नई दिल्ली। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन अक्टूबर को देश की सुरक्षा के लिहाज से काफी अहम मानी जा रही 'अटल टनल' का उद्घाटन किया. 9 किलोमीटर लंबी यह सुरंग इंजीनियरिंग का एक बेजोड़ नमूना है, लेकिन भारत में इंजीनियरिंग का यह कोई इकलौता नायाब नमूना नही है. इसके अलावा भी कई प्रोजेक्टस हैं जो दुनिया के सामने हमारी बेहतरीन टेक्नोलॉजी का उदाहरण पेश करते हैं. आईए जानते हैं वो कौन-कौन से ऐसे प्रोजेक्ट्स हैं, जिसे पूरी दुनिया आने वाले समय में देखेगी.
विश्व का सबसे ऊंचा ट्रेन ब्रिज : दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल भारत के जम्मू-कश्मीर रियासी जिले में बन रहा है. यह पुल चिनाब नदी पर बनाया जा रहा है. इस पुल की ऊंचाई 467 मीटर है. करीब 1200 करोड़ रुपये की लागत से बने इस पुल में 24,000 टन स्टील का इस्तेमाल होगा. चिनाब नदी पर बनाया जा रहा यह पुल एफिल टावर से लगभग 35 मीटर ऊंचा होगा. प्रोजेक्ट मैनेजर डिप्टी चीफ इंजीनियर आरआर मलिक के मुताबिक यह पुल अगले साल तक बनकर तैयार हो जाएगा.
क्या है खास?
1. यह कश्मीर घाटी को कटरा और देश के बाकी हिस्से से जोड़ेगा.
2. इसकी ऊंचाई 359 मीटर यानी 1,178 फीट है, जो की एफिल टावर से भी 35 मीटर ऊंचा है.
3. इसके तैयार होने के बाद जम्मू स्थित कटरा से श्रीनगर की यात्रा का समय 5-6 घंटे कम हो जाएगा.
4. रेलवे के 150 साल के इतिहास में यह पहला पुल है जिसके 915 मी. span में केबल क्रेन टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की गई है.
5. यह पुल बेइपैन नदी पर बने चीन के शुईबाई रेलवे पुल (275 मीटर) का रिकार्ड भी तोड़ देगा.
गौरतलब है कि इस प्रोजेक्ट का काम 2003-2004 में शुरू हुआ था. जो कई कारणों से बंद और शुरू होता रहा. साल 2010 में पुल का काम फिर से शुरू किया गया. जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर काम में तेजी लाने के निर्देश जारी किए है. इस पुल का निर्माण 2021 तक पूरा कर लिया जाएगा.
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी : गुजरात में नर्मदा नदी के साधु बेत द्वीप पर भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा साल 2018 को बनाई गई थी. जिसे 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' नाम दिया गया. यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है. इसकी ऊंचाई 182 मीटर है.
क्या है खास?
1. इसकी ऊंचाई 182 मीटर इसलिए रखी गई है क्योंकि गुजरात विधानसभा में सीटों की कुल संख्या भी इतनी ही है.
2.निर्माण करने वाली कंपनियां इससे पहले दुनिया की सबसे ऊंची इमारत 'बुर्ज खलीफा' बना चुकी हैं.
3. स्टैचू का मूल ढांचा कंक्रीट और स्टील से बनाया गया है.
4. इसके निर्माण में 25,000 टन लोहे और 90,000 टन सीमेंट का प्रयोग किया.
5. इस प्रतिमा को 4076 मजदूरों ने मिलकर बनाया है. जिसमें 200 चीनी कारीगर भी शामिल थे.
6.प्रतिमा की आंखें, होठ व जैकेट के बटन छह-छह फीट के हैं.
7. इस प्रतिमा को 220 किमी प्रति घंटा की रफ्तार वाला तूफान भी हिला नहीं सकता. ना ही 6.5 की तीव्रता वाला भूकंप इसका कुछ बिगाड़ सकता है.
8.इस प्रतिमा को बनाने में 85 फीसद तांबे का इस्तेमाल हुआ है.
9. प्रतिमा के अंदर हाईटेक लिफ्ट भी लगी हुई है.
