इंदौर. कल रात 12 बजे तक मैं दोस्तों से फोन पर पूछता रहा कि वह घर किसका है जहां डॉक्टरों पर थूका गया है, ताकि मैं उनके पैर पकड़कर, माथा रगड़कर उनसे कहूं कि ख़ुद पर, अपनी बिरादरी, अपने मुल्क व इंसानियत पर रहम खाएं। यह सियासी झगड़ा झगड़ा नहीं, बल्कि आसमानी क़हर है, जिसका मुक़ाबला हम मिलकर नहीं करेंगे तो हार जाएंगे। ज्यादा अफ़सोस मुझे इसलिए हो रहा है कि रानीपुरा मेरा अज़ीज़ मोहल्ला है। ‘अलिफ’ से ‘ये’ तक मैंने वहीं सीखा है। उस्ताद के साथ मेरी बैठकें वहीं हुईं। मैं बुज़ुर्गों ही नहीं, बच्चों के आगे भी दामन फैलाकर भीख मांग रहा हूं कि दुनिया पर रहम करें। डॉक्टरों का सहयोग करें। इस आसमानी बला को हिंद-मुस्लिम फसाद का नाम न दें। इंसानी बिरादरी ख़त्म हो जाएगी। ज़िंदगी अल्लाह की दी हुई सबसे क़ीमती नेमत है। इस तरह कुल्लियों में, गालियों में, मवालियों की तरह इसे गुज़ारेंगे तो तारीख और ख़ासकर इंदौर की तारीख, जहां सिर्फ मोहब्बतों की फसलें उपजी हैं, वह तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगी।