पुरुषों के आधिपत्य वाली डेढ़ हजार साल पुरानी परंपरा चारबैत में पहली बार नजर आईं महिला कलाकार; इसमें अभी तक सिर्फ पुरुष गायक ही करते थे परफॉर्म

Posted By: Himmat Jaithwar
11/5/2020

भोपाल। जो काम केवल पुरुषों के समझे जाते थे, उनमें अब महिलाओं के दखल ने दूसरी महिलाओं के लिए एक नई राह तो गढ़ी ही पुरुषों को भी यह संदेश दिया कि किसी भी क्षेत्र में केवल उनका ही आधिपत्य नहीं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है भोपाल के विहान ड्रामा वर्क्स की महिला कलाकारों ने।

जिन्होंने अफगानिस्तान की गायकी परंपरा ‘चारबैत’ जिसे सिर्फ पुरुष गायक या कलाकार ही परफॉर्म करते थे। पहली बार देश में इसे भोपाल की इन महिला कलाकारों श्वेता केतकर, तेजस्विता अनंत, निवेदिता सोनी, सृष्टि भागवत, व्याख्या चौहान एवं ईशा गोस्वामी ने जनजातीय संग्रहालय में आयोजित गमक श्रृंखला के तहत प्रस्तुति देकर मिसाल कायम की है।

मुस्कुरा के किसने देखा मुझको .. चिलमन के करीब, यही दिन हैं मेंहदी लगाने के काबिल, ये ना थी हमारी किस्मत के विसाले यार होता, हमे तो शाम ए ग़म में काटनी है जिंदगी, आलम .. में तो हर सिम्त बाहर आई हुई है और न आते हमें इसमें तकरार क्या थी ।

समूह के संगीतकार हेमंत देवलेकर ने बताया कि महिला कलाकारों की यह टीम उर्दू अकादमी में आयोजित कार्यशाला के दौरान तैयार की गई है। यह अपनी तरह की इस गायकी की पहली टीम है। इसके पूर्व कभी शहर में महिलाओं ने चारबैत मुकाबले में हिस्सा नहीं लिया, क्योंकि इसे मर्दाना गायकी या पुरुष गायन कहा जाता है। विहान की इस टीम को शहर के प्रसिद्ध चारबैत कव्वाल मुख्तार खान ने प्रशिक्षित किया है। 15 दिवसीय कार्यशाला में गायन के साथ डफली बजाने का प्रशिक्षण भी दिया गया।

हेमंत ने बताया कि चारबैत गायन डेढ़ हजार साल पहले अफगानिस्तान से शुरू हुआ था। जो धीरे-धीरे भारत पहुंचा, लेकिन इसमें स्त्री गायन की कोई परंपरा नहीं थी। भारत में चारबैत गायन की परंपरा 450 साल पुरानी मानी जाती है।

चारबैत का अर्थ है चार लाइनें। इसमें चार लाइनों का एक बंध और दो लाइनों का एक मुखड़ा होता है। इसमें नात-ए-पाक (ईश्वर की आराधना), हम्द (भजन) और इश्क-मुहब्बत भरी गायकी शामिल होती है, लेकिन समय के साथ इसमें आधुनिक विषयों समाज की समस्याएं, प्रेम भरी वार्ता, बदलाव आदि को भी शामिल किया जाने लगा है।



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