जबलपुर: 1 नवंबर 1956 के ही दिन हमारे मध्य प्रदेश की स्थापना हुई थी. यह मौका वाकई हर मध्यप्रदेशवासी के लिए खुशी का है, लेकिन संस्कारधानी यानी जबलपुर के लोग यह दिन इसलिए भी नहीं भूलते कि न चाहते हुए भी उनके हाथ से राजधानी का पद छिन गया. सीपी एण्ड बरार के पुनर्गठन व प्रदेश की स्थापना के समय राजधानी के लिए सबसे पहले नाम जो था वह जबलपुर का ही था, लेकिन प्रदेश में सामंजस्य बनाने के लिए इसे अपने लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. जबलपुर मप्र की राजधानी तो नहीं बन पाया लेकिन उसे हाईकोर्ट, मप्र विद्युत मंडल और सेन्ट्रल लाइब्रेरी की सौगात हासिल हुई.
सरदार पटेल के नेतृत्व में भोपाल राजधानी बना
भारत की आजादी के आंदोलन में जबलपुर की भूमिका सबसे अहम रही. स्वाधीनता आंदोलन के समय शायद ही कोई ऐसा शीर्ष नेता रहा हो जो जबलपुर नहीं आया हो. कांग्रेस के झंडा आंदोलन की शुरुआत भी जबलपुर से ही हुई थी. जबलपुर की इस प्राथमिकता को देखते हुए इसे राजधानी के लिए उपयुक्त माना था, इसके लिए प्रक्रिया भी प्रारंभ हुई, लेकिन सरदार पटेल को यह खबर आई कि भोपाल के नबाब हमीदुल्ला खान भारत के साथ संबंध ही नहीं रखना चाहते थे, वे हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर भारत में विलय का विरोध कर रहे थे. जिसके बाद देश की अखंडता व सौहाद्र् स्वाभाविक तौर पर पहली प्राथमिकता बन गया, इसलिए सरदार पटेल ने भोपाल पर अपनी नजर रखने के लिए उसे ही मध्य प्रदेश की राजधानी बनाने का फैसला लिया.
जबलपुर सागर-नर्मदा टेरेटरी के नाम से जाना जाता था
11वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी तक जबलपुर का गढ़ा गोन्ड राज्य की राजधानी हुआ करता था, जो गोंड राजा मदन शाह के द्वारा बसाया गया था. वहीं कल्चुरी काल में राजधानी त्रिपुरी जबलपुर के पास स्थित थी और इनका उल्लेख डाहल-मंडल के नरेशों के रूप में आता है. जल, जंगल और जमीन की उपयुक्तता के कारण अंग्रेजों ने भी यहां तीन कम्पनियां स्थापित की थी. जबलपुर की खास बात ये है कि प्रदेश में यह मात्र एक ऐसा स्थान था जहां देश की आजादी के पूर्व कमिश्नरी स्थापित की थी. ईस्ट इंडिया कंपनी के समय इसे सागर-नर्मदा टेरेटरी के नाम से जाना जाता था. ईस्ट इंडिया कंपनी की पहली ट्रेन भी कोलकाता से इलाहाबाद होते हुए 1 अगस्त 1867 को जबलपुर पहुंची थी.
ऐसे हुआ नामकरण
जाबालि ऋषि की तपोभूमि होने के कारण इसका नाम जाबालिपुरम था, जो बाद में झब्बलपुर और फिर अब जबलपुर के नाम से जाना गया. दसवी शताब्दी तक इसका नाम जाबालि पत्तन हुआ करता था. जबलपुर को आचार्य विनोबा भावे ने 'संस्कारधानी' का नाम दिया था.
राजधानी के लिए इन शहरों में थी टक्कर
मध्यप्रदेश की राजधानी के लिए के कई बड़े शहरों में आपसी प्रतिस्पर्धा चल रही थी, जिसके लिए सबसे पहला नाम ग्वालियर दूसरे पर इंदौर का नाम सुनाई दे रहा था. जिसके लिए राज्य पुनर्गठन आयोग ने राजधानी के लिए जबलपुर का नाम सुझाया था. लेकिन भोपाल में भवन ज्यादा थे, जो सरकारी कामकाज के लिए सबसे अनुकूल थे. इसी वजह से भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी का ताज हासिल हुआ.