झुंझुनूं: वैसे तो झुंझुनूंं में बेटियों को बेटों के बराबर मानने के लिए कई नवाचार हुए है और परंपराएं भी टूटकर नई बनीं है, लेकिन यदि किसी घर में पांच दशक बाद बेटी (Daughter) का आगमन हुआ हो तो आप समझ सकते हैं. इस परिवार को बेटी जन्म का कितनी बेसब्री से इंतजार होगा. वहीं, वो भी उस दौर में, जब बेटियों को बोझ मानकर भ्रूण हत्याएं हो रही हो.
झुंझुनूं जिले में किसी वक्त लिंगानुपात इतना खराब था कि हर कोई झुंझुनूं की चर्चा करता था तो शर्म से सिर झुक जाता था, लेकिन अब वक्त बदला है तो लिंगानुपात भी सुधरा है. बदलते दौर में झुंझुनूं में ही नहीं, बल्कि शेखावाटी और राजस्थान में बेटियों को बेटों के बराबर दर्जा देने के लिए तमाम कोशिशें संदेश के जरिए दी जा रही है. जिसका सकारात्मक असर भी देखने को मिल रहा है. ऐसा ही एक संदेश दिया है झुंझुनूं शहर के जाने—माने समाजसेवी डॉ. डीएन तुलस्यान ने. जिनके घर करीब पांच दशक बाद बेटी का जन्म हुआ तो मानों दिवाली जैसी खुशी छा गई.
डॉ. तुलस्यान ने बताया कि करीब 51 साल पहले उनके घर में उनकी बहन ने जन्म (Birth) लिया था. इसके बाद उनके भी दो बेटे थे. वहीं, बड़े बेटे के भी पुत्र हुआ और बेटी की कमी तब भी खली, लेकिन अब छोटे बेटे सीए प्रशांत तुलस्यान और नेहा तुलस्यान के बेटी हुई तो हर कोई खुश था. आज जब प्रसूता को बेटी के साथ अस्पताल से घर लाया गया तो घर में दिवाली के दिन जैसे लक्ष्मी का स्वागत होता हैं. कुछ उसी अंदाज में नेहा और उनके साथ बेटी का स्वागत किया गया. चूणा चौक स्थित आशीर्वाद पैलेस को गुब्बारों और फूलों से सजाया गया.
वहीं, फूलों की बारिश के बीच बेटी को गृह प्रवेश दिलाया गया. वहीं, थाली बजाकर खुशी का सूण भी किया गया. डॉ. तुलस्यान ने बताया कि वैसे तो उनके भाई के भी करीब तीन दशक पहले बेटी हुई थी, लेकिन अब उनके खुद के घर में बेटी आई है तो वे उन्हें लक्ष्मी का स्वरूप मानते हैं.
झंडारोहण करवाते है बेटियों से
डॉ. तुलस्यान ने बताया कि बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान से वे और उनका परिवार काफी जुड़ाव रखता है. उनकी दशकों से बेटी की तमन्ना तो पूरी हुई है, लेकिन इससे पहले वे भी बेटियों को सम्मान देते रहे हैं. चूणा चौक स्थित आशीर्वाद पैलेस में हर गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर बेटियों से ही झंडारोहण करवाते आए हैं. इसके अलावा अन्य शुभ कार्य हो या फिर कोई उत्सव, उसमें बेटियों को पूरा सम्मान दिया जाता है.