भोपाल। कान्हा से भटक कर 180 किमी दूर जबलपुर पहुंचे राम-बलराम नाम के दो हाथियों में बलराम की मौत करंट से होने की पुष्टि हुई है। बलराम हाथी का शव सुबह नौ बजे बरगी वन क्षेत्र के मोहास गांव के पास ग्रामीणों ने देखकर पुलिस और वन विभाग को सूचित किया था। साथी राम हाथी का भी पता नहीं चल रहा है। दो किमी के क्षेत्र में उसके पैरों के निशान तो मिले हैं, लेकिन वह नहीं दिखा।
इस तरह मृत मिला बलराम हाथी
इस पूरे मामले में वन विभाग की हद दर्जे की लापरवाही सामने आई है। चार दिन से विभाग निगरानी के नाम पर सिर्फ रस्म अदायगी करती रही। पहली बार जबलपुर में आए दो जंगली हाथियों में एक को नहीं बचा पाई। बलराम हाथी के सूंड में करंट लगा था। कान्हा सहित वेटरनरी कॉलेज के पांच विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम ने गोसलपुर में मृत बलराम हाथी का पीएम किया। इसके बाद वहीं परिसर के अंदर ही उसे दफना दिया गया।
इस तरह जमीन में धंस गया था दांत
सुबह चार से पांच बजे के बीच मौत की पुष्टि
मोहास गांव के मनोज सतनामी ने बताया कि सुबह चार-पांच बजे के बीच में हाथियों के चिंघाड़ने की आवाज आई थी। तब पुलिस को खबर दी गई थी। पुलिस ने वन विभाग को सूचना दी, लेकिन कोई नहीं पहुंचा। पीएम रिपोर्ट में भी यही टाइम बलराम हाथी के मौत की बताई गई है। कान्हा से विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ संदीप अग्रवाल, वाइल्ड लाइफ हेल्थ फॉरेंसिक विभाग से रिटायर्ड डॉक्टर एबी श्रीवास्तव, डॉक्टर देवेंद्र सहित पांच चिकित्सकों ने गोसलपुर स्थित वन मंडल परिसर में पीएम किया। चार घंटे तक चले पोस्टमार्टम के बाद करंट से मौत की पुष्टि हुई।
हाथी की मौत के बाद जांच करती वन विभाग की टीम
हाथी के सूंड में लगा था करंट
डीएफओ अंजना सुचिता तिर्की ने बताया कि हाथी सूंड के बल जमीन पर गिरा था। उसके दोनों बाहरी दांत जमीन में धंस गए थे। सूंड पर करंट के निशान भी मिले हैं। लगभग 200 मीटर दूरी पर खूंटी लगाकर तार बिछाया गया मिला है। यहां जंगली सुअर व हिरन का शिकार करने के लिए बिजली के तार बिछाने की बात सामने आई है। पीएम रिपोर्ट में भी करंट से मौत की पुष्टि हुई है। सागर लैब में से जहर आदि की जांच कराने के लिए जरूरी सेम्पल भेजे गए हैं।
कुछ दिन पहले ही करंट से मरा था बैल
वन विभाग की बड़ी लापरवाही
घटनास्थल पर पहुंचे डुमरिया गांव निवासी गुड्डू जैन ने बताया कि वन विभाग विभाग की बड़ी लापरवाही है। इसी गांव के लोचन पटेल ने बताया कि यहां जंगली जानवर का शिकार करने के लिए बिजली के तार बिछाए जाते हैं। कई पालतू जानवर गाय-बैल तक मर चुके हैं। वन विभाग के चौकीदार किशन लाल केवट का गुस्सा फूट पड़ा। बोले कि पूर्व में होने वाले जंगली जानवरों के शिकार की सूचना अधिकारियों को देते थे, तो कोई सुनता ही नहीं था। गुरुवार शाम छह बजे तक रखवाली में था। तब हाथी नहीं आए। सुबह उनके मरने की खबर लगी।
फोटो में पीछे बड़े दांतों वाला दिख रहा राम हाथी
दूसरे हाथी राम का होगा रेस्क्यू
बलराम के साथी राम हाथी का भी पता नहीं चल रहा है, लेकिन डीएफओ अंजना सुचिता तिर्की ने दावा किया कि उसे ठीक होना चाहिए। फुट प्रिंट के आधार पर तलाश की जा रही है। मैं रात में फिर घटनास्थल पर जा रही हूं। दूसरे हाथी का रेस्क्यू किया जाएगा। इसके लिए कान्हा से भी विशेषज्ञों का दल बुलाया जा रहा है। हमारे पास भी रेस्क्यू टीम है। लापरवाही के सवाल पर कहा कि मैं मुझे इसका अंदाजा नहीं था कि यहां लोग खेतों में अब भी नंगे तार लगाते हैं। अब दूसरे हाथी राम को बचाना सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
हाथी की मौत के बाद वन विभाग का पहुंचा अमला
ये थी घटना
कान्हा के जंगल से भटक कर जबलपुर पहुंचे दो हाथियों में एक शुक्रवार सुबह नौ बजे बरगी के मोहास में कैनाल के पास मृत मिला था। दूसरे हाथी का भी पता नहीं चल पा रहा है। हाथी की मौत की खबर मिलते ही डीएफओ सहित वन अमला मौके पर पहुंच गया। हाथी की मौत की खबर पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैलते ही। मौके पर हजारों की संख्या में ग्रामीण पहुंचे गए थे। दोपहर ढाई बजे के लगभग क्रेन से हाथी को हाइवा में रखकर गोसलपुर ले जाया गया था। वहां पीएम के बाद शव को दफनाया गया।
गुरुवार को आखिरी बार मंगेली में दिखे थे राम-बलराम
अप्रैल में भटक कर कान्हा पहुंचा था 20 हाथियों का झुंड
ओडिशा से अप्रैल में 20 हाथियों का झुंड भटक कर कान्हा पहुंचा था। सितंबर में इनका पलायन सिवनी से मंडला के जंगलों की ओर हुआ। दो महीने तक वे मंडल के जंगल में ही रहे। इसके बाद दो हाथी भटक कर नर्मदा तीरे-तीरे जबलपुर की ओर बढ़ गए। वहीं झुंड के अन्य हाथी वापस कान्हा की ओर लौट गए। चार दिन पहले दोनों हाथियों ने बरेला क्षेत्र में प्रवेश किया था। वन विभाग के 25 सदस्यीय टीम उनकी निगरानी में लगाई गई थी। बुधवार को दोनों हाथी बरगी में दिखे थे। गुरुवार को दोनों आखिरी बार मंगेली में साथ दिखे थे।
तीन दिन पहले बरगी में दिखे थे दोनों हाथी
सुरक्षित ठौर की तलाश में ओडिशा से निकले थे, मिली मौत
डीएफओ अंजना सुचिता तिर्की के मुताबिक ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ के जंगल में ही हाथी दिखते थे। वहां से वे निकल कर आबादी क्षेत्र में पहुंच जाते थे। पहली बार ये हो रहा है कि उनका पलायन एमपी की ओर हुआ है। माना जा रहा है कि इन राज्यों में बढ़ते खनन से जंगलों का दायरा सिमट रहा है। इस कारण हाथी नए रहवास की खोज में पलायन करने पर विवश हुए हैं। जबलपुर के आसपास भी घना जंगल है। उम्मीद थी कि दोनों हाथियों को यहां का परिवेश पसंद आएगा, लेकिन वन विभाग की लापरवाही ने एक की जान ले ली।