शहडोल। शहडोल के जिला अस्पताल से केवल 22 किलोमीटर दूर हम गोहपारू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का लेबर रूम। यहां से प्रसूता रानी के तड़पने-चीखने की आवाज आ रही है। आसपास कोई महिला डॉक्टर नहीं है जो उसे देख ले। ऑपरेशन थिएटर पर ताला लगा है। पूछने पर पता चलता है की ओटी इंचार्ज राजकली पटेल चाबी अपने साथ घर लेकर गई है।
रानी का पति संतोष प्रजापति हाथ जोड़े प्रार्थना कर रहा है...हे भगवान नॉर्मल डिलीवरी हो जाए। स्टाफ नर्स उसे दिलासा दे रही है कि थोड़ी हिम्मत रखो, सब ठीक हो जाएगा।
कुछ स्वास्थ्यकर्मियों और लोगों ने दबी जुबान में बताया कि ये हाल अकेले गोहपारू के नहीं है, बल्कि जिले के आस-पास के सभी स्वास्थ्य केंद्रों के है। यहां मरीज को देखने वाला कोई नहीं है। कहीं भी प्रसूति रोग विशेषज्ञ नहीं है। ऑपरेशन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। केवल यही कोशिश होती है कैसे भी नॉर्मल डिलीवरी हो जाए।
यदि कोई जच्चा या बच्चा जरा भी सीरियस होता है तो उसे तुरंत शहडोल जिला अस्पताल रैफर कर दिया जाता है। इस अस्पताल पर भी आस-पास के 250 गांव के लोगों के इलाज जिम्मेदारी है। वहां भी इलाज ठीक से नहीं मिल पाता और मरीज जान चली जाती है। शहडोल से 36 किमी दूर 40 खन्नौदी गांव के जिम्मे एक मात्र सीएससी है।
जहां पुरवा, बरहा, सलदा गांव के मरीज आते हैं। यहां प्रसूता की डिलीवरी होना तो दूर उसकी नब्ज मापने के लिए पल्स ऑक्सीमीटर भी नहीं है। अगर प्रसूता या बच्चे को ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ जाए तो उसे रैफर करना ही विकल्प है। एंबुलेंस के लिए भी एक मात्र जननी एक्सप्रेस का सहारा है। ड्यूटी पर मौजूद स्टाफ नर्स इतना ही कह पाती है कि हम तो अपना काम कर रहे हैं संसाधन मिल जाए तो बेहतर डिलीवरी हो सकेगी।
छत्तीसगढ़ से लगी जयसिंह नगर की सीएससी में भी ओटी बंद है। केवल नॉर्मल डिलेवरी ही हो सकती है।
अफसर-नेता देखने तक नहीं आते
मंत्री बिसहुलाल सिंह, मंत्री मीना सिंह एक भी बार यहां नहीं आए। संभागायुक्त नरेश पाल एक बार और कलेक्टर सत्येंद्र सिंह दो बार विजिट करने पहुंचे।
हमने उमरिया और अनूपपुर के अस्पतालों को ज्यादा केस रेफर नहीं करने के लिए निर्देश दिए है। छत्तीसगढ़ के बच्चे भी रेफर हो रहे हैं , जिसके चलते संख्या ज्यादा है कभी दो वेंटिलेटर का इंतजाम कर आया है।
-नरेश पाल, संभागायुक्त
20 बिस्तरों के एनआईसीयू 30 से ज्यादा बच्चे रोज भर्ती
शहडोल के जिला अस्पताल में पिछले 9 दिन में 13 बच्चों की जान जा चुकी है। पिछले 8 महीनों की रिपोर्ट बताती है कि यहां केवल 20 बिस्तरों के एनआईसीयू है, लेकिन यहां 30-35 बच्चे नियमित भर्ती रहते हैं। इसकी वजह है उमरिया और अनूपपुर जिले के बच्चे भी यही पर रैफर होना है। अनूपपुर में तीन शिशु रोग विशेषज्ञ है, जबकि उमरिया में दो वही शहडोल में एक शिशु रोग विशेषज्ञ है।
बच्चों की मौत पर सरकार का अजीब तर्क: परिजनों की देरी से बच्चों की मौत, 8 महीने में 182 जान तो भर्ती होने के 72 घंटे में चली गईपरिजनों की देरी से बच्चों की मौत, 8 महीने में 182 जान तो भर्ती होने के 72 घंटे में चली गई
शहडोल में मासूम बच्चों की मौतों के बीच सरकार ने कहा है कि 8 महीने में 182 बच्चों की मौत भर्ती होने के सिर्फ 72 घंटों हो गई। एेसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके परिजनों ने सही समय पर बीमारी की गंभीरता की पहचान नहीं की। अस्पताल नहीं लाए। यदि समय पर ये बच्चे अस्पताल पहुंच जाते तो उन्हें बचाया जा सकता था। स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने कहा कि कई बच्चे निमोनिया से पीड़ित थे। उन्हें एंटीबायोटिक भी दी गई। इलाज सही हुआ, लेकिन वे नहीं बच सके।
शहडोल जिला अस्पताल में एसएनसीयू 40 बैड का किया जा रहा है। तीन डॉक्टर भोपाल से जाएंगे। जबलपुर के डॉक्टर भी सहयोग करेंगे। विभाग ने इन मौतों पर बतौर सफाई पिछले साल के प्रदेश भर के आंकड़े जारी कर दिए कि 2019-20 की तुलना में 2020-21 में बच्चों की मौत का आंकड़ा आधा हो गया। अप्रैल 2020 से 4 दिसंबर 2020 तक आठ महीने में प्रदेश में 15519 नवजातों की मौत हुई, जबकि अप्रैल 2019 से मार्च 2020 तक 12 महीने में कुल 27934 बच्चों की मौत हुई थी।
शहडोल में हुई मौत के कारणों के बारे में कहा गया कि जन्म के समय न रो पाना, संक्रमण, प्री-मेच्यौर बच्चे का फेफड़ा नहीं बन पाना, कम वजन, निमोनिया, दिमागी संक्रमण आदि से भी मौते हुई हैं।
छत्तीसगढ़ से भी लोग शहडोल आए
यह भी कहा जा रहा है कि शहडोल में कुल नवजात शिशुओं 1039 में से 370 नवजात ऐसे हैं, जिनकी माताएं उमरिया, अनूपपुर, डिंडोरी के साथ छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर व कोरिया से आकर भर्ती हुईं।
एसएनसीयू से रिकवरी रेट 77 फीसदी
2019-2020 : एक लाख 11 हजार 53 बच्चे भर्ती, 85 हजार 438 डिस्चार्ज (76.9 प्रतिशत)
अप्रैल 2020 से 4 दिसंबर 2020 तक : 68 हजार 313 भर्ती, 52 हजार 817 डिस्चार्ज (77.3 प्रतिशत)