भोपाल। बीमाकुंज से डेढ़ महीने पहले चोरी हुई कार का रूट ट्रैक करने में कोलार पुलिस को काफी मशक्कत उठानी पड़ी क्योंकि सर्वधर्म और इसके आगे के चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरे बंद थे। अंदाजा लगाकर पुलिस ने फंदा और देवास टोल नाके पर स्टाफ भेजा, तब कहीं जाकर कार का ट्रैक तलाश पाई।
इसमें आठ दिन लग गए। यदि कैमरे ठीक रहते तो कार की तलाश में पुलिस को महज कुछ घंटे ही लगते। संपत्ति संबंधी अपराधों और ट्रैफिक मैनेमेंट में पुलिस के मददगार माने जाने वाले 710 कैमरे बंद पड़े हैं। भोपाल के 105 चौराहों और तिराहों पर 1495 कैमरे लगाए गए हैं। करोड़ों के बजट से लगे 48 फीसदी कैमरे एनुअल मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट (एएमसी) न हो पाने के कारण खराब हैं। इससे संपत्ति संबंधी या अन्य अपराधों का इन्वेस्टिगेशन ‘ब्लैंक’ रह जा रहा है।
वर्ष 2013 में शुरुआत...आउटडेटेड हैं 275 कैमरे, इनका नाइट विजन भी खराब
वर्ष 2012-13 में पुलिस मुख्यालय की इंटेलीजेंस शाखा ने शहर के चौराहों पर कैमरे लगाने का काम शुरू किया था। करीब सवा दो करोड़ रुपए की लागत से 275 कैमरे लगाए गए थे। बंद पड़े कैमरों में ये भी शामिल हैं। इन आउटडेटेड कैमरों का नाइट विजन भी खराब है। इसलिए शासन स्तर पर फिलहाल ये विचार चल रहा है कि इनका मेंटेनेंस करवाया जाए या नई तकनीक के कैमरे लगाए जाएं।
कोरोना की शुरुआत में खराब हो गए कैमरे
कोरोना संक्रमण की शुरूआत यानी मार्च महीने से कैमरे बंद पड़े हैं। करीब सात महीने बाद भी शासन स्तर पर इन्हें सुधारे जाने का निर्णय नहीं हो सका है। ऐसे में पुलिस की कई विवेचना या तो कैमरे बंद होने के कारण अटक गई हैं या पुलिस को दोगुनी कोशिशें करनी पड़ रही हैं।
ऐसे पुलिस के काम आते हैं चौराहों के सीसीटीवी कैमरे
ट्रैफिक मैनेजमेंट : शहर की सड़कों से गुजरने वाले वाहनों पर नजर रखने और चालानी कार्रवाई में।
विवेचना : संपत्ति संबंधी अपराधों में बदमाशों का रूट ट्रैक करने में भी इनसे पुलिस को मदद मिलती है।
भीड़ नियंत्रण : किसी रैली या हिंसा के दौरान भीड़ नियंत्रण के दौरान भी इनसे मदद मिलती है।