अपनी सफलता की कहानी अगर हम खुद सुनाएंगे तो इसमें हमारा अहंकार बढ़ सकता है। हमारे अच्छे कामों के बारे में कोई और बताएगा तो घर-परिवार और समाज में ज्यादा मान-सम्मान मिलता है। श्रीरामचरित मानस के सुंदरकांड में हनुमानजी ने हमें बताया है कि सफल होने पर कुछ देर के लिए शांत हो जाना चाहिए। हमारी सफलता की कहानी कोई दूसरा बयान करेगा तो कामयाबी और ज्यादा बढ़ी हो जाती है।
सीता की खोज की हनुमानजी ने, लेकिन बताया जांबवंत ने
सुंदरकांड में हनुमानजी ने माता सीता की खोज में लंका पहुंचे। वहां देवी की खोज की और उन्हें श्रीराम का संदेश दिया। इसके बाद लंका दहन किया। ये काम करके हनुमानजी श्रीराम के पास लौट आए। सीता की खोज करना और लंका दहन करना, ये दोनों ही काम असंभव जैसे ही थे, लेकिन हनुमानजी ने ये काम कर दिए थे।
जब हनुमानजी श्रीराम के पास वापस लौटकर आए तो जांबवंत ने हनुमानजी के बारे में श्रीराम को बताया। हनुमानजी उस समय शांत थे।
श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-
नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।।
पवनतनय के चरित्र सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।।
जांबवंत ने श्रीराम से कहा कि हे नाथ, पवनपुत्र हनुमान ने जो काम किया है, उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता। तब जांबवंत ने हनुमानजी के सुंदर कार्य श्रीरघुनाथजी को सुनाए।।
सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियं लाए।।
सफलता की बातें सुनने पर श्रीरामचंद्र के मन को हनुमानजी बहुत ही अच्छे लगे। उन्होंने हर्षित होकर हनुमानजी को फिर हृदय से लगा लिया। परमात्मा के हृदय में स्थान मिल जाना अपने प्रयासों का सबसे बड़ा फल है।