बिहार का महापर्व छठ सूर्य की उपासना का भी पर्व है। बिहार के मगध क्षेत्र में कई बेहद प्राचीन सूर्य मंदिर हैं। इनके स्थापना की कहानी भी बहुत रोचक है। इन मंदिरों में सबसे खास पटना जिले के पंडारक में स्थित पुण्यार्क मंदिर है। दरअसल, यह एकमात्र सूर्य मंदिर है जो, गंगा के तट पर। छठ पर यहां दूर-दूर से हजारों भक्त पहुंचते हैं। यहां 'पुण्यार्क सूर्य महोत्सव' भी किया जाता है। मान्यता है कि पुण्यार्क मंदिर में छठ पूजा करने से चर्म रोग दूर होता है।
मंदिर की स्थापना की कहानी क्या है
मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना भगवान श्रीकृष्ण और उनकी एक पटरानी जांबवंती के पुत्र साम्ब ने की थी। ऐसा उन्होंने एक श्राप से छुटकारा पाने के लिए किया था। कहानी ये है कि श्रीकृष्ण की पटरानी जांबवंती बहुत सुंदर थी, इसलिए उनसे हुए पुत्र साम्ब भी अति सुंदर थे और इस बात का उन्हें घमंड हो गया। इसी घमंड में साम्ब ने देवर्षि नारद का अपमान कर दिया था।
नारद ने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण को यह झूठी बात बताई कि साम्ब का उनकी गोपियों के साथ प्रेम संबंध है। नारद ने धोखे से साम्ब को गोपियों के साथ जल क्रीड़ा करने के लिए भेज दिया और कृष्ण को यह दृश्य दिखा भी दिया। इसी से क्रोधित हुए कृष्ण ने साम्ब को श्राप दिया, जिसकी वजह से उन्हें कुष्ठ रोग हुआ और सौंदर्य नष्ट हो गया।
कुष्ठ रोग खत्म करने के लिए मिला उपाय
साम्ब ने बाद में जब नारद से क्षमा याचना की तो उन्होंने रोग खत्म करने का उपाय बताया। इसके लिए उन्हें बारह सालों तक सूर्य की उपासना करनी थी और बारह स्थानों पर सूर्य मंदिर की स्थापना करनी थी।
12 में से 11 सूर्य मंदिर ही मिले
इन कहानियों के आधार पर पुरातत्ववेताओं ने सभी मंदिरों की खोज की, लेकिन 11 ही मिले। इनमें से पांच मंदिर तो मगध क्षेत्र में ही हैं। इनके नाम हैं- नालंदा जिले मे बड़गांव का सूर्य मंदिर (बड़ार्क), ओंगरी का सूर्य मंदिर (ओंगार्क), औरंगाबाद जिले में देव का सूर्य मंदिर (देवार्क), पटना जिले के पालीगंज में उलार का सूर्य मंदिर (उलार्क) और बाढ़ में पंडारक का सूर्य मंदिर (पुण्यार्क)।
1934 के भूकंप में मंदिर को बड़ी क्षति हुई थी, लेकिन सरकार की कोशिशों से इसे भव्य रूप दे दिया गया है।
मंदिरों की विशेषताएं क्या-क्या हैं
इन सभी प्रसिद्ध और पौराणिक सूर्य मंदिरों में सबसे पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित पुण्यार्क को ही माना जाता है। मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में स्थापित अष्टदल सूर्ययंत्र के अलावा काले रंग के पत्थर से बनी सूर्य की एक प्राचीन प्रतिमा है। प्रतिमा के हाथ कमर तक हैं और दोनों हाथों मे पद्म है। सिर पर त्राण, कमर में कटार, गले में माला और पैरों में बूट जैसे परिधान हैं। मूल प्रतिमा के अगल-बगल में दंड, पिंगल, देवियां, अनुचर, अनुचरियां, सारथी हैं। प्रतिमा के ऊपर गंधर्व की आकृति बनी है।