झाबुआ। यह दृश्य लोगों की ईश्वर के प्रति अटूट आस्था को दर्शाता है। 'गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो' की धुन के साथ जमीन पर लेटे लोग और उनके ऊपर से दौड़कर निकलतीं गायें, इंसान की इसी मन की शक्ति को साबित करता है। मौत से सामना होने के बावजूद लोग निडर रहते हैं। यह नजारा देखने को मिला सोमवार को मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल झाबुआ में। दीपावली के अगले दिन मनाए जाने वाले गाय गोहरी पर्व के दौरान लोगों ने मन्नत पूरी की।
बच्चे ने पेड़ पर चढ़कर गाय गौहरी पर्व को देखा।
आदिवासी अंचल में इस पर्व का ऐतिहासिक महत्व है। यह पर्व गाय और ग्वाला के आत्मीय रिश्ते की कहानी कहता है। गाय यानी जगत की पालनहार और गोहरी का अर्थ होता है ग्वाला। झाबुआ से 12 किलोमीटर दूर ग्राम खरडू बड़ी में दीपावली के दूसरे दिन गाय गोहरी का पर्व मनाया गया।
इसमें ग्रामीण अपनी गायों को सजा कर पहुंचे और फिर हिडी गीत गाया गया। यह ऐसा गीत है जो दीपावली के 8 दिन पहले से गाया जाता है और गाय गोहरी के दिन सुबह भी इसे ग्रामीण गाते हैं। इसके बाद मन्नत धारी जमीन पर लेट जाते हैं और गाय उनके ऊपर से गुजरती हैं। लेकिन किसी को कभी चोट नहीं आती। सजी-धजी गाय जमीन पर लेटे मन्नतधारियों के ऊपर से गुजरी तो उनके मुंह से उफ की बजाए भगवान का जयकारा निकला। यह परंपरा वर्षों पुरानी चली आ रही है।
गायों को सुबह नहलाकर सजाया और फिर गाय गौहरी के लिए लेकर आए।