ग्वालियर-चंबल अंचल की 16 में 8 विधानसभा सीटों पर इस बार मुकाबला रोचक है। मुरैना, ग्वालियर, पोहरी, मुंगावली, अशोकनगर, दिमनी, बमोरी और मेहगांव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में विधायकी छोड़ने वाले पूर्व विधायक भाजपा के उम्मीदवार हैं। इनके खिलाफ कांग्रेस ने सिंधिया के ही उन खास लोगों को टिकट दिया है, जिन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी। जो इस बार प्रतिद्वंद्वी हैं, वे 2018 के चुनाव में एक साथ थे।
मुरैनाः रघुराज कंसाना (भाजपा) और राकेश मावई (कांग्रेस)
पूर्व विधायक रघुराज कंसाना और राकेश मावई के बीच मुकाबला है। कंसाना सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं। कांग्रेस जिलाध्यक्ष मावई भी कांग्रेस में सिंधिया के खास रहे हैं। वे पार्टी छोड़कर नहीं गए। इसके इनाम में उन्हें टिकट मिला। 2018 में जिलाध्यक्ष के तौर पर कंसाना के चुनाव की कमान मावई के ही हाथों में थी।
दिमनी गिर्राज दंडोतिया (भाजपा) और रवींद्र सिंह तोमर (कांग्रेस)
पूर्व विधायक गिर्राज दंडोतिया की टक्कर रवींद्र सिंह तोमर भिड़ौसा के साथ है। दंडोतिया भी विधायकी छोड़कर सिंधिया के साथ भाजपा में आए। भिड़ौसा सिंधिया के समर्थक रहे हैं। वे पहले भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन अब तक जीत नहीं मिली। पिछली बार भी वे टिकट के प्रमुख दावेदार थे।
ग्वालियर प्रद्युम्न सिंह तोमर (भाजपा) और सुनील शर्मा (कांग्रेस)
प्रदेश सरकार के ऊर्जा मंत्री मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का मुकाबला सुनील शर्मा से है। सिंधिया जब कांग्रेस में थे, तब शर्मा उनके खास रहे। एक ही खेमे में होने के कारण 2018 के चुनाव में तोमर के प्रचार में जोर-शोर से जुटे रहे। शर्मा ने पार्टी का हाथ पकड़े रखा। अब उन्हीं से मुकाबला है, जिनके लिए पिछले चुनाव में काम किया था।
पोहरी सुरेश राठखेड़ा (भाजपा) और हरिवल्लभ शुक्ला (कांग्रेस)
प्रदेश सरकार में मंत्री व भाजपा प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा और हरिवल्लभ शुक्ला के बीच मुकाबला है। शुक्ला भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। बताया जाता है कि वे सिंधिया के कहने पर ही कांग्रेस में आए थे। इधर, राठखेड़ा सिंधिया के समर्थन में विधायकी छोड़कर भाजपा में आए हैं।
मुंगावली बृजेंद्र सिंह यादव (भाजपा) और कन्हईराम लोधी (कांग्रेस)
कन्हईराम लोधी और राज्य मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव के बीच सीधी टक्कर है। सिंधिया ने ही लोधी को कांग्रेस का जिलाध्यक्ष बनवाया था। महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के निधन के बाद हुए उपचुनाव में यादव विधायक चुने गए थे। वे 2018 में दोबारा विधायक बने।
अशोकनगर जजपाल सिंह जज्जी (भाजपा) और आशा दोहरे (कांग्रेस)
जजपाल सिंह जज्जी और आशा दोहरे के बीच सीधा मुकाबला है। पूर्व विधायक जजपाल सिंह जज्जी सिंधिया के खास हैं। कांग्रेस से दो बार चुनाव लड़ चुके हैं जिसमें एक बार हार गए थे। आशा दोहरे और उनकी सास सिंधिया समर्थक रही हैं।
बमोरी महेंद्र सिसोदिया (भाजपा) और कन्हैयालाल अग्रवाल (कांग्रेस)
कन्हैयालाल अग्रवाल और महेंद्र सिसोदिया के बीच मुकाबला है। सिसौदिया सिंधिया के समर्थन में विधायकी छोड़कर भाजपा में आए और प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में अग्रवाल ने कांग्रेस तो ज्वाइन नहीं की थी लेकिन सिंधिया के प्रचार में पूरी सक्रियता से जुटे रहे थे।
मेहगांव ओपीएस भदौरिया (भाजपा) और हेमंत कटारे (कांग्रेस)
मंत्री ओपीएस भदौरिया ने सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ी। हेमंत कटारे अपने पिता के निधन से खाली हुई अटेर सीट से उपचुनाव लड़कर विधायक बने थे। उपचुनाव में सिंधिया ने अटेर की जनता से कहा था कि यह मानकर चलें कि सिंधिया ही चुनाव लड़ रहे हैं।