास वाले बयान के बाद फिर नए अध्यक्ष को लेकर हलचल तेज हो गई है।
मध्य प्रदेश के सबसे सफल नेताओं में एक कमलनाथ
कांग्रेस के सबसे विश्वसनीय नेता और गांधी परिवार के करीबी कमलनाथ मध्य प्रदेश की सियासत का वो चेहरा हैं, जिन्होंने मध्य प्रदेश में सत्ता का वनवास काट रही कांग्रेस को वापसी कराने में अहम भूमिका निभाई है। कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में विकास की एक अलग ही कहानी लिखी है।
9 बार छिंदवाड़ा से सांसद चुने गए कमलनाथ
मध्य प्रदेश की सत्ता के सिंहासन पर बैठ गए हैं। कमलनाथ 18वें व्यक्ति हैं, जिन्हें मध्य प्रदेश का सीएम चुना गया था। कमलनाथ ने मई 2018 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली थी। नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी तब से ही पीसीसी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दूसरे किसी नेता को सौंपने की अटकलें चल रही हैं।
UP के 'कमल' कैसे हुए MP के 'नाथ'
.मध्य प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने के बाद कांग्रेस को सत्ता में वापसी कराने वाले कमलनाथ का राजनीतिक सफर गांधी परिवार के करीब होने से शुरू हुआ।कमलनाथ 34 साल की उम्र में छिंदवाड़ा से जीत कर पहली बार लोकसभा पहुंचे थे। कुल 9 बार कमलनाथ सांसद चुने गए। उन्हें सिर्फ एक बार उपचुनाव में सुंदरलाल पटवा से हार का सामने करना पड़ा था। कमलनाथ ने एक ऐसे इलाके में विकास किया है जो आदिवासी बाहुल्य और पिछड़ा माना जाता है। इस क्षेत्र की कमान संभालने के साथ ही छिंदवाड़ा में कमलनाथ ने लोगों को रोजगार दिया। आदिवासियों के उत्थान के लिए कई काम किए। उनका दिल्ली का कार्यालय 24 घंटे कार्यकर्ताओं के लिए खुला रहता है। कमलनाथ चुनाव अभियानों के लिए हेलीकॉप्टरों और सैटेलाइट फोन इस्तेमाल करने वाले शुरुआती नेताओं में से एक हैं।
कांग्रेस के संगठन में संभालीं बड़ी जिम्मेदारियां
1968 में युवक कांग्रेस में शामिल हुए।
1976 में उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस का प्रभार मिला।
1970 - 2081 तक अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहे।
1979 में युवा कांग्रेस की ओर से महाराष्ट्र के पर्यवेक्षक।
2000-2018 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव।
वर्तमान में मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं।
केंद्र सरकार में संभाले बड़े मंत्रालय
1991 से 1994 तक केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री
1995 से 1996 केंद्रीय कपड़ा मंत्री
2004 से 2008 तक केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री
2009 से 2011 तक केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री,
2012 से 2014 तक शहरी विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री