10. स्टैचू के करीब वॉक-वे, टिकट काउंटर, फूड कोर्ट, चार लेन का हाइवे, एक यार्ड और श्रेष्ठ भारत भवन भी स्थित है.
2,989 करोड़ रुपये की लागत से बनी इस प्रतिमा परिसर में प्रदर्शनी के लिए एक मंजिल, एक मेमोरियल गार्डन और एक बड़ा संग्रहालय है. संग्रहालय में सरदार पटेल की जिंदगी से जुड़ी कई चीजों को रखा गया है. जिसमें उनके जन्म से लेकर लौहपुरुष बनने तक की यात्रा, व्यक्तिगत जिंदगी और गुजरात से जुड़े उनके इतिहास को संजोया गया है.
लिपुलेख दर्रा सड़क : बीते कई सालों से निर्माणाधीन 90 किमी लंबी धारचूला लिपुलेख सड़क परियोजना का 8 मई 2020 को परियोजना का शुभारंभ किया था. इस सड़क के बनने के बाद चीन की सीमा से सटे 17,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रा अब उत्तराखंड के धारचूला से जुड़ जाएगा. बता दें कि इस सड़क को बनाने के लिए पहाड़ को भी काटा गया है. इसके बनने से भारतीय चौकियों तक पहुंच आसान हो गई है. 80 किमी लंबे इस सड़क का निर्माण बेदह चुनौती भरा था.
क्या है खास?
1.रक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्तवपूर्ण है.
2. इस सड़क के बनने के बाद भारतीय सेना की पहुँच इस क्षेत्र में और आसान हो जाएगी.
3. सड़क बनने से कुछ ही घंटों में धारचूला से लिपुलेख तक पहुंचा जा सकता है.
4. भारतीय सैनिकों की गाड़ियां चीन की सीमा तक पहुँच सकेंगी.
5. कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रियों को इस 90 किलोमीटर लंबे रास्ते की कठिनाई से राहत मिलेगी.
6. यह क्षेत्र भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र को तिब्बत के तकलाकोट (पुरंग) शहर से भी जोड़ता है.
गौरतलब है कि BRO (सीमा सड़क संगठन) ने इस सड़क को 12 साल की कड़ी मेहनत के बाद बनाई है. यह सड़क भारत-चीन सीमा को जोड़ने का काम करती है. बता दें कि BRO ने इस सड़क को पहाड़ काटकर बनाया है. जहां एक ओर इस सड़क के बनने से कैलाश मानसरोवर जाने वाले यात्रियों को सुविधा होगी, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा के लिहाज से भी यह सड़क को बेहद खास है.
बोगीबील पुल: 4.94 किमी लंबा यह पुल इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है। यह असम के डिब्रूगढ़ से अरुणाचल के धेमाजी जिले को जोड़ता है. क्षेत्र में अधिक बारिश व भूकंप की आशंका बड़ी चुनौतियां थीं. इसके बावजूद रेलवे ने ऐसा डबल डेकर पुल बनाया जिसके ऊपरी तल पर बनी तीन लेन सड़क से गाड़ियां व नीचे वाले तल से ट्रेनें एकसाथ गुजर सकती हैं. पुल इतना मजबूत है कि इससे मिलिट्री टैंक भी गुजर सकते हैं. इसमें 35,400 टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सबसे बड़े रेल-रोड ब्रिज बोगीबील का उद्घाटन किया था. यह पुल असम के डिब्रूगढ़ में बना है. यह पुल ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर और दक्षिण तट को जोड़ने का काम करेगा. इस पुल की लंबाई 4.94 किमी है. 5920 करोड़ रुपए की लागत से बने इस पुल की आधारशिला 22 जनवरी, 1997 को संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने रखी थी. हालांकि, इसका निर्माण अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने साल 2002 में शुरू कर दिया था. बता दें कि बोगीबील पुल को अरुणाचल से सटी चीन सीमा तक विकास परियोजना के तहत बनाया गया है.
क्या है खास?
1. यह असम के डिब्रूगढ़ से अरुणाचल के धेमाजी जिले को जोड़ता है.
2. असम से अरुणाचल प्रदेश जाने में कम वक्त लगता है.
