सिंधिया के किले में सेंधमारी के लिए कांग्रेस ने ग्वालियर-चंबल में स्टार कैंपेनर पायलट को उतारा; लड़ाई बिकाऊ और टिकाऊ पर दिलचस्प हुई

Posted By: Himmat Jaithwar
10/27/2020

मध्य प्रदेश में जिन 28 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल इलाके की हैं। इनमें कई सीटें ऐसी हैं, जहां गुर्जर मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है। ऐसे में राजस्थान के दिग्गज गुर्जर नेता सचिन पायलट, कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। पार्टी ने इसी लाइन पर सचिन पायलट को सिंधिया के किले में सेंध लगाने के लिए ग्वालियर और प्रभाव वाले क्षेत्र चंबल में चुनाव प्रचार के लिए उतार दिया गया है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सिंधिया के गढ़ में उनके जिगरी दोस्त पायलट किस अंदाज में उन्हें घेरने की कोशिश करेंगे।

कांग्रेस के अंदर सिंधिया और पायलट दोनों की कहानी ही एक ही तरह के प्लॉट पर निकलकर बाहर आती है। कांग्रेस पहले से ही इन दोनों नेताओं के बीच बिकाऊ और टिकाऊ की लड़ाई बता चुका है। इसे सचिन पायलट के कांग्रेस में रहने और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में चले जाने के तौर पर माना जाता है।

दोनों अपेक्षाकृत नए 'युवा' और कम बैगेज वाले चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं और उपचुनावों के लिए मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में प्रचार करने और ग्वालियर को चुनने के पीछे कांग्रेस की एक रणनीति है। कांग्रेस सिंधिया को दिखाना चाहती है कि पार्टी पर निष्ठा रखने का फल मिलता है और सचिन पायलट को केवल राजस्थान के चेहरे के रूप में नहीं देखा जा रहा है, बल्कि वह उनके राष्ट्रीय नेता भी होंगे। मध्य प्रदेश में प्रचार के बाद पायलट बिहार चुनाव में भी प्रचार करेंगे।

कांग्रेस सिंधिया को यह ताना भी मारती है कि उन्हें भाजपा के साथ जाने के बाद एक राज्यसभा सीट के अलावा कुछ नहीं मिला। लेकिन सचिन पायलट का हाल तो राजस्थान में इससे भी खराब है। उन्हें पीसीसी चीफ और उपमुख्यमंत्री का पद भी गंवाना पड़ा। पायलट और सिंधिया में बुनियादी अंतर है क्योंकि सिंधिया भाजपा के लिए एक पुरस्कार के रूप में आए। वह राहुल गांधी के करीबी थे। उनके जाने के बाद राहुल गांधी ने यह माना भी था कि सिंधिया वह व्यक्ति थे जो बिना किसी अपॉइंटमेंट के मेरे घर आकर मुझसे मिल सकते थे। सिंधिया से राहुल गांधी के बारे में पूछा तो उन्होंने कुछ नहीं बोला, लेकिन एक वाक्य कहा और वह था 'मैं चुप रहने की गरिमा में भरोसा रखता हूं।'

बगावत से किसे फायदा और किसे नुकसान हुआ
सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में जाने का निर्णय लिया और इस्तीफा दे दिया, तब उनके साथ 22 विधायक भी चले गए। इसे ग्वालियर के महाराजा की ताकत के रूप में देखा गया। फिर भाजपा ने उन्हें मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेजकर ईनाम दिया। इसलिए सिंधिया के लिए उपचुनावों में अपनी धाक को जमाकर रखने की चुनौती है।

वहीं सचिन पायलट जब अपने 15 विधायकों के साथ एक पखवाड़े से भी ज्यादा समय तक गायब रहे तब भाजपा के अंदर कई लोगों को हैरानी हुई थी और उन्होंने सोचा कि क्या वह सिंधिया की तरह कर पाएंगे? मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में कांग्रेस के पास संख्या कम नहीं थी इसलिए भाजपा को लग रहा था कि पायलट कुछ और लोगों को तोड़ पाएंगे। ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि गांधी परिवार ने भी सबक सीखा और सिंधिया के मामले में जो गलती की, उसे उन्होंने नहीं दोहराया और सचिन पायलट से संवाद स्थापित किया।

