रतलाम: नवरात्र में देवी माँ के नौ रूपो के आराधना की पूजा की जाती है लेकिन माँ के कई प्राचीन मंदिर व दुर्लभ स्थानों पर विराजमान है. कुछ जगह ऐसी भी है जहां के बारे में कुछ लोगों को जानकारी है. ऐसी ही एक जगह है रतलाम के बेरछा गांव के पास जहां प्राचीन पहाड़ी पर अंबे माता का मंदिर स्थित है. इस पहाड़ी पर मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक अनोखा पत्थर भी है. इस पत्थर पर अन्य किसी पत्थर के टकराने से धातु की तरह आवाज आती है. यह आवाज मंदिर के घंटी की तरह सुनाई देती है जिसे ग्रामीण चमत्कारी पत्थर मानते है.
कहां पर स्थित है मंदिर
मंदिर रतलाम से 35 किलोमीटर दूर गांव बेरछा में है. इस गांव के पास है एक पहाड़ी, जिसे इस जिले की सबसे ऊंची पहाड़ी भी कहते है. जहां पर माँ अम्बे का प्राचीन स्थान है. इस मंदिर को काफी समय पहले एक ग्रामीण ने देखा था. तब पहाड़ी पर आने जाने का मार्ग भी नहीं था इसलिए काफी कम लोग इस जगह के बारे में जानते थे. पहले यहां कुछ ग्रामीण और संत ही यहां आते थे, इनके बाद यहां आने के लिये एक कच्चा सकरा रास्ता ग्रामीणों ने बनाया था ताकि मंदिर तक आवश्यक पूजा व अन्य सामग्री ले जाई जा सके.
मंदिर से थोड़ी दूर पर है पत्थर
बेरछा गांव के प्राचीन अंबे माता मंदिर से थोड़ी ही दूर पर वह विचित्र पत्थर है. जिसे बजाने पर उसमें से धातु की तरह टन टन की आवाज आती है. ये किसी चमत्कार से कम नही है. हालांकि ये पूरी पहाड़ी पत्थरों से भरी हुई है. लेकिन उसमें एक ही पत्थर खास है. जो कि धातु की तरह आवाज करता है.
पत्थर का रहस्य है अब तक अनसुलझा
इस घंटी या किसी धातु की तरह बजने वाले पत्थर का रहस्य अब तक सुलझाया नहीं जा सका है. इस पत्थर को देवी चमत्कार मान जाता है. हालांकि कुछ लोग इस पत्थर में धातु की मात्रा अधिक होने की बात कहते हैं. लेकिन अगर ऐसा है तो इस इलाके में बिखरे दूसरे पत्थरों से भी ऐसी ही आवाज आनी चाहिए थी. लेकिन यहां बजने वाला ये पत्थर एक ही है. इस पत्थर को देखने आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. अब तो ग्रामीणों ने इस पत्थर की पूजा भी शुरू कर दी है और यहां पर एक ध्वज भी लगा दिया गया है.
पहले पत्थर से डरते थे
हालांकि इस पहाड़ी पर मंदिर तक लोगों की आवाजाही बड़ी थी लेकिन इस अनोखे घंटी की तरह बजने वाले पत्थर तक लोग आने से कतराते थे. दिन में कुछ आने भी लगे लेकिन इस एक अकेले पत्थर के इस तरह की आवाज से रात में ग्रामीणों को भय होने लगा था और इस पत्थर के नजदीक दिन ढलने के बाद लोग डरावनी जगह के भ्रम से आने में कतराने लग गये थे. लेकिन खबर दिखाए जाने के बाद लोगों का डर खत्म हुआ है. यह पत्थर मंदिर से करीब 700 मीटर की दूरी पर है और यहां तक पैदल ही जाया जा सकता है.