इंदौर में नवरात्रि का उत्सव शनिवार सुबह से रात तक चलता रहा। कई जगहों पर सजे पंडालों में शुभ मुहूर्त में माताजी को विराजित करने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। इनमें प्रमुख बात यह रही कि माताजी के चल समारोह भी निकाले गए और जमकर आतिशबाजी भी हुई। शहर और कलकत्ता के साथ बंगाल से आए कलाकारों ने बीजासन माता, देवास वाली चामुंडा माता, नासिक में सप्तश्रंगी माता, कैलादेवी, काल भैरवी के स्वरूप में माताजी की मूर्तियां तैयार कीं। कई जगह माताजी की स्थापना के बाद युवतियों ने सोशल डिस्टेंसिंग के साथ गरबा भी किया।
रात में कई कॉलोनियाें में गरबा भी खेला गया।
देशभर में विराजित माताजी के मंदिरों के स्वरूप के अनुसार ही शहर में इस बार 20 से ज्यादा स्वरूप में माताजी की मूर्तियां देखने को मिलीं। लोग हर बार की तरह नाचते-गाते माताजी की मूर्तियां लेने पहुंचे। हालांकि कोरोना संक्रमण के चलते शहर में मूर्तियां लेने के लिए निकाले जाने वाले चल समारोह की संख्या कम ही रही। आतिशबाजी करते हुए और ढ़ोल की थाप पर नाचते हुए कुछ क्षेत्रों में युवा तो कहीं युवतियां भी पहुंचीं।
परिवार के साथ लोग माता जी को लेने पहुंचे।
20 प्रतिशत रह गई पंडालों की संख्या
इंदौर में हर साल 15 बड़े पंडालों के साथ 200 से ज्यादा कॉलोनियों में 500 के करीब छोटे पंडाल भी लगते थे और वहां पर माताजी की प्रतिमा स्थापित करने के साथ ही गरबों का आयोजन भी होता था। इस बार जहां कोरोना के कारण बड़े पंडालों की संख्या आधी हो गई है तो जितने पंडाल लग रहे हैं उनमें भी इस बार गरबे नहीं हो रहे हैं। इसके अलावा 500 के करीब छोटे पंडालों की संख्या अब 125 के करीब आ गई है। यहां पर भी इस बार केवल माताजी की मूर्तियां विराजित हो रही हैं। आयोजकों के मुताबिक प्रशासन की तरफ से आयोजन की अनुमति नहीं मिलने के कारण इस बार आयोजनों में कमी आई है।
लोगों ने आरती कर मां का आशीर्वाद लिया।
10 प्रतिशत ही हुई मूर्तियों की बिक्री
इंदौर के प्रमुख माता मूर्ति तैयार करने वाले बाजारों में नवरात्रि की रौनक तो रही, लेकिन खरीदी पिछले साल जैसी नहीं रही। बंगाली चौराहे स्थित मूर्तिकार महादेव पाल के मुताबिक इस साल केवल वे ही मूर्तियां तैयार की गईं, जिनके ऑर्डर पहले से मिले थे। पिछले साल के मुकाबले यह संख्या 10 प्रतिशत ही रही। बड़ी मूर्तियों के साथ ही छोटी मूर्तियों की डिमांड पिछले साल तक हर साल बड़ती जा रही थी, लेकिन काेरोना के कारण इस बार छोटी मूर्तियों की मांग घटकर केवल 5 प्रतिशत ही रही।