होशंगाबाद। शहर हाे या गांव, अतिक्रमण ने सभी की सूरत बिगाड़ दी है। ऐसे दाैर में हाेशंगाबाद जिले में 11 किमी में आदिवासी काॅरिडाेर के 12 गांव आंखों को सुकून देते हैं। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से विस्थापित हुए इन वनग्रामाें में हर घर सड़क से 45 फीट दूर है। अपने प्लाॅट के आगे के हिस्से की जमीन छाेड़कर लाेगाें ने सड़क से इतनी दूर मकान बनाए हैं। काकड़ी गांव काे ही लीजिए। यहां 34 घर हैं।
किसी भी घर के आगे या पीछे सरकारी जमीन पर कब्जा नहीं है। 7 साल पहले विस्थापित हुए काकड़ी के आदिवासियाें की अच्छी साेच से यह सुंदरता आई है। 2013 में विस्थापित हुए इस गांव में 50 फीट के क्षेत्र में खुले आंगन और बगीचे हैं। घराें के पीछे शाैचालय है।
घराें में कार्यक्रम की परंपरा, इसलिए छाेड़ते हैं जमीन
^आदिवासी समाज के लाेग घराें में ही सांस्कृतिक, पारिवारिक कार्यक्रम करते हैं। मवेशी और सब्जी-भाजी लगाने के लिए बाड़ा बगीचा बनाते हैं। इसलिए घराें के आगे और पीछे खुली जगह छाेड़ते हैं।
अर्जुन नर्रे, शिक्षक काकड़ी
जंगल में भी हम ऐसे ही रहते थे, खुलापन हमारी पहली पसंद
^हम पहले भी जगल में घराें में खुली जगह पर ही रहते थे। वहां पर भी हमारे घराें के बाहर आंगन और बगीचे बने हुए थे। यह हमारी पंरपरा में शामिल है। इसलिए राेड से दूरी पर घर बनाए हैं।
शिवलाल, काकड़ी निवासी
सरकारी गाइडलाइन नहीं, आदिवासियों ने खुद की पहल
^विस्थापित परिवाराें काे सड़क किनारे 1-1 एकड़ और खेती के लिए पीछे 4-4 एकड़ जमीन दी गई थी। हमारी ओर से मकानाें के आगे जमीन छाेड़ने की काेई सरकारी गाइडलाइन नहीं दी गई थी। आदिवासियाें ने अपनी संस्कृति अनुसार सुविधाजनक घर खुद ही वहां बनाए हैं।
अनिल शुक्ला, उप संचालक सतपुड़ा टाइगर रिजर्व
तय फासला, घर के आंगन में ही सारे इंतजाम
गांंवों में बने हर घर के बीच तय फासला है। घरों में पानी, मवेशियाें के लिए खुली जगह सहित सारे इंतजाम हैं। गांव में लाेग अपने घराें पर ही सारा इंतजाम रखते है। इसलिए दूरी पर घर बनाए गए हैं।
ये हैं 12 गांव
इनमें बागरा से सेमरीहरचंद के बीच 11 किमी में बने विस्थापित गांव माना, झालई, मालनी, घाेड़ाअनार, परसापानी, चूरना, छतकछार, काकडी, घांई, बाेरी, मल्लूपुरा, सांकई शामिल हैं।