कृष्ण पाल सिंह के पिछोर में दीवारें दरक रही हैं, सब कुछ ठीक नहीं है

Posted By: Himmat Jaithwar
9/29/2020

भोपाल। मध्यप्रदेश में कुछ गिने-चुने नेता शेष रह गए हैं जो आज तक कोई चुनाव नहीं हारे। शिवपुरी जिले की पिछोर विधानसभा सीट से विधायक कृष्ण पाल सिंह एक ऐसा ही नाम है। इनके समर्थक इन्हें कद्दावर और विरोधी बाहुबली नेता कहते हैं। परिवार के लोगों ने 'कक्काजु' कह कर बुलाते हैं। पिछोर विधानसभा में केपी सिंह का कद, किसी भी पार्टी से बड़ा हो गया है। यशोधरा राजे सिंधिया से लेकर उमा भारती तक कई नेता के पी सिंह को चुनाव हराने के लिए पूरी क्षमताओं का उपयोग कर चुके हैं लेकिन अंगद के पांव को हिलाया तक नहीं जा सका परंतु 2020 में बात बदलती सी नजर आ रही है। जो संकेत मिल रहे हैं, वह शुभ नहीं है।

केपी सिंह 25 साल से पिछोर विधानसभा के एकमात्र नेता

शिवपुरी जिले की पिछोर विधानसभा सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ हुआ करती थी। सन 1993 में पिछोर से केपी सिंह ने पहला चुनाव लड़ा था और उन्होने भाजपा के कमल सिंह को 16 हजार 377 मतों से हराया था। इसके बाद -पिछोर में केपीसिंह ने उमा भारती के भाई स्वामी लोधी को 16 हजार मतों से हराया। इसमें केपी सिंह को 72 हजार 744 मत मिले जबकि स्वामी लोधी को 56 हजार 619 मत मिले। इसके बाद केपी सिंह ने 1998, 2003, 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव भी जीते। मजेदार बात यह है कि अब तो भारतीय जनता पार्टी जिस नेता को केपी सिंह के खिलाफ टिकट देती है, वह पार्टी को मंजूरी देने से पहले मुआवजा तय कर लेता है कि चुनाव हारने के बाद उसे क्या मिलेगा।

जैसा कि पहले बताया केपी सिंह को क्षेत्र में 'कक्काजू' के नाम से पुकारा जाता है। बुंदेलखंड में यह एक सामंतवादी संबोधन है। इसका तात्पर्य होता है 'क्षेत्र का राजा' या क्षेत्र का सर्वमान्य मुखिया, जिसे बदला नहीं जा सकता। लोधी समाज के लोग केपी सिंह के स्वभाविक विरोधी रहे हैं। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को भी केपी सिंह समर्थकों द्वारा पिछले 25 सालों में या तो प्रताड़ित किया गया या फिर लाभान्वित नहीं किया गया। 2 सितंबर को पिछोर के बाचरोंन चौराहे पर रात को अवंति बाई लोधी की प्रतिमा लगा दी गई थी। बीते रोज पिछोर अनुविभाग अंतर्गत खोड़ स्थित बरेला चौराहे पर रातों रात संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा बिना अनुमति लिए स्थापित कर दी है। बिना अनुमति स्थापित हो रही यह प्रतिमाएं किसी राजनीतिक क्रांति की तरफ इशारा कर रही हैं। सीधा और सरल सवाल है कि क्या इस तरह से केपी सिंह को चुनौती दी जा रही है।



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