शिक्षण व सार्वजनिक संवाद में अंग्रेजी का चलन कम नहीं हो रहा, यह गलती आगे चलकर भारी पड़ेगी

Posted By: Himmat Jaithwar
10/1/2020

इंदौर। बिगड़ती हिंदी मातृभाषा से चिंतित होकर आचार्य विद्यासागर महाराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह सहित केंद्र सरकार के सभी मंत्रियों के प्रति अपनी पीड़ा व्यक्त की है। बाल ब्रह्मचारी सुनील भैया व मीडिया प्रभारी राहुल सेठी ने बताया आचार्यश्री की पीड़ा सिर्फ हिंदी भाषा को लेकर है।

आचार्यश्री ने पत्र में लिखा है-‘वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति 2020 को समर्थन के पीछे एक ही भाव अवचेतन में चल रहा था कि इससे हिंदी और अन्य प्रांतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षण देने की बात कही थी। कस्तूरीरंगन समिति को हिंदी और अन्य मातृभाषाओं के माध्यम से शिक्षण एवं सार्वजनिक प्रयोग में आवश्यक सावधानी बरतने का सुझाव दिया गया था। देश में सामान्य एवं विशिष्ट वर्ग के लोगों द्वारा सार्वजनिक संवाद में अंग्रेजी शब्दों का चलन कम नहीं हो रहा है। चिंता का विषय है कि नई शिक्षा नीति के प्रवर्तन के बावजूद अंग्रेजी का व्यापक प्रचलन बढ़ रहा है। यह चूक, लापरवाही या गलती आगे चलकर भारी पड़ने वाली है।

अंग्रेजी का जादू हमारे मस्तिष्क से नहीं उतर रहा- क्या हिंदी एवं अन्य प्रांतीय भाषाओं के कोष इतने गरीब हैं कि उन्हें अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषा से शब्दों को उधार लेना पड़ता है? आखिर क्या कारण है कि अंग्रेजी का जादू हमारे मस्तिष्क से नहीं उतर रहा है? जब तक हम नई पीढ़ी को शिक्षण संवाद में अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग पढ़ाते रहेंगे, यह समस्या खत्म नहीं होगी। अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। देश का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक नेतृत्व को अपने भाषायी संस्कारों में अंग्रेजी का बहिष्कार करना चाहिए। हिंदी और अन्य प्रांतीय भाषाएं कभी मुख्य धारा में अपना स्थान नहीं बना पाएंगी।

- प्रधानमंत्री भाषणों में अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं तो पीड़ा होती है
प्रधानमंत्री व महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने भाषणों और वक्तव्य में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं तो मुझे बहुत पीड़ा होती है। मुख्य रूप से सर्वोच्च राजनीतिक पदों पर बैठे व्यक्तियों, प्रधानमंत्री एवं मंत्रिमंडल के सहयोगी, राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री और उनकी नौकरशाही को सबसे ज्यादा सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। मुझे बताया गया है कि 10 देशों ने भारत की शिक्षा नीति की प्रशंसा की है और उसे अपनाने का आग्रह किया है। इसका मुख्य आधार हिंदी एवं अन्य मातृभाषाओं में शिक्षण देने का विचार रहा है। जरूरत पड़ने पर ज्यादा से ज्यादा हिंदी और अन्य प्रांतीय भाषाओं के शब्दों को अपने कोष में जोड़ें।



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