गांधी परिवार पायलट से लगातार संपर्क में रहा और आखिर में उन्हें वापस लाने में सफल रहा। इसलिए पायलट उपमुख्यमंत्री और पीसीसी अध्यक्ष जैसे पद गंवाने के बाद भी गहलोत सरकार में लौट आए। ऐसा आश्वासन दिया गया कि पायलट की मांगों को पूरा किया जाएगा। पायलट के लोगों को समायोजित करने के लिए अभी कैबिनेट विस्तार होना बाकी है। इसके विपरीत सिंधिया अपने कुछ लोगों को शिवराज कैबिनेट में समायोजित कराने में सफल रहे।

पायलट ने ग्वालियर-चंबल प्रचार अभियान शुरू किया
सचिन पायलट ने मंगलवार से सिंधिया के किले में पायलट मंगलवार से प्रचार शुरू कर दिए हैं। सवाल यह है कि क्या वह सिंधिया पर हमला बोलेंगे? उनका ज्यादा फोकस भाजपा और शिवराज सरकार पर हो सकता है। बताया जाता है जब बगावत के मूड में सचिन पायलट दिल्ली में थे तब सिंधिया उनसे मिले थे और लगातार सम्पर्क में थे। सिंधिया ने तब कहा था कि कांग्रेस में प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन उन्हें कोई जगह नहीं मिलती। हालांकि सिंधिया से पायलट के भाजपा में शामिल होने के बारे में पूछा गया, तब उन्होंने जवाब नहीं दिया.

सिंधिया बगावत करने में सफल हो गए
जहां सिंधिया एक सफल विद्रोही के रूप में उभरे, वहीं पायलट आखिर में लौट आए। दुश्मन के खेमे में शामिल होने से पहले सिंधिया और पायलट अच्छे दोस्त थे इसलिए कांग्रेस इस टकराव को अजीबोगरीब बनाना चाहेगी।

पांच बिंदुओं में समझिए सिंधिया और पायलट में कितनी समानता

  • यूपीए के समय में ये दोनों राहुल गांधी की ‘यंग ब्रिगेड’ के सबसे जरूरी हिस्सा थे।
  • दोनों तेज तर्रार और बेहतरीन वक्ता हैं, बल्कि कांग्रेस के दो लोकप्रिय और दिग्गज नेता- राजेश पायलट और माधवराव सिंधिया के बेटे हैं।
  • सियासी वंशावली की वजह से दोनों को मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में मंत्री बनाया गया था।
  • 2018 में दोनों ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए जबरदस्त कैंपेनिंग की थी।
  • माना जा रहा था कि दोनों राज्यों में अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो उसकी कमान सिंधिया और पायलट के हाथों में ही सौंपी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
  • दोनों युवा नेता जिस बात से कांग्रेस हाईकमान से नाराज हैं वो भी एक ही है।

ये है पायलट का 27-28 का दो दिन का कार्यक्रम
पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट 27 और 28 अक्टूबर को शिवपुरी, मुरैना, भिण्ड और ग्वालियर में कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में चुनावी सभाएं करेंगे। कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारक सचिन पायलट मध्यप्रदेश में होने जा रहे 28 विधानसभा उपचुनाव के तहत 27 और 28 अक्टूबर को शिवपुरी, मुरैना, भिण्ड और ग्वालियर जिले की विभिन्न विधानसभाओं में कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में जनसभाएं करेंगे। वह 27 अक्टूबर को शिवपुरी की करैरा, पोहरी, मुरैना की जौरा में कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में चुनावी सभा करेंगे। वह शाम को 5 बजे ग्वालियर और ग्वालियर पूर्व विधानसभा क्षेत्र में चुनावी सभा करेंगे। रात्रि विश्राम ग्वालियर में होगा।

28 अक्टूबर को पायलट- 28 अक्टूबर को मुरैना, भिण्ड की मेहगांव, गोहद में कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में चुनावी सभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद ग्वालियर की डबरा में चुनावी सभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद बुधवार को ही 6 बजे पत्रकार वार्ता करेंगे।



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