भोपाल: चंबल के बीहड़ों में कभी डाकुओं की बंदूकों की गूंज हुआ करती थी, ये डाकू खुद को बागी कहकर बीहड़ों में कूद जाया करते थे. करीब डेढ़ दशक पहले ये गूंज खत्म हुई तो अब सियासी बगावत की वजह से कांग्रेस की सरकार गिर गई. इस बगावत का सबसे बड़ा केंद्र ग्वालियर-चंबल इलाका ही बना. अब यहां सियासत के बागी चुनाव लड़ रहे हैं.
आलम ये है कि जिस बगावत की वजह से कांग्रेस की सत्ता छिन गयी थी, उसी कांग्रेस को अब दूसरे दलों के बागियों की वजह से ही सत्ता वापसी की उम्मीद नजर आ रही है. ग्वालियर-चंबल अंचल में कुल 28 में से 16 सीटें हैं, यहां बीजेपी के टिकट से 15 बागी चुनाव में किस्मत आज़मा रहे हैं, तो कांग्रेस ने भी दूसरे दलों के 7 बागियों को ही टिकट दिया है.
कभी BJP तो कभी BSP
सिंधिया खेमे के कांग्रेस छोड़ने के बाद कांग्रेस दावा कर रही थी कि पार्टी अब फिल्टर हो चुकी है, लेकिन यहां जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में कांग्रेस दूसरे दलों तक पहुंच गयी. आलम ये है कि बहुजन समाज पार्टी (BSP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के टिकट से चुनाव लड़ चुके नेताओं को टिकट दिया और अब ये कांग्रेस का दुपट्टा डालकर वोट मांग रहे हैं. 16 में से 7 ऐसे प्रत्याशी मैदान में उतारे गए हैं जिनका वास्ता बीजेपी या बीएसपी से रहा है. मसलन, सुमावली से एदल सिंह कंसाना के खिलाफ अजय सिंह कुशवाह को मैदान में उतारा गया है, जो पिछला चुनाव बीएसपी के टिकट से लड़ चुके थे. कांग्रेस ने उनकी कद्दावर नेता की छवि और जातिगत समीकरण को देखते हुए दिया है. एदल सिंह कंसाना भी पहले बीएसपी से चुनाव लड़ चुके थे. पिछला चुनाव कंसाना ने कांग्रेस के टिकट से लड़कर जीता था. अब सिंधिया के साथ बीजेपी में गए तो बीजेपी उम्मीदवार बनकर एक बार फिर मैदान में हैं.
बसपा ने जातिगत वोटर्स को साधने का चला दांव
दिमनी से रविंद्र सिंह तोमर भी बसपा के टिकट से चुनाव लड़ चुके थे. पिछली दफा वे दूसरे नंबर पर रहे थे. तोमर बहुल इलाके को देखते हुए कांग्रेस ने जातिगत समीकरण साधने के लिए रविंद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा है. इसी तरह अम्बाह से सत्यप्रकाश सखवार को जातिगत बहुल्यता को देखते हुए ही चुनाव मैदान में उतारा गया है. इससे पहले वे बसपा से लड़ चुके हैं और एक बार विधायक भी रहे हैं.
कांग्रेस ने बीजेपी के बागियों को दी टिकट
कांग्रेस ने इस इलाके में बीजेपी के बागियों को भी मौका दिया है. ग्वालियर पूर्व से सतीश सिकरवार पिछला चुनाव बीजेपी के टिकट पर ही लड़ा था. वे इस क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे. लेकिन मुन्नालाल गोयल के बीजेपी में चले जाने के बाद अब वे विधायक बनने की ललक में कांग्रेस के टिकट से चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं. डबरा से सुरेश राजे भी इमरती देवी के खिलाफ बीजेपी से चुनाव लड़ चुके हैं. बमोरी की कहानी भी ऐसी ही है यहां पर कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में कूदे केएल अग्रवाल पहले थे बीजेपी में थे शिवराज ने उन्हें मंत्री भी बनाया था. लेकिन पिछली दफा टिकट नहीं मिलने से वे नाराज होकर पार्टी छोड़ दी थी. अब वे कांग्रेस का झंडा उठाकर वोट मांग रहे हैं.
भाण्डेर से कांग्रेस ने बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा था. बरैया बाद में बीजेपी में चले गए थे. लेकिन इस बार वे कांग्रेस में हैं. बरैया को कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ राज्यसभा चुनाव में भी मैदान में उतारा था. इस सीट पर कांग्रेस से दावेदारी कर रहे महेंद्र बौद्ध अपनी ही पार्टी में टिकट ना मिलने से बागी हो गए और बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. केवल जौरा सीट ही ऐसी है जहां से बीजेपी ने पूर्व विधायक सूबेदार राजौधा बीजेपी के मूल कार्यकर्ता हैं और चुनाव लड़ रहे हैं.