जबलपुर। राम हाथी अब कान्हा टाइगर रिजर्व की पहचान बनेगा। वहां पहले से कई पालतू हाथी हैं, पर राम उसमें से खास होगा। 12 साल का राम अभी युवा है। औसतन एक हाथी की उम्र 70 से 75 वर्ष होती है। कान्हा के जंगल में रेस्क्यू होने के बाद राम को पालतू बनाने की ट्रेनिंग शुरू कर दी गई है, लेकिन जबलपुर के हाथ से एक बड़ा मौका छिन गया।
वन्यप्राणी विशेषज्ञों के मुताबिक 400 साल बाद जबलपुर में दो जंगली हाथी लौटे थे, लेकिन यहां हम उन्हें सुरक्षित कॉरिडोर नहीं दे पाए। अप्रैल में कान्हा-सिवनी से मंडला को निकले राम-बलराम हाथी पहली बार नए कॉरिडोर की तलाश में निकले थे। करंट ने बलराम हाथी को छीन लिया, तो उसकी मौत के विचलन ने राम की आजादी।
भटके नहीं, जायजा लेने आए
विज्ञानी डॉक्टर मोहपात्रा ने बताया कि हाथी कभी भटकते नहीं हैं। उनमें सूंड से सूंघने की अद्भुत क्षमता होती है। कान्हा से सिवनी होकर मंडला और फिर जबलपुर आना यहां के प्राकृतिक दृष्टि से अच्छा संकेत है। नर प्रजाति के दोनों हाथी अपना रास्ता भटके नहीं, बल्कि वनक्षेत्र का जायजा लेने यहां आए थे। दूसरा नर हाथी यदि सकुशल अपने समूह से वापस मिल पाता, तो भविष्य में ये फिर से जबलपुर में आ सकते थे।
ट्रेंक्यूलाइज की अवस्था में राम।
करंट से हुई थी बलराम की मौत
27 नवंबर को बलराम हाथी की मौत जबलपुर के बरगी मोहास में करंट से हुई थी। तब से राम हाथी के रेस्क्यू का प्रयास चल रहा था। छह दिसंबर को वह जबलपुर-मंडला के विभिन्न वन परिक्षेत्रों से होकर कान्हा के परसाटोला में पहुंचा था। वहां उसे ट्रेंक्यूलाइज किया गया। सात नवंबर को उसे किसली लाया गया, जहां अब उसे पालतू बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है।
ऐसी होती है ट्रेनिंग
नेशनल पार्क के चिकित्सकों ने हाथी के जांच की। विशेषज्ञों की टीम हाथी के स्वभाव का पता लगाने में जुटी है। यहां हाथी को प्रशिक्षित करने के लिए क्रॉल (लकड़ी का बाड़ा) बनाया गया है। प्रशिक्षण देने के लिए पार्क के चार महावतों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। करीब पांच से छह माह के प्रशिक्षण के बाद इसे पालतू बनाने में कामयाबी मिलेगी। वन विभाग मादा हाथी की भी सहायता ले सकता है। वैसे तो ग्रामीणों ने उसे राम उपनाम दिया है, लेकिन ट्रेनिंग के लिए क्रॉल में प्रवेश कराने के बाद नाम का निर्णय होगा। अभी कुछ दिन उसके पैरों को जंजीर से जकड़ कर रखा जाएगा। उसे समय-समय पर आहार दिया जाएगा। पालतू हाथ में घुलने-मिलने के बाद आगे का प्रशिक्षण शुरू हाेगा।
बरगी में 25 नवंबर को एक साथ दिखे थे राम-बलराम।
ये थी पूरी घटना
24 नवंबर को ग्रामीणों द्वारा मिले उपनाम वाले राम-बलराम हाथी ने जबलपुर की सीमा में प्रवेश किया था। अप्रैल से वह कान्हा के जंगल से निकल कर सिवनी और वहां से मंडला के जंगल को ठिकाना बनाए थे। पहली बार वे मंडला के जंगल से बीजाडांडी होते हुए नर्मदा का किनारा पकड़ कर नरसिंहपुर के लिए निकले थे। 25 को दोनों को बरगी में देखा गया था। दहशत में ग्रामीण विद्युत पोल पर चढ़ गए थे। 26 को नर्मदा पार कर मंगेली पहुंच गए।
27 को हुई थी बलराम की मौत
दोनों हाथी आगे बढ़ रहे थे। 27 नवंबर की सुबह चार से पांच के बीच दोनों बरगी के माेहास में पहुंचे थे। वहां जंगली सूअर के लिए बिछाए गए बिजली तार में बलराम हाथी की सूंड फंस गई। करंट के झटके ने उसकी जान ले ली। उसकी दर्दनाक मौत हो गई थी। करंट के चलते वह मुंह के बल गिरा था। इससे उसके दोनों दांत जमीन में धंस गए थे। वन विभाग ने मामले में मोहास गांव निवासी मुकेश पटेल व खुर्शी गांव निवासी पंचम आदिवासी को गिरफ्तार किया था। स्कूल ऑफ वाइल्ड लाइफ फारेंसिक लैब जबलपुर में उसकी मौत को लेकर कई तरह के रिसर्च होने हैं। वहीं, उसका बिसरा जांच सागर लैब को भेजा गया है।
राम हाथी के रेस्क्यू का टाइमलाइन
- 24 नवंबर को बरेला के नर्मदा क्षेत्र में प्रवेश किया था।
