भोपाल। राजधानी में अब तक 24 हजार से ज्यादा कोविड मरीज मिल चुके हैं। इनमें से 50 मरीज ऐसे हैं, जिन्हें कोरोना के कारण इलाज के दौरान पैरालिसिस और ब्रेन हेमब्रेज (ब्रेन इंफार्क्ट) हुआ। इनमें से कुछ स्वस्थ हो चुके हैं, तो कुछ मरीज अब भी अस्पतालों में इलाज ले रहे हैं।
यह खुलासा कोरोना संक्रमित और स्वस्थ हुए मरीजों में कोविड कांप्लीकेशन की पड़ताल में हुआ है। इसकी वजह यह है कि संबंधित मरीज का खून कोरोना संक्रमित होने के बाद गाढ़ा हो जाता है और उसमें थक्के बनने लगते हैं। व्यक्ति में कोविड वायरस के ट्रांसमिशन होने से शुरुआत में फेफड़ों और गले में सूजन आती है। संक्रमित होने के 3 से 5 दिन बाद मरीज का ब्लड गाढ़ा होने लगता है। ऐसा वायरस की प्रवृत्ति के कारण होता है। मरीज को ब्लड गाढ़ा होने की जानकारी नहीं मिलती। शरीर में वायरस डेवलप होने के साथ ही डिससेमिनेटिड इंट्रावेस्कुलर को-एगुलेशन (रक्त वाहिकाओं में खून का थक्का जमना) की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
कोविड संक्रमण के दौरान ब्रेन को जाने वाली रक्त वाहिकाओं में खून का थक्का जमने से दिमाग के उस हिस्से को खून की सप्लाई नहीं होती। इससे दिमाग का वह हिस्सा काम करना बंद कर देता, जिससे मरीज को पैरालिसिस हो जाता है। इसे ब्रेन इंफार्क्ट कहते हैं।
कोविड के कारण शरीर की किसी विशेष रक्त वाहिका में खून का थक्का नहीं बनता, बल्कि छोटी, बड़ी, सभी प्रकार की रक्त वाहिका में किसी भी स्टेज पर खून का थक्का बन सकता है। ब्रेन की रक्त वाहिका में थक्का बनने से मरीज को पैरालिसिस, हार्ट की रक्त वाहिका में थक्का बनने से हार्ट अटैक हो जाता है। इन मरीजों का इलाज क्रिटिकिट केयर यूनिट और आईसीयू में संबंधित स्पेशिएलिटी के डॉक्टर दवाओं और सर्जरी से करते हैं।
कोरोना से मरीज को मिर्गी भी-कोविड संक्रमित व्यक्ति के शरीर में कोरोना वायरस केवल फेफड़ाें पर अटैक नहीं करता, बल्कि शरीर के दूसरे अंगों को भी संक्रमित करता है। कोरोना के कारण कई मरीजों में को मिर्गी भी आने लगती है, जो कई दिनों बाद ठीक होती है। इसके कई मरीज कोविड संक्रमण खत्म होने के दो महीने बाद भी इलाज करा रहे हैं।
कोविड के स्वस्थ मरीजों में मिल रही मांसपेशियों एवं नस की बीमारियां-कोरोना से स्वस्थ हुए मरीजों में मसल्स पैन, हाथ-पैर की कमजोरी और रीढ़ की हड्डी में दर्द से जुड़ी बीमारियां देखने को मिल रही है। मसल पैन और रीढ़ की हड्डी में दर्द सहित अन्य बीमारियों की शिकायत मरीज, कोविड से रिकवर होने के 2 से 4 सप्ताह बाद करते हैं।
जो पोस्ट कोविड फॉलोअप मेडिकल टेस्ट कराने संस्थान के विभिन्न डिपार्टमेंट की अोपीडी में आते हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कोविड एडवाइजरी में ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, किडनी, हार्ट, ब्रेन डिसीज और बुजुर्ग मरीजों को हाई रिस्क में रखा है।
दो केस : ब्रेन के एक हिस्से ने काम करना ही बंद कर दिया
ब्रेन की रक्त वाहिकाओं में खून का थक्का जम गया
टैगौर नगर निवासी 52 वर्षीय इंटरनेशनल बास्केटबॉल खिलाड़ी उदय यादव को ब्रेन इंफार्क्ट हुआ है। वह इलाज के लिए सिद्धांता रेडक्रास हॉस्पिटल में भर्ती हैं। यहां डॉक्टर्स ने उदय के ब्रेन इंफार्क्ट से जीवन बचाने के लिए ब्रेन सर्जरी की है। उदय को ब्रेन इंफार्क्ट खून गाढ़ा होने के कारण ब्रेन की रक्त वाहिका में खून का थक्का बनने के कारण हुआ है। इसकी पुष्टि सिद्दांता रेडक्रास हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. सुबोध वार्ष्णेय ने की है।
ब्रेन इंफार्क्ट हुआ, अब भी जारी है पैरालिसिस का इलाज
नरसिंहपुर निवासी संजेश (55-परिवर्तित नाम) अब कोरोना निगेटिव हैं, लेकिन उनका पैरालिसिस का इलाज अभी जारी है। उन्हें कोविड संक्रमण के दौरान ब्रेन इंफार्क्ट हुआ। इसके बाद ब्रेन के एक हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। लालघाटी स्थित सर्वोत्तम अस्पताल के डॉक्टर्स ने दवाओं से उनके ब्रेन की रक्त वाहिका में बने खून के थक्के का इलाज शुरू कर दिया, लेकिन वह पूरी तरह से स्वस्थ अब तक नहीं हुए हैं। वह सर्वोत्तम अस्पताल में एक सप्ताह भर्ती रहें।
गाढ़ा न हो खून, थक्के न बनें… इसकी देते हैं दवा
कोविड-19 के स्टेट को-आर्डिनेटर डॉ. लोकेंद्र दवे ने बताया कि कोरोना खून गाढ़ा न हो। थक्के न बनें। इसके लिए मरीज को लो मॉलीकुलर वेट हिपेरिन दवा दी जाती है, ताकि कोरोना के मरीज का हार्ट, ब्रेन, किडनी सहित उसके शरीर की किसी भी रक्त वाहिका में खून का थक्का नहीं बनें।