फेसबुक की डिजिटल करेंसी लिब्रा को जी-7 देशों ने रोकने की मांग की, जल्द ही हो सकता है फैसला

Posted By: Himmat Jaithwar
10/18/2020

अमेरिका की सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक की डिजिटल करेंसी लिब्रा के लिए मुश्किल बढ़ती जा रही है। खबर है कि ग्रुप सात (जी-7) के देशों ने इस करेंसी पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई है। जल्दी ही इस बारे में फैसला लिया जा सकता है। फेसबुक के पूरी दुनिया में जून तिमाही तक 270 करोड़ यूजर्स थे।

अमेरिका के साथ सभी विकसित देश हैं जी-7 में

बता दें कि जी-7 में दुनिया की सात बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश हैं। यह सभी विकसित देश हैं। इसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। इसे ग्रुप ऑफ सेवन भी कहते हैं। बता दें कि पिछले साल फेसबुक ने डिजिटल करेंसी लिब्रा को लाने की योजना बनाई थी। यह उसकी बहुत बड़ी महत्वाकांक्षी योजना है। यह वैश्विक स्तर की डिजिटल करेंसी होगी।

केंद्रीय बैंक, वित्त मंत्री रेगुलेशन को लेकर सवाल उठा रहे हैं

जानकारी के मुताबिक जी-7 के केंद्रीय बैंकर्स और वित्त मंत्री इसके रेगुलेशन को लेकर सवाल उठा रहे हैं। जी-7 के फाइनेंशियल रेगुलेटर्स भी इसको लेकर सवाल कर रहे हैं। ऐसे में फेसबुक की इस करेंसी को फिलहाल लांच करना मुश्किल दिख रहा है। ग्रुप 7 के देशों का कहना है कि इस करेंसी को मौजूदा फॉर्म में जारी नहीं करना चाहिए। इन देशों की ओर से जारी डॉक्यूमेंट में ग्लोबल स्टेबल क्वाइन प्रोजेक्ट नाम से इस पर कमेंट किया गया है। स्टेबल क्वाइन का मतलब क्रिप्टोकरेंसी से है। किसी-किसी देश में यह बिट क्वाइन के भी नाम से जाना जाता है।

एचएसबीसी के तीन अधिकारियों को फेसबुक ने रखा

फेसबुक ने अपनी इस करेंसी के लिए दुनिया के दिग्गज बैंक हांगकांग एंड शंघाई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (एचएसबीसी) के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को रखा है। इसमें एचएसबीसी के यूरोपियन प्रमुख जेम्स, इसके पूर्व मुख्य कानूनी अधिकारी स्टूअर्ट ने सितंबर में कंपनी ज्वाइन की थी। स्टूअर्ट इससे पहले राष्ट्रपति जॉर्ज बुश और बराक ओबामा के कार्यकाल में अमेरिकी ट्रेजरी विभाग में रह चुके हैं। पिछले हफ्ते ही एचएसबीसी के इयान को लिब्रा में मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) बनाया गया है। इस तरह से फेसबुक लिब्रा को चलाने के लिए अनुभवी और टॉप बैंकर्स की टीम बना रहा है।

जब तक यह लीगल न हो, परमिशन नहीं देनी चाहिए

जी-7 देशों का कहना है कि स्टेबल क्वाइन प्रोजेक्ट को तब तक परमिशन नहीं देनी चाहिए जब तक कि यह लीगल न हो। रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में न हो और साथ ही इसकी डिजाइन और अप्लीकेबल स्टैंडर्ड भी सही नहीं हो। जी-7 के ड्रॉफ्ट में कहा गया है कि बिना सही रेगुलेशन के लिब्रा जैसे प्रोजेक्ट फाइनेंशियल स्टेबिलिटी, ग्राहकों की सुरक्षा, प्राइवेसी, टैक्सेशन और साइबर सिक्योरिटी के लिए खतरा बन सकते हैं।

लिब्रा के जरिए ऑन लाइन पेमेंट का उपयोग कर सकते हैं

दरअसल लिब्रा के जरिए ग्राहक फेसबुक और अन्य ऑन लाइन प्लेटफॉर्म पर पेमेंट के लिए उपयोग कर सकते हैं। साथ ही तमाम डिजिटल वॉलेट्स पर मर्चेंट को पेमेंट भी कर सकते हैं। ग्रुप-7 इस पर भी विचार कर रहा है कि क्या इस तरह की करेंसी विश्व के वित्तीय सिस्टम को ध्वस्त कर सकती है। दरअसल यह मामला ऐसे समय में आया है, जब कई सारे देश डिजिटल करेंसी को लांच करने की योजना बना रहे हैं। इसमें चीन सबसे आगे है। चीन ने अपने सरकारी बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना को जल्दी से जल्दी इस पर काम करने को कहा है। चीन अपनी राष्ट्रीय मुद्रा (नेशनल करेंसी) को डिजिटल फॉर्म में लांच करेगा।

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने दी है क्रिप्टो करेंसी की इजाजत

वैसे भारत में भी सुप्रीम कोर्ट ने क्रिप्टो करेंसी से लेन देन की इजाज़त दे दी है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने साल 2018 के भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के सर्कुलर पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की थी। रिज़र्व बैंक ने क्रिप्टोकरेंसी में कारोबार नहीं करने के लिए निर्देश जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फ़ैसला सुनाते हुए वर्चुअल करेंसी के लेन-देन का रास्ता खोल दिया है। क्रिप्टोकरेंसी तब सबसे अधिक चर्चा में आई थी, जब बिटक्वाइन लोगों को कुछ ही दिनों में लखपति से करोड़पति बना रहा था।

डिजिटल करेंसी को कई देश मान चुके हैं खतरा

बिट क्वाइन या डिजिटल करेंसी को वैसे भी खतरा माना जाता है। यह किसी रेगुलेटर के दायरे में नहीं है। इसकी टैक्स की देनदारी नहीं होती है। यह किसी जरूरी सामानों के लिए उपयोग में नहीं लाई जा सकती है। कई देश पहले ही मान चुके हैं कि रिश्वत देने और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए इसका उपयोग किया जाएगा। यह ब्लैकमनी और मनी लांड्रिंग के लिए सबसे उपयुक्त तरीका है।

16 देशों में पिछले हफ्ते चलाया गया अभियान

पिछले हफ्ते ही कई देशों ने इस मामले में एक बड़ा अभियान चलाया था जिसमें क्रिप्टोकरेंसी के जरिए मनी लांड्रिंग की जा रही थी। 15 अक्टूबर को यूरोपोल ने 16 देशों में 20 लोगों को गिरफ्तार किया था। यह सभी लाखों यूरो को इंटरनेशनल बैंक खातों से मुखौटा (शेल) कंपनियों को ट्रांसफर कर रहे थे। यह ट्रांसफर पोलैंड और बुल्गारिया में क्रिप्टोकरेंसी के जरिए किया गया था।

इसी तरह यूके, स्पेन, इटली और बुल्गारिया आदि में 40 जगहों पर छापा मारा गया। इसे ऑपरेशन 2बागोल्ड म्यूल नाम दिया गया था। इसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूके, पुर्तगाल, स्पेन में भी गिरफ्तारी की गई थी। बुल्गारिया में तो बिटक्वाइन माइनिंग के इक्विपमेंट को सीज कर दिया गया।



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