3. पुल बनने से डिब्रूगढ़-धेमाजी के बीच की दूरी 500 किमी से घटकर 100 किमी हो गई है.
4. रेलवे द्वारा निर्मित इस डबल-डेकर पुल से ट्रेन और गाड़ियां दोनों गुजर सकती हैं. ऊपरी तल पर तीन लेन की सड़क बनाई गई है.
5. लोअर डेकर पर दो ट्रैक बनाए गए हैं. यह पुल इतना मजबूत बना है कि इससे मिलिट्री टैंक आसानी से निकल सकते हैं.
6. बोगिबील सड़क और रेल पुल के निर्माण के लिए लगभग 35400 मीट्रिक टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया.
7. 4.9 किमी लंबा यह पुल एशिया का दूसरा सबसे लंबा रेल और सड़क पुल है.
8. इसकी सेवा अवधि 120 साल की है.
9. यह डबल डेकर ब्रिज है. इसके निचले हिस्से में दो रेलवे लाइन भी हैं.
10. चीन सीमा पर तैनात भारतीय सेना तक रसद और दूसरे सैन्य सामानों की सप्लाई आसान हो गई है.
11.इस पुल पर आपात स्थिति में लड़ाकू विमान भी उतारे जा सकते हैं.
गौरतलब है कि बोगीबील पुल असम समझौते का हिस्सा रहा है. आपको बता दें कि यह पुल अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा पर रक्षा सेवाओं के लिए भी संकट के समय में खास भूमिका निभा सकता है. इस पुल का शुभारंभ पीएम नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर 2018 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की वर्षगांठ पर किया था.
पहली अंडर रिवर मेट्रो : भारत में जल्द ही एक मेट्रो ट्रेन पानी के अंदर चलती दिखाई देगी. यह मेट्रो कोलकाता में हुगली नदी के नीचे से चलाई जाएगी, जिसके लिए रेलवे ने तैयारियां पूरी कर ली हैं. इस मेट्रो को चलाने के लिए अप और डाउन लाइन पर दो सुरंगें बनाई गई हैं. कोलकाता में हुगली नदी के नीचे अप और डाउन लाइन पर दो सुरंगें बनाई गई हैं. पानी के रिसाव को रोकने के लिए त्रिस्तरीय सुरक्षा कवच तैयार किया गया है। इनकी लंबाई 520 मीटर व भीतरी व्यास 5.55 मीटर है। ये नदी की तलहटी से 13 मीटर नीचे स्थित हैं. जिसकी लंबाई 520 मीटर और गहराई करीब 30 फुट होगी.
क्या है खास?
1. कोलकाता मेट्रो की यह ट्रेन सॉल्ट सेक्टर 5 से हावड़ा मैदान के बीच 16 किमी. का सफर तय करेगी.
2. ट्रेन को पानी के रिसाव से सुरक्षा देने के लिए सुरंग के भीतर 4 हाई टेक सुरक्षा कवच लगाए गए हैं.
3. इस ट्रेन को सुरंग पार करने में सिर्फ एक मिनट का वक्त लगेगा.
4. जमीन से 105 फीट नीचे मेट्रो स्टेशन बनाया जा रहा है.
5. प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद समय की बचत होगी.
6.हावड़ा से सॉल्ट लेक सड़क से जाने में 1.30 घंटे का समय लगता है सुरंग बनने के बाद सिर्फ 25 मिनट लगेंगे.
7. मेट्रो शुरू होने के बाद 9 लाख लोग रोजाना सफर कर सकेंगे.
8. प्रोजेक्ट की कुल लागत 8,572 करोड़ रुपए है.
9. यह देश की ऐसी पहली अंडर रिवर परियोजना है.
10.कोलकाता मेट्रो की यह सर्विस यह देश की सबसे सस्ती मेट्रो सेवा होगी, जिसमें एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक का किराया मात्र 5 रुपये होगा.
कोलकाता मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अनुसार मार्च 2022 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया जाएगा. गौरतलब है कि इस प्रोजेक्ट के लिए जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी से 41.6 बिलियन रुपए का लोन लिया गया था. एक सुरंग का काम 21 अप्रैल, 2016 को तथा दूसरी का 12 जुलाई को हावड़ा मैदान से शुरू हो गया था.