मानपुर में विंध्य की 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजित मां आशापूर्णा का हर वार को अलग रंग के वेश में शृंगार किया जाता है। रविवार को लाल, सोमवार को नीले तो मंगलवार को मेहरून.... रंग की साड़ी-चूड़ी में।
400 साल पहले राजा मानसिंह की मनोकामना पूरी होने पर उन्होंने छोटे मंदिर को बड़ा रूप दिया था। यहां श्रद्धालुओं आना-जाना तो शुरू हो गया है लेकिन 40 साल में पहली बार नवमी पर होने वाला 20 हजार से ज्यादा लोगों का भंडारा नहीं होगा।
राजा मानसिंह ने महेश्वर की चढ़ाई की मन्नत पूरी होने पर कुलदेवी आशापुरा माताजी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस वक्त नाम आशापुरी मां मंदिर था। 20 साल पहले ग्रामीणों ने मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार करवाया और आशापूर्ण होने पर मंदिर का नाम आशापूर्णा रखा गया।
मंदिर पुजारी विकासपुरी गोस्वामी ने बताया मां का रोज अलग-अलग रंग की साड़ी-चुड़ी पहनाकर शृंगार किया जाता है। दर्शन के लिए महू, धार, पीथमपुर, मांडू, देवास सहित आसपास के क्षेत्र के श्रद्धालु आते हैं। कोरोना संक्रमण के बावजूद भक्त बढ़ी संख्या में पहुंच रहे हैं।
मन्नत के लिए उल्टा, पूरी होने पर सीधा स्वस्तिक बनाते हैं
यहां मन्नत मांगने के लिए मंदिर की दीवार पर उल्टा और मन्नत पूरी होने पर माता के दर्शन के बाद सीधा स्वस्तिक बनाया जाता है। नवरात्रि में यहां तीन बार आरती होती है। सुबह 5.30 बजे कांकड़, सुबह 10 बजे शृंगार और शाम 7.30 बजे महाआरती होती है। बाकी दिनों में सुबह-शाम ही आरती होती है। मंदिर 130 सीढ़ियां चढ़कर पैदल जाया जा सकता है तो 800 मीटर लंबे मार्ग से वाहन से भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
इस बार रात्रि जागरण नहीं होगा - नवरात्रि में छठवें दिन रात्रि जागरण और नवमी पर 20 हजार से ज्यादा लोगों का भंडारा किया जाता है। कोरोना संक्रमण के चलते इस बार दोनों आयोजन नहीं किए जाएंगे।
कब, कौन-से रंग का शृंगार
- सोमवार- नीला
- मंगलवार- मेहरून
- बुधवार- हरा
- गुरुवार- पीला
- शुक्रवार- सफेद
- शनिवार- काला
- रविवार- लाल