इंदौर। खासगी ट्रस्ट को देखभाल के लिए मिली संपत्तियां बेचे जाने के मामले में हाई कोर्ट में दायर की गई शासन की अपील पर सोमवार को विस्तृत आदेश जारी कर दिया गया। हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि ट्रस्ट व ट्रस्टी को 26 राज्यों में 250 संपत्ति केवल देखभाल के लिए मिली थी। इन संपत्तियों को कौड़ियों के दाम पर बेचा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस काम के लिए ट्रस्ट ने सप्लीमेंट्री डीड बना ली थी जो पूरी तरह गलत थी। इसे भी शून्य घोषित किया जाता है।
हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव, वित्त विभाग के प्रमुख सचिव, संभागायुक्त व कलेक्टर की कमेटी गठित की है। यह कमेटी संपत्ति खरीदे-बेचे जाने की जांच करेगी। इसमें किसी तरह लापरवाही मिलती है तो आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) को पूरा मामला सौंपा जाएगा। वहीं संभागायुक्त को आदेश दिए हैं कि हरिद्वार में कुशावर्त घाट सहित जितनी भी संपत्ति बेची हैं उन्हें वापस लाने का प्रयास करें। आम जनता वहां पहुच सके, ऐसी व्यवस्था करें। वहां के एसपी इस काम में संभागायुक्त के सहायक होंगे।
जस्टिस सतीशचंद्र शर्मा, जस्टिस शैलेंद्र शुक्ला की खंडपीठ ने फैसला दिया है। शासन की ओर से सीनियर एडवोकेट पीके सक्सेना, ऋषि तिवारी ने पक्ष रखा। 2012 में सिंगल बेंच ने खासगी ट्रस्ट की रिट पिटिशन पर आदेश जारी किया था। इसके खिलाफ प्रशासन ने अपील दायर की थी कि खासगी ट्रस्ट को देखभाल के लिए मिली संपत्ति गलत तरीके से बेची जा रही है। इस पर रोक लगाई जाना चाहिए।
जितनी संपत्ति बेची वह सब हासिल करें
हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रस्ट ने जितनी भी संपत्तियां बेची हैं उनके सौदे शून्य करवाकर शासन कब्जा लेने का प्रयास करे। यह संपत्ति सार्वजनिक उपयोग के लिए होनी चाहिए। बेची गई संपत्तियों पर अतिक्रमण, निर्माण हो गया है तो उसे भी हटाकर जमीन को मुक्त कराएं।
हम फैसले की समीक्षा कर फैसला लेंगे
ट्रस्ट के अधिवक्ता अभिनव मल्होत्रा के मुताबिक हमें अभी आदेश की प्रति मिली है। इसका अध्ययन किया जाएगा। विधिक राय लेने के बाद कोई कदम उठाने पर फैसला लिया जाएगा।
संपत्ति बिक्री पर उत्तराखंड सरकार ने भी आपत्ति ली थी
तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने सबसे पहले कुशावर्त घाटा का सौदा शून्य कराने की पहल की थी। एसडीएम रवि कुमार सिंह और तहसीलदार सुदीप मीणा ने इस केस की स्टडी की और हाई कोर्ट में जल्द सुनवाई की अपील की। हरिद्वार का दौरा कर वहां से कागज जुटाए और रिपोर्ट लगवाई। उत्तराखंड सरकार से भी संपत्ति बिक्री पर आपत्ति ली थी। इसके बाद हाई कोर्ट में लगातार सुनवाई हुई। पाल महासभा के अध्यक्ष विजय पाल ने हरिद्वार में रहकर यह लड़ाई लड़ी और शासन स्तर पर यह मामला उठाया कि आपकी संपत्ति बिक रही है। सूर्यकांत पाल आदि ने हाई कोर्ट में पक्ष रखे। वहीं एक याचिका सीबीआई जांच के लिए अधिवक्ता रोहित शर्मा ने भी दायर की थी।
शासन ने पहले ही कब्जे लेना शुरू कर दिए थे
तत्कालीन संभागायुक्त संजय दुबे ने इंदौर संभाग और धर्मस्व विभाग के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने प्रदेशभर में संपत्तियों पर कब्जा लेने, सरकारी खातों में एंट्री के लिए आदेश जारी कर दिए थे। संभाग में काफी संपत्ति सरकार के पास आ भी चुकी है। इसी बीच मामला हाई कोर्ट में चला गया तो यह प्रक्रिया रूक गई थी। कलेक्टर मनीष सिंह के मुताबिक अब कोर्ट का आदेश मिल गया है तो अन्य राज्यों में भी रजिस्ट्री शून्य कराने कानूनी प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
2012 में कुशावर्त घाट बिकने के बाद सरकार को पता चला
तत्कालीन प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव को एक शिकायत मिली थी। इसमें उल्लेख था कि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडू में खासगी ट्रस्ट की संपत्तियां बेची जा रही हैं। इसी तरह इंदौर में तत्कालीन सांसद सुमित्रा महाजन ने कलेक्टर को पत्र लिखा था कि हरिद्वार का कुशावर्त घाट बिक गया है। यह दोनों मामले सामने आने के बाद सरकार हरकत में आई थी।
नागौर, पुष्कर, इलहाबाद हरिद्वार, सोमनाथ में प्रशासनिक अफसरो को भेजकर जानकारी निकाली गई तो पता चला कि यहां पर संपत्तियां बिक चुकी हैं। इसके बाद श्रीवास्तव ने सीबीआई को मामला सौंपे जाने की अनुशंसा मुख्यमंत्री से की थी। वहीं कलेक्टर ने हरिद्वार के जिला प्रशासन से संपर्क कर रजिस्ट्री शून्य कराने की पहल की थी। इसी के साथ कलेक्टर ने एक पत्र जारी किया और सभी संपत्ति सरकारी खातों में डालने की अनुशंसा की। इस पत्र खिलाफ ट्रस्ट हाई कोर्ट पहुंची थी।
अब आम जनता यहां पहुंच सके, ऐसी व्यवस्था करेगा शासन
26 राज्यों में 250 संपत्तियां हैं खासगी ट्रस्ट की शामिल हैं।
संपत्तियों का रखरखाव करने बेची गई थी संपत्तियां
ट्रस्ट के अधिवक्ता अभिनव मल्होत्रा ने कोर्ट में कहा कि मात्र 2.93 लाख में 250 संपत्तियों की देखभाल संभव नहीं है। ट्रस्टी सतीश मल्होत्रा ने एमवायएच, माणिकबाग पैलेस, लालबाग पैलेस, मार्तंड मंदिर, महू में सौ एकड़ जमीन शासन को दी। संपत्ति बेचने की अनुमति भी शासन ने ही दी। अनापत्ति पर तीन सरकारी ट्रस्टी के हस्ताक्षर भी हैं। बेची संपत्ति पर पहले से कब्जे हो गए। तब शासन ने उसे मुक्त कराने का प्रयास नहीं किया। अरबों दान करने वाले ट्रस्टी का उद्देश्य कभी गलत नहीं हो सकता।