नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी के दौरान बेघर हुई एक महिला का बचाव करते हुए उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक व्यक्ति के परिवार से कहा कि वह मुआवजे के तौर पर उसे चार लाख रुपये दे.
महिला ने दावा किया था कि यह व्यक्ति उसका पति था, जिसकी 2017 में मौत हो गई थी. महिला की एक अर्जी पर शीर्ष न्यायालय का यह आदेश आया है.
महिला ने शीर्ष न्यायालय का रुख कर वित्तीय राहत और संरक्षण के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया था. साथ ही उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर के गेस्ट हाउस में रहने देने का आदेश देने का भी अनुरोध किया था.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये इस मामले की सुनवाई की. पीठ ने कहा कि कुछ अत्यावश्यक आदेश जरूरी हैं, क्योंकि महिला को वह गेस्ट हाउस खाली करने को कहा गया है, जहां वह रह रही थी.
न्यायालय ने कहा, ‘मौजूदा स्थिति में खासतौर पर जन स्वास्थ्य संकट के सिलसिले में हमारा मानना है कि एक अस्थायी आदेश जारी करने के लिए न्यायिक हित की जरूरत है. हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम दोनों पक्षों के बीच मामले के गुण-दोष पर नहीं जा रहे हैं, जिस पर भविष्य में सुनवाई होगी. अस्थायी व्यवस्था के जरिये हम प्रतिवादी को चार लाख रुपये याचिकाकर्ता को 31 मार्च 2020 तक अदा करने का निर्देश देते हैं.’
महिला ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये खुद ही अपनी दलीलें रखी. उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने उन्हें गेस्ट हाउस का कमरा 20 मार्च तक खाली करने का नोटिस जारी किया था.
बिजनेस स्टैंडर्स के मुताबिक परिवार की ओर से पेश अधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन ने आरोप लगाया कि महिला अक्सर ऐसी याचिकाएं दायर करती रहती हैं और उन्होंने अंतरिम राहत के लिए ऊल-जुलूल आवेदन दायर किए थे, जो सभी फोरमों में झूठे साबित हुए.
महिला ने अपने आवेदन में 1.30 करोड़ रुपये की अंतरिम राहत की मांग की और उसके अलावा यह भी मांग उठाई कि बंगलुरु के स्टेट गेस्ट हाउस और दिल्ली के आईसीएआर के गेस्ट हाउस में रहने का निर्देश दिया जाए.
महिला ने इसके पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा कि घरेलू हिंसा मामले में उनके खिलाफ दिए गए सभी प्रतिकूल आदेशों को खारिज़ किया जाए. इस मामले का भी सुप्रीम कोर्ट के पास भेज दिया गया है.
अपनी याचिका में महिला ने दावा किया है कि उन्होंने जिस व्यक्ति से शादी की थी वह एक पुरस्कार विजेता बागवानी विशेषज्ञ थे और उनकी 2017 में मौत हो गई.