- 25 नवंबर को बरगी में दिखे थे दोनों हाथी
- 26 नवंबर को मंगेली में पहुंचे दोनों हाथी
- 27 नवंबर की सुबह 9.30 बजे बलराम हाथी मृत मिला
- 28 नवंबर को मामले में वन विभाग ने दो शिकारियों को पकड़ा
- 29 नवंबर को सर्चिंग टीम राम हाथी की तलाश में जुटी
- 30 नवंबर को बीजाडांडी में दो ग्रामीणों पर हमला किया
- 01 दिसंबर को मंडला बेस्ट से ईस्ट पहुंचा
- 03 दिसंबर को कान्हा के बफर जोन में पहुंचा
- 04 दिसंबर को वह कोर जोन में पहुंचा
- 05 दिसंबर को परसाटोला में उसके पगमार्क मिले
- 06 दिसंबर को फिर पगमार्क मिले। इसके बाद पालतू हाथी की मदद से पकड़ा गया
- 07 दिसंबर को हाथी को फिर से ट्रेंक्यूलाइज कर किसली में लाया गया
10वें दिन काबू में आया
राम हाथी जबलपुर से मंडला के जंगल से गुजरते हुए तीन को कान्हा टाइगर रिजर्व के बफर जोन में पहुंचा। चार को उसने वनमंडल के अंतर्गत सिझौरा परिक्षेत्र के मोहगांव के पास से कोर जोन के सरही परिक्षेत्र में प्रवेश किया। छह दिसंबर को राम हाथी का पग मार्क फिर परसाटोला में मिला था। इसके बाद कान्हा के छह पालतू हाथी की मदद से उसकी तलाश शुरू हुई। हाथी परसाटोला में ही मिला। शाम पौने चार बजे वन्यप्राणी चिकित्सक डॉक्टर संदीप अग्रवाल और डॉक्टर अखिलेश मिश्रा ने उसे ट्रेंक्यूलाइज किया। लगभग आधे घंटे उसकी गतिविधियों पर नजर रखी गई। जैसे ही यह सुनिश्चित हुआ कि वह ट्रेंक्यूलाइजेशन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। टीम ने उसके पैरों को जंजीरों में जकड़ दिया था। सात दिसंबर को उसे फिर से ट्रेंक्यूलाइज कर परसाटोला से किसली लाया गया था।
एक वर्ष पहले ओडिशा के जंगल से भटक कर आए थे
ओडिशा के जंगल से भटक कर एक वर्ष पहले 20 हाथियों का झुंड छग के रास्ते कान्हा पहुंचा था। अन्य हाथी तो लौट गए, लेकिन राम-बलराम यहीं रुक गए। जनवरी गन्ना के सीजन में वे सिवनी के रास्ते नरसिंहपुर निकल गए थे। अप्रैल में वापसी के दौरान सिवनी के घंसौर क्षेत्र में महुआ चुनने गए आदिवासी को मार डाला था इसके बाद दोनों को मंडला की ओर खदेड़ दिया गया था। सितंबर में दोनों कान्हा से फिर निकले थे। दो महीने तक मंडला के जंगल में रहे। इसके बाद नवंबर में दोनों जबलपुर की ओर निकले थे।
बीजाडांडी के जंगल में राम हाथी।
400 साल पहले जबलपुर में था हाथियों का बसेरा
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के विज्ञापनी डॉक्टर प्रत्युष मोहपात्रा का दावा है कि 400 वर्ष पहले जबलपुर हाथियों का गढ़ा था। तब सैकड़ों की तादाद में हाथी यहां के जंगलों में विचरण करते थे। घटते जंगल क्षेत्र और हाथी दांत पाने की चाहत में बढ़ते शिकार से इनकी तादाद घटती गई। इस वन्यजीव में कई विशेषताएं होती हैं। यह काफी अक्लमंद होता है। सूंड से जमीन पर तिनका भी उठा लेता है। इसी से भोजन को मुंह में डालने से लेकर नहाने में करता है। एक बार में यह सूंड में 14 लीटर के लगभग पानी भर सकता है।
नर व मादा हाथियों के स्वभाव में अंतर
डॉ. मोहपात्रा नर व मादा हाथियों के स्वभाव में अंतर होता है। नर हाथी लैंगिक प्रजनन क्षमता आने के बाद समूह से अलग हो जाते हैं, जबकि मादा हाथी समूह में रहते हुए बच्चों की देखभाल करती है। जन्म के समय हाथी के बच्चे का वजन 70 से 90 किलो और ऊंचाई एक मीटर होती है। हाथी की औसत उम्र 70 से 80 वर्ष होती है। राम-बलराम दोनों नर हाथी थे। उनकी उम्र 12 वर्ष के लगभग थी।
नए कॉरिडोर से जा रहे थे नरसिंहपुर।
खनन के चलते कम हो रहे वन क्षेत्र से पलायन
जबलपुर की डीएफओ अंजना सुचिता तिर्की के मुताबिक ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ के जंगल में ही हाथी दिखते थे। वहां से वे निकल कर आबादी क्षेत्र में पहुंच जाते थे। पहली बार ये हो रहा है कि उनका पलायन एमपी की ओर हुआ है। माना जा रहा है कि इन राज्यों में बढ़ते खनन से जंगलों का दायरा सिमट रहा है। इस कारण हाथी नए रहवास की खोज में पलायन करने पर विवश हुए हैं।