मध्य प्रदेश: कहीं कमलनाथ सरकार को न ले डूबे सिंधिया की बेरुखी

Posted By: Himmat Jaithwar
3/10/2020

भोपाल। राजनीति के जानकारों की मानें तो सिंधिया को पार्टी में वह महत्व नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वे और उनके समर्थक उम्मीद लगाए थे. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव सिंधिया और कमलनाथ का चेहरा सामने रखकर लड़ा था. कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया तो सिंधिया समर्थकों को लगा कि प्रदेशाध्यक्ष की कमान उनके नेता को मिल सकती है, मगर ऐसा हो नहीं पाया.
सूत्रों का कहना है कि सिंधिया समर्थक चाहते हैं कि सिंधिया को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए और राज्यसभा में भेजा जाए. उधर सिंधिया की नाराजगी से कांग्रेस हाईकमान भी वाकिफ है और उन्हें मनाने की कोशिश शुरू कर दी है. उन्हें भरोसा दिलाया जा रहा है कि पार्टी बड़ी जिम्मेदारी देगी. लेकिन सवाल है कि सिंधिया की नाराजगी एक-दो दिन की नहीं है. वे पिछले कई महीने से पार्टी पर निशाना साधते रहे हैं लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई. अब जब कमलनाथ सरकार खतरे में है, तो क्या मान कर चलें कि सिंधिया की बात पार्टी में सुनी जाएगी?
सिंधिया का सियासी सफर
मध्य प्रदेश में जारी सियासी उठापटक के बीच आइए एक नजर डालते हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक और व्यक्तिगत सफर पर. ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश की गुना संसदीय सीट से लोकसभा सांसद रहे हैं. हालांकि पिछले चुनाव में उनकी हार हो गई थी लेकिन उनका सियासी कद जस का तस बना हुआ है. ग्वालियर के सिंधिया राजघराने में 1 जनवरी 1971 को पैदा हुए ज्योतिरादित्य कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं. वे कांग्रेस के पूर्व मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया के पुत्र हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दून स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद हॉवर्ड यूनिवर्सिटी से ऑनर्स और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से MBA किया. इसके बाद ज्योतिरादित्य ने अमेरिका में ही 4 साल लिंच, संयुक्त राष्ट्र, न्यूयॉर्क और मॉर्गन स्टेनले में काम किया. 12 दिसंबर, 1994 को ज्योतिरादित्य की शादी राजकुमारी प्रियदर्शनी राजे से हुई. ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शनी देश की सबसे खूबसूरत राजकुमारियों में से एक हैं.
30 सितंबर, 2001 को विमान हादसे में ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया की मौत हो गई. फिर ज्योतिरादित्य राजनीति में आए. 2002 लोकसभा में उन्‍हें पहली बार चुना गया. सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को 6 अप्रैल, 2008 को पहली बार मनमोहन सरकार में सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री बनाया गया. जब मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो सिंधिया को राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया. सिंधिया कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बेहद करीबियों में गिने जाते हैं. लेकिन अब इसमें कुछ खटास की खबरें आती हैं.
राजनीति के जानकारों की मानें तो सिंधिया को पार्टी में वह महत्व नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वे और उनके समर्थक उम्मीद लगाए थे. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव सिंधिया और कमलनाथ का चेहरा सामने रखकर लड़ा था. कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया जा चुका है, वहीं सिंधिया समर्थकों को यह लगता था कि प्रदेशाध्यक्ष की कमान उनके नेता (सिंधिया) को मिल सकती है, मगर ऐसा हो नहीं पाया. इसके चलते कार्यकर्ताओं में असंतोष है और सिंधिया पर उनका दबाव भी.

सिंधिया के राज्यसभा में जाने में बेरुखी दिखाए जाने से कांग्रेस में बेचैनी होना लाजिमी है. इसे सिंधिया के असंतोष के तौर पर देखा जा रहा है, साथ ही इससे आशंकाओं को भी जन्म मिल रहा है. पिछले दिनों ज्योतिरादित्य सिंधिया ने वचनपत्र (घोषणापत्र) के वादे पूरे न होने पर सड़क पर उतरने की बात कही थी. इसके बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ की ओर से भी जवाब आया और उन्होंने कहा कि जिसे सड़क पर उतरना है, उतर जाएं. इन दोनों बयानों पर सियासत खूब गर्माई थी. सोमवार के घटनाक्रम (कमलनाथ सरकार पर संकट) के बाद देखने वाली बात होगी कि जोड़तोड़ की यह सियासत किस मोड़ पर जाकर खत्म होती है और इसका कांग्रेस की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